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Showing posts from May, 2017

बच्चियों के साथ दुष्कृत्यों की बाढ़ सी आ गई, न जाने किस दिशा में जा रहा है समाज?

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उसकी उम्र छह साल थी। पिता से अलग होने के बाद मां ने दूसरी शादी की थी। सौतेले पिता ने इस नन्हीं बच्ची को अपनी हवस का शिकार बनाया। वह प्राइमरी स्कूल में पढ़ती थी। वहां भी एक टीचर ने अलग से पढ़ाने का बहाना बना स्कूल की छुट्टी के बाद दुष्कर्म किया। वह अपने माता-पिता के साथ एक शादी में आई थी। पड़ौस के ही एक परिचित लड़के ने बच्ची को अपनी हवस का शिकार बनाया। बच्ची जब बेहोश हो गई, तो सबूत मिटाने के लिए उसे मार भी दिया। अनाथ आश्रम में रहने वाली एक बच्ची के साथ वहां का चौकीदार ही धमकाकर दुष्कर्म करता रहा। सबसे जघन्य घटना नासिक में हुई। वहां सचिन नाम का शराबी नशे में घर लौटा। पत्नी की गैर-मौजूदगी में उसने अपनी ही पांच वर्ष की बेटी से दुष्कर्म किया। जब वह बेहोश हो गई, तब दरिंदे ने अपनी माता यानी बच्ची की दादी को बताया। दादी को लगा कि बच्ची होश में आकर कुछ कहेगी, तो इससे बेटे की बदनामी होगी। उसने बेटे से कहा कि बच्ची को हमेशा के ही लिए सुला दिया जाए। बस दोनों ने बच्ची का गला दबाया और शव को एक स्कूल के पास फेंक दिया। फिर, दादी ने पुलिस में रिपोर्ट लिखाई कि पोती का अपहरण हो गया। शंका होने पर क

उजमा मामले से ली जाए जरूरी शिक्षा

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पाकिस्तान में बंदूक के बल पर जबरन शादी की शिकार हुई भारतीय युवती उजमा वापस घर आ गई हैं। उजमा गुरुवार को वाघा सीमा के जरिए भारत आईं। इस्लामाबाद हाईकोर्ट के फैसले के बाद उजमा की भारत वापसी का रास्ता साफ हो गया था। मगर इस पूरी कवायद में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की भूमिका भी कम नहीं है। पहले भी कई भारतीयों के लिए संकट मोचक बन चुकीं सुषमा ने उजमा के मामले में भी पाकिस्तान पर सख्ती की और नतीजा सामने है। विदेशों में किसी भी कारण से दिक्कतों में फंसे भारतीयों के लिए जिस तरह से मोदी सरकार आगे आती रही है, उसके लिए वह प्रशंसा की पात्र है। मोदी सरकार की यह नीति न सिर्फ भारत की साख बदलने का काम कर रही है, बल्कि भारतीयों के दिलों में सरकार के प्रति सम्मान भी बढ़ा रही है। बहरहाल, घर वापसी पर बेहद खुश उजमा ने वाघा बॉर्डर पर देश की धरती को छूकर सलाम किया। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने भी ट्वीट कर इस बात की पुष्टि की है। सुषमा ने लिखा, उजमा, भारत की बेटी का अपने घर में स्वागत है। तुम्हें जिन तकलीफों से गुजरना पड़ा, उसके लिए मैं माफी चाहती हूं। उजमा का मामला उस समय सामने आया था, जब पति ताहिर ने

व्यावसायिक केन्द्र बनते शिक्षा के मंदिर

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स्कूलों में प्रवेश का दौर शुरू होते ही शिक्षा के मंदिर व्यवसाय का केंद्र बनने लगे हैं। सरकार के लाख प्रयासों व निर्णयों  के बावजूद बच्चों के लिए किताबें,कापियां ड्रेस सहित सभी सामग्री स्कूलों से ही लेने को बाध्य होना पड़ रहा है। लगता है स्कूल शिक्षा का केन्द्र नहीं बल्कि कापी-किताब, बस्ते,जूते,टिफिन,ड्रेस बेचने का मॉल हो। आखिरकार यह सब हो क्या रहा है? शिक्षा के मंदिर व्यापार के केन्द्र बनते जा रहे हैं। एक समय था जब वाषिर्क परीक्षा के परिणाम आने के बाद स्कूलों में ग्रीष्मावकाश हो जाता था और नए सत्र में प्रवेश एक जुलाई को होता था, फिर जून के आखिरी सप्ताह में होने लगे और अब तो निजी स्कूलों में तो जनवरी में ही नए प्रवेश आरंभ हो जाते हैं,अभिभावकों के इन्टरव्यू का दौर शुरू होता है और भारी भरकम फीस के बावजूद यह आंक कर प्रवेश दिया जाता है कि बच्चे के पेरेन्टस में भी बच्चे को घर पर पढ़ाने की क्षमता है या नहीं। जैसे बच्चों को पढ़ाने की जिम्मेदारी स्कूल की ना होकर बच्चों के पेरेन्टस की हो। अब तो वार्षिक परीक्षा के परिणाम के साथ ही नया सत्र आरंभ हो जाता है और प्रवेश के नाम पर फीस आदि की वसूल

नर्मदा नदी को बचाने का शिव का प्रयास सही

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मध्यप्रदेश की जीवनरेखा कही जाने वाली नर्मदा नदी के संरक्षण के लिए शिवराज सरकार ने नर्मदा में रेत उत्खनन पर पूर्णत: प्रतिबंध लगाने का एलान कर दिया है। अब शिवराज सरकार इस संबंध में कैबिनेट मंत्री राजेंद्र शुक्ल की अध्यक्षता में आईआईटी खड़गपुर के विशेषज्ञों की एक समिति का गठन करने जा रही है, जो उत्खनन से संबंधित सभी पहलुओं का अध्ययन करके रिपोर्ट देगी। इस रिपोर्ट के आधार पर ही यह तय किया जाएगा कि नर्मदा से कैसे और कितनी मात्रा में रेत का उत्खनन किया जाए। समिति की रिपोर्ट आने तक उत्खनन पर प्रतिबंध लगा रहेगा। साथ ही, प्रदेश की सभी नदियों में उत्खनन के लिए मशीनों के प्रयोग पर भी रोक लगा दी गई है। इस एलान के बाद भी उत्खनन करते हुए पाए जाने वाले वाहन को जुर्माना लगाकर नहीं छोड़ा जाएगा, बल्कि उसे सीधे जब्त करने का नियम भी शिवराज सरकार ने लागू कर दिया है। सरकार के इस फैसले से स्पष्ट है कि नर्मदा को लेकर मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अत्यंत गंभीर हैं। तभी तो ‘नर्मदा सेवा यात्र’ जैसे जागरूकता अभियान के साथ-साथ वे नर्मदा के संरक्षण की दिशा में नीतिगत स्तर पर भी ठोस कदम उठा र

सरकारी आवासों का मोह ठीक नहीं

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सूचना के अधिकार के तहत खुलासा हुआ है कि अकेले दिल्ली में ही केंद्रीय कर्मचारियों के लिए आवंटित 675 सरकारी आवासों पर गैरकानूनी कब्जे बने हुए हैं। यह खबर इस लिहाज से चिंतित करने वाली है, क्योंकि कई ऐसे कर्मचारी हैं, जिनके पास रहने को घर नहीं है। उन्हें किराए के मकान में गुजारा करना पड़ रहा है। पुलिस के हजारों जवानों के लिए आवास एक बड़ी समस्या है। उन्हें दिन भर की ड्यूटी के बाद ठीक से आराम तक मयस्सर नहीं हो पाता है। सरकारी आवासों पर कब्जे का मामला आज का नहीं है। कई वर्षो से इस समस्या पर केंद्र सरकार से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक आदेश दे चुका है, मगर अब तक किसी ने भी सरकारी सुख-सुविधाओं को छोड़ने का मन नहीं बनाया है। ऐसे लोगों में मंत्री-नेता से लेकर सरकारी और रिटायर्ड अफसर तक हैं। सरकारी आवासों पर कब्जा करना अपना धर्म मान चुके लोगों पर सख्ती करते हुए केंद्र सरकार ने इसी माह एक कानून को मंजूरी दी है, जिसमें सरकारी आवासों से अनधिकृत कब्जा हटाने की प्रक्रिया को सरल तथा तेज बनाने और दोषियों पर भारी जुर्माना लगाने का प्रावधान किया गया है। कानून में संशोधन के बाद सरकारी आवासों से अवैध कब्

हमारे लिए शर्मनाक है ठाणो की घटना

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मुंबई से सटे ठाणो के उल्लासनगर में एक दुकान से खाने की चीज चोरी करने के आरोप में दुकानदार ने दो बच्चों की न सिर्फ पिटाई की, बल्कि उनके साथ बदसलूकी भी की। इस तरह के मामलों में बच्चों की पिटाई का यह पहला मामला नहीं है। इससे पहले भी कई जगहों पर चोरी के आरोप में बच्चों की पिटाई की जा चुकी है। बार-बार इस तरह के मामलों का सामने आना यह साबित करता है कि बच्चों के सामने आर्थिक संकट तो है ही, सामाजिक ढांचा भी अब छोटी से छोटी बात को सहन करने के लिए तैयार नहीं है। दूसरा, कानून अपने हाथ में लेकर मौके पर ही न्याय करने की बढ़ती प्रवृत्ति भी ऐसे मामलों को बढ़ावा दे रही है। यह तत्काल बंद होना चाहिए। अगर घटना को देखें, तो उल्लास नगर में सिर्फ एक रुपए की चकली चोरी करने वाले आठ और नौ साल के दो बच्चों की दुकानदार ने पहले तो पिटाई की और बाद में कपड़े उतारकर आधे बाल काटने के बाद चप्पल की माला पहनाकर घुमाया। प्रेमनगर इलाके में रहने वाले दोनों बच्चे भूखे थे, इसलिए उन्होंने दुकानदार की इजाजत के बिना एक रुपए में मिलने वाली दो चकली डिब्बे से निकालकर खा ली थी। दुकानदार महमूद पठान इतना नाराज हुआ कि उसने अ

जीएसटी: पूरी हो गई है तैयारी

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केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा तो यही है कि अगर जरूरत पड़ेगी तो जीएसटी परिषद की एक बैठक और बुलाई जा सकती है। दरअसल, सरकार इस नई कर-प्रणाली की दिशा में संपूर्ण राजनीतिक आम सहमति बनाकर आगे बढ़ने की कोशिश कर रही है, इसलिए आगे भी बैठक की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता। लेकिन जम्मू कश्मीर की राजधानी श्रीनगर में दो दिनों तक चलती रही जीएसटी परिषद की बैठक का सार यही है कि आम सहमति बन चुकी है और उसके बाद जीएसटी इसी वर्ष एक जुलाई से लागू भी हो जाएगा। इस कर-प्रणाली की कानूनी अड़चनें तो बहुत पहले ही दूर हो चुकी थीं। संविधान संशोधन समेत जीएसटी से जुड़े सभी पांचों कानूनों को संसद की मंजूरी मिल ही चुकी है। मतलब, जो अड़चन थी, वह करों की दरों को लेकर थी। जीएसटी परिषद में शामिल गैर-भाजपा शासित राज्यों के वित्त मंत्री कर की दरों को इसलिए कम रखवाना चाहते थे, ताकि उन्हें जरूरत पड़ने पर यह कहने का मौका मिलता रहे कि उन्होंने अपनी चला ली है, तो केंद्र सरकार के सामने अलग समस्या थी। वस्तुत: जिन भी देशों में अभी तक जीएसटी लागू हुआ है, उनका तो यही अनुभव है कि जब यह कर-प्रणाली ला

किसानों को आधार से मिलेगा सहारा

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देश में किसानों की हालत को लेकर समय-समय पर उठने वाले सख्त सवालों का जवाब देने के लिए केंद्र सरकार बड़ी योजना लाने वाली है। सरकार की मंशा के मुताबिक, अब किसानों को मिलने वाली सब्सिडी और प्राकृतिक आपदा के तहत मिलने वाली राशि को बिचौलिए हड़प नहीं पाएंगे। सरकार अब किसानों के लिए आधार कार्ड अनिवार्य करने जा रही है, जिससे सब्सिडी व सहायता राशि सीधे उनके खाते में जमा कराई जा सकेगी। कृषि मंत्रलय इस संबंध में अधिसूचना जारी कर चुका है। इसमें 31 मार्च-2018 तक देश के सभी किसानों के आधार कार्ड बनाने के निर्देश जारी किए गए हैं। उम्मीद है कि इस प्रावधान के बाद किसानों के दिन सुधरेंगे। अब तक की जो स्थिति है, उसे देखें, तो सरकार की ओर से राज्यों को भेजी जाने वाली सब्सिडी-सहायता राशि किसानों तक पहुंचने में काफी समय लगता है। इसके अलावा बिचौलियों के फर्जीवाड़े के चलते किसानों को मदद नहीं मिल पाती है। बीज, खाद, कीटनाशक और सूक्ष्म सिंचाई योजना की सब्सिडी में बिचौलिए किसानों से कमाई करते हैं। वहीं, प्राकृतिक आपदा होने पर केंद्र व राज्य सरकार की ओर से मुहैया कराई जाने वाली सहायता राशि में भी बंदरबांट

जैसी अक्ल, वैसा काम

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काशी में एक बड़ा सेठ रहता था, लेकिन वह बहुत कंजूस था। एक बार उसने घर की रखवाली के लिए एक चौकीदार रखने का विचार बनाया। लेकिन जो आदमी मिलता, वह बहुत ज्यादा पैसे मांगता। एक दिन उसके पास एक आदमी आया। वह शरीफ, ईमानदार और ताकतवर था, पर बुद्धि से थोड़ा कमजोर था। सेठ ने सोचा कि चौकीदारी के लिए बुद्धिमान की जरूरत ही क्या है। उसे रख लिया। एक दिन सेठ को बाहर जाना पड़ा। जिस दिन सेठ बाहर गया, संयोग से उसी रात उसके घर में चोर घुस गए। चौकीदार उनका मुकाबला नहीं कर सका। चोरों ने उसको बांध दिया। जब वे सारा सामान लूट कर जाने लगे तो चौकीदार बोला- भाई, तुम से एक प्रार्थना है- जो सामान तुम ले जा रहे हो, वह सब सेठानी की लड़की का है। उसकी शादी होने वाली है और सेठानी ने बड़ी मेहनत से यह सामान जुटाया है। तुम लोग वह सामान छोड़ दो और उसके दाम के बराबर रुपए ले लो। चोरों ने पूछा- रुपए कहां हैं? चौकीदार ने कहा-तिजोरी में। चोरों ने रुपए भी लूट लिए। अब वे रुपए व सामान लेकर जाने लगे तो चौकीदार बोला-सामान क्यों ले जा रहे हो, रुपए कम पड़ते हों तो तहखाने से मोहरें भी ले लो। उसने तहखाने का रास्ता भी बता दिया। जब चोर म

बेटियों के प्रति संकीर्ण सोच से बाहर आएं

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कितना दुर्भाग्य है कि एक ओर हम ‘ बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ ’ के नारे लगाते हैं और दूसरी ओर लड़कों की चाह में प्राचीन काल से लड़कियों को जन्म के समय या जन्म से पहले मारते आ रहे हैं। यदि लड़की अपने सौभाग्य से बच भी जाती है, तो हम जीवन भर उससे भेदभाव के तरीके ढूंढ लेते हैं। हालांकि, धार्मिक विचार नारी को देवी का दर्जा देते हैं, पर हमारी सोच अब भी उसे शोषण करने की वस्तु से आगे नहीं देख पाई है। हमने दोहरे मानकों के आधार पर एक ऐसा समाज बुन दिया है, जहां विचार हमारे कार्यो से अलग-थलग ही बैठते हैं। आज भी हमारे विचारों में पितृसत्तात्मक सोच अपना घर बनाए हुए है, जो आधुनिकता के नए-नए दौर में नई-नई गति से फलीभूत हो रही है। इसका त्वरित उदाहरण है, गर्भ में लिंग की जांच। हम बेटे की चाह में कुछ भी करने राजी रहते हैं। कभी बाबाओं-ओझाओं की शरण में जाकर तंत्र-मंत्र, तो कभी झाड़-फूंक करवा कर कुदरत को चुनौती देते रहते हैं। तो कभी तकनीक का फायदा उठाकर गर्भ में पल रहे भ्रूण का लिंग परीक्षण कराने से भी बाज नहीं आते। गर्भ में भ्रूण के लिंग की जांच को लेकर कड़े कानून के बावजूद बेटों के दीवाने दंपतियों ने नया

सिकंदर की समझदारी

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सिकंदर उस जल की तलाश में था, जिसे पीने से अमरता प्राप्त होती है। उसने दुनिया को जीतने हेतु जो भी प्रयास किए, वह उस अमृत की तलाश के लिए ही थे। काफी दिनों तक देश दुनिया में भटकने के बाद आखिरकार सिकंदर ने वह जगह पा ही ली, जहां उसे अमृत की प्राप्ति होती। वह उस गुफा में प्रवेश कर गया, जहां अमृत का झरना था। वह आनंदित हो उठा। मन की आकांक्षा पूरी होने का क्षण आ गया। उसके सामने ही अमृत जल कल-कल करके बह रहा था। वह अंजलि में अमृत को लेकर पीने के लिए झुका ही था कि तभी एक कौआ, जो उसी गुफा के भीतर बैठा था, जोर से बोला- रुक जा, यह भूल मत करना। सिकंदर ने कौवे की ओर देखा। बहुत दुर्गति की हालत में था, वह कौआ। पंख झड़ गए थे, अंधा भी हो गया था, वह तो कंकाल मात्र था। सिकंदर ने कहा-तू रोकने वाला कौन? कौवे ने उत्तर दिया-मेरी कहानी सुन ले। मैं अमृत की तलाश में था और यह गुफा मुझे मिल गई थी। मैंने यह अमृत पी लिया। अब मैं मर नहीं सकता, पर मैं अब मरना चाहता हूं। देख मेरी हालत। अंधा हो गया हूं। पंख झड़ गए हैं। उड़ नहीं सकता। एक बार मेरी तरफ देख ले, फिर मर्जी हो तो अमृत पी लेना। देख अब मैं चिल्ला रहा हूं, चीख

साइबर सुरक्षा को प्राथमिकता देने का समय

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इतिहास के अब तक के सबसे बड़े साइबर अटैक ने पूरी दुनिया को झकझोर कर रख दिया है। सबसे बड़ी बात यह है कि यह अटैक अभी जारी है और इसके माध्यम से बड़े पैमाने पर फिरौती भी मांगी जा रही है। इस साइबर अटैक के तुरंत बाद दुनियाभर के सौ देशों के एक लाख25 हजार से ज्यादा कंप्यूटर सिस्टम हैक हो गए थे। इसका आंकड़ा अब लगातार बढ़ रहा है और इसने अब लगभग पूरी दुनिया को चपेट में ले लिया है। इसकी शुरुआत पिछले शुक्रवार को ब्रिटेन की नेशनल हेल्थ सर्विस से हुई। ब्रिटेन के कई अस्पतालों में कंप्यूटर्स और फोन बंद हो गए। इसे रैनसमवेयर अटैक कहा जा रहा है। यह ऐसा वायरस है, जिससे डाटा लॉक हो जाता है। उसे अनलॉक करने के लिए फिरौती के तौर पर हैकर्स बिटकॉइंस या डालर्स में रकम मांगते हैं। रैनसमवेयर एक तरह का सॉफ्टवेयर वायरस है। इसके कंप्यूटर में आते ही आप अपनी किसी भी फाइल का इस्तेमाल नहीं कर सकते। अगर आप फाइल खोलना चाहेंगे तो आपको हैकर्स को तीन सौ बिटकॉइन देने होंगे। पैसा तय वक्त में ही देना होगा, नहीं तो वायरस ईमेल के जरिए और फैल जाएगा। यह एक नए किस्म का अपराध है, जिसमें अपराधी को पकड़ना सरल नहीं होता। जिस

आखिर क्यों नहीं रुक रहीं रेप की वारदातें?

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हाल ही में जब सुप्रीम कोर्ट ने निर्भया गैंगरेप के दोषियों को फांसी की सजा सुनाई थी, तब एक वर्ग ने कहा था कि इस तरह के मामलों में ऐसी ही सजा दी जानी चाहिए। सख्त सजा मिलने से ही अपराधी सुधरेंगे। अपराधियों पर रेप के लिए मृत्युदंड की सजा का कितना असर पड़ा है, यह सोनीपत की घटना ने साबित कर दिया है। 16 दिसंबर 2012 में दिल्ली में निर्भया के साथ हुई दरिंदगी को दोहराते हुए सोनीपत में एक 23 वर्षीय युवती के साथ गैंगरेप किया गया और उसके शरीर में लोहे का सरिया तक घुसा दिया। यह घटना सुप्रीम कोर्ट के फैसले के एक सप्ताह बाद हुई है। इससे साबित होता है कि बलात्कार जैसे अपराधों को रोकने के लिए जब तक सामाजिक स्तर पर पहल नहीं की जाएगी, तब तक कानून या सख्त सजा कुछ नहीं कर सकती। आगे बढ़ने से पहले घटना पर नजर डालते हैं। सोनीपत की 23 वर्षीय युवती का अपहरण कर उसके साथ गैंगरेप किया गया। दरिंदों ने गैंगरेप के बाद युवती की हत्या कर दी और उसके शव को फेंक दिया। युवती के शव को कुत्तों ने काफी जगह से नोंचा है। इस सिलसिले में पुलिस ने दो लोगों को गिरफ्तार किया है। पुलिस का दावा है कि गिरफ्तार दोनों लोगों में

मेरी माँ

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माँ… माँ। इस दुनिया में मुझे लाने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद | मेरे जीवन में आपके महत्त्व को समझाना और आपको बताना मेरे लिए असंभव सा ही है| मुझे अभी भी याद है जब मैं 1 साल की उम्र में खड़े होना सीख ही रही थी की मैं तीसरे मंजिल से राजमार्ग पर गिर गई, सभी डॉक्टरों ने कहा कि हम कुछ नहीं कर सकते और हमें अफसोस है, लेकिन तब भी आपने अपनी आशा नहीं खोई और चमत्कार हुआ, जिसके कारण आज मैं जीवित हूँ। आपने मुझे रास्ता दिखाया जिसके बदौलत आज में यहाँ पर हूँ । आपने मुझे हमेशा विनम्र और दयालु रहना सिखाया। आपने मुझे सिखाया कि संवेदनशील होना ठीक है, लेकिन इससे भी ज्यादा मुझे यह सिखाया कि, चिंता न करना कि दूसरे मुझे क्या समझ रहे हैं | आपने मुझे दिखाया कि मैं कैसे एक अच्छी इंसान बनूँ| मैं बढ़ने लगी और मुझे उम्मीद थी कि एक दिन मैं आप के जैसी नहीं तो कम से कम आपके थोड़े से गुणों को अपने अंदर समां लूँ। बेहतर और मजबूत व्यक्ति बनने के लिए जब मुझे किसी की आवश्यकता होती है तो मैंने हमेशा आपको अपने पास और साथ ही पाया है| आपको हमेशा यह पता रहता है की मैं क्या सोच रही हूँ और मैं क्या करना चाहती हूँ। मुझे यह भरोसा हम

बच्चों की सेहत की चिंता सही

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महाराष्ट्र के सभी स्कूलों में जंक फूड बेचने पर पाबंदी लगा दी गई है। इसे जल्द ही सभी स्कूलों में लागू कर दिया जाएगा। सरकार ने यह फैसला विद्यार्थियों की तबियत और बढ़ती बीमारी को ध्यान में रखते हुए लिया है। फास्ट फूड पर पांबदी लगाते हुए सरकार ने तर्क दिया है कि इससे विद्यार्थियों में मोटापा और बीमारियों का प्रमाण दिन पर दिन बढ़ता जा रहा है, जिसका असर बच्चों की शारीरिक व मानसिक क्षमता पर पड़ रहा है। पिछले माह ही राजस्थान सरकार ने इसी तरह का फैसला लागू किया है। दोनों राज्यों की सरकारों का यह फैसला बच्चों की सेहत के संबंध में उम्दा है। जरूरत है कि इस तरह के फैसले देश की सभी सरकारें अपने राज्यों में लागू करें। बच्चों में तेजी से बढ़ते मोटापे को लेकर ही पिछले वर्ष सीबीएसई ने संबद्ध सभी स्कूलों को अपनी कैंटीन में बेचे जाने वाले फास्ट फूड बंद करने को कहा था। इसी तरह के आदेश यूजीसी भी जारी कर चुका है। महाराष्ट्र और राजस्थान सरकार एवं सीबीएसई के साथ यूजीसी की बच्चों की सेहत की चिंता वाकई सही है। युवा वर्ग का बढ़ते वजन की चपेट में आना चिंतनीय है। यही वजह है कि हाल ही में यूनिवर

फिर चर्चा में मुकेश अंबानी की 25 करोड़ की वैनिटी वैन

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सोशल मीडिया में एक सफेद रंग की शानदार वैनिटी वैन का वीडियो वायरल हो रहा है। वीडियो में ऐसा दावा किया जा रहा है कि यह वैनिटी वैन देश के सबसे अमीर उद्योगपति मुकेश अंबानी की है। इसकी कीमत 25 करोड़ रुपए बताई जा रही है। इस वैनिटी वैन से जुड़े अलग-अलग वीडियो को यूट्यूब पर अब तक करीब एक करोड़ लोग देख चुके हैं। हाल ही में इससे जुड़ा एक वीडियो यूट्यूब पर आया था, जिसके बाद यह ट्रेंड करने लगा। इस वैन की खासियतों के बारे में बात करें, तो दो लग्जरी बेडरूम बनाए गए हैं। एक बेडरूम में बेड के साथ-साथ सोफा भी लगाया गया है। वहीं एक बेडरूम में केवल बेड ही है। मनोरंजन के लिए 40 इंच का इंटरनेट सुविधा से लैस स्मार्ट टीवी लगाया गया है। खबरों के मुताबिक, वैनिटी वैन का एयर कंडीशनिंग सिस्टम (एसी) इतना पावरफुल है कि यह वैन को सिर्फ 22 सेकंड में ठंडा कर सकता है। अगर चलते-चलते कोई मीटिंग करनी है, तो इस काम के लिए भी एक छोटा सा रूम बनाया गया है। इस वैनिटी वैन की छत पर जाने की भी सुविधा है और वहां पर बैठ कर आराम किया जा सकता है। अगर बारिश के दौरान वैन की छत पर जाकर बैठना हो, तो उसके लिए भी सुविधा

दहेज कुप्रथा को अब खत्म करना ही होगा

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पिछले दिनों महाराष्ट्र के लातूर से एक असहनीय, पीड़ादायक और समाज को झकझोर देने वाली खबर अखबारों में छपी। यह वही लातूर है, जहां पानी का संकट भयावह होता है। इसी लातूर में पिछले दिनों एक 20 वर्षीय युवती ने आत्महत्या कर ली थी, क्योंकि वह अपने पिता को कर्ज से बचाना चाहती थी। यह कर्ज लड़की के पिता कृषि के लिए नहीं, बल्कि उसकी शादी के लिए लेना चाह रहे थे। पिता शादी का खर्च वहन कर पाने की स्थिति में नहीं था। यह घटना समाज को आईना दिखाने के लिए काफी है। आज दहेज जैसी कुप्रथा को हम अपना सामाजिक बड़प्पन और फर्ज मान चुके हैं। दहेज कुप्रथा के दानव ने अब तक जाने कितनी बेटियों की बलि ली है, लेकिन देश के हर हिस्से में दहेज की कुरीति जस की तस बनी है। हालांकि, दहेज प्रथा को रोकने के लिए कड़े कानून हैं, मगर वैवाहिक समारोहों में होने वाला लेन-देन आज भी जारी है। लातूर की घटना से तो ऐसा ही प्रतीत होता है। 21वीं सदी वह कालावधि है, जिसमें स्त्री और पुरुष दोनों का सामाजिक उत्थान में अहम योगदान है। कई मौकों पर देश के भीतर सामाजिक कुरीतियों व समाज विरोधी पुरातनपंथी जड़ता को उखाड़ फेंकने के लिए बेत

इल्ज कोलर के लिए अब भारत पहला घर

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जर्मनी के हैम्बर्ग शहर में पली-बढ़ीं सामाजिक कार्यकर्ता इल्ज कोलर रॉलेफसन को बचपन से ही पशुओं से प्यार था। उनके पिता बॉटनी के प्रोफेसर थे और मां कृषि विशेषज्ञ। घर में कुत्ते व घोड़े थे। इल्ज न केवल उनके संग खेलतीं, बल्कि उनका ख्याल भी रखती थीं। पशु-प्रेम की वजह से उन्होंने पशु चिकित्सक बनने का फैसला किया। वर्ष-1970 में वेटनेरी डिग्री हासिल करने के बाद प्रैक्टिस करने लगीं। पति यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर थे। खुशहाल परिवार था। बतौर पशु चिकित्सक करियर भी अच्छा चल रहा था, लेकिन वह खुश नहीं थीं। इल्ज कहती हैं, पशुओं का इलाज करके पैसा कमाना मेरा मकसद नहीं था। मैं पशुओं के लिए कुछ करना चाहती थी। तभी पशु-शोध के लिए स्कॉलरशिप मिली और वे वर्ष-1991 में पति और बच्चों के संग भारत आ गईं। उन्हें राजस्थान के ऊंट और उनसे जुड़ी दिक्कतों पर शोध करना था। सबसे पहले बीकानेर स्थित नेशनल रिसर्च सेंटर ऑन कैमल का दौरा किया। वहां उन्हें ऊंटपालकों के बारे में दिलचस्प बातें पता चलीं। उत्सुकता बढ़ती गई। वह ऊंटपालन करने वाली रायका जनजाति की बस्तियों में गईं। वहां घर के बड़े-बूढ़े ऊंटों से स्थानीय भाषा