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Showing posts from October, 2017

गुजरात चुनाव के दौर में विपक्षी पार्टियां, किस करवट बैठेगा ऊंट

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गुजरात चुनाव वैसे तो पिछले 15 वर्षो से देश की गहरी अभिरुचि का कारण रहा है। 2002 से जब भी गुजरात चुनाव का ऐलान हुआ ऐसा लगा जैसे कोई युद्ध हो रहा हो। इस बार भी लगभग वैसी ही स्थिति है। अंतर केवल इतना है कि तब नरेंद्र मोदी मुख्यमंत्री के तौर पर विरोधियों के निशाने पर होते थे और अब वे प्रधानमंत्री के रूप में हैं। हालांकि, वहां भाजपा के अलावा सिर्फ कांग्रेस का जनाधार रहा है और अब भी वही स्थिति है। इसलिए दूसरी पार्टियों के लिए वहां करने के लिए कुछ नहीं है। बावजूद इसके ज्यादातर विरोधी पार्टियां इस समय गुजरात चुनाव में अभिरुचि ले रही है। गुजरात के बाहर भी ऐसा वातावरण बनाने की कोशिश है, जिससे संदेश यह जाए कि भाजपा की हालत खराब है और वह चुनाव हारने जा रही है। विपक्ष के नाते इस रणनीति के अपने मायने हैं। वास्तव में लोकसभा चुनाव 2019 को ध्यान में रखकर जो विपक्ष भाजपा विरोधी एकजुटता पर काम कर रहा है उसे लगता है कि अगर मोदी को उनके घर में परास्त कर दिया जाए तो फिर यह माहौल बनाने में मदद मिलेगी कि जनता मोदी सरकार के कामों से असंतुष्ट है। उससे विपक्ष के एकजुट होने की संभावना और ज्यादा बलवती ह

सुप्रीम कोर्ट ने उन लोगों को नसीहत दी है, जो कोर्ट की निष्पक्षता पर सवाल उठा रहे हैं

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बुलंदशहर में गैंगरेप प्रकरण को राजनीतिक साजिश बताने वाले समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान के बयान के खिलाफ पीड़ित पक्ष द्वारा दायर की गई याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सोशल मीडिया के संदर्भ में भी कई महत्वपूर्ण व चिंतनीय बातें कहीं। न्यायालय ने सुनवाई करते हुए सोशल मीडिया पर अदालती निर्णयों के पक्ष-विपक्ष में होने वाली बहसों और कठोर टिप्पणियों आदि पर भी चिंता जताई। कई न्यायाधीशों को सरकार का समर्थक बताने वाली टिप्पणी को अदालत ने सिरे से खारिज करते हुए कहा कि जिन्हें ऐसा लगता है, वे न्यायालय में बैठकर देखें कि किस तरह सरकार की खिंचाई होती है। दरअसल, सर्वोच्च न्यायालय बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष व वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने एक समाचार चैनल को दिए बयान में कहा था कि शीर्ष न्यायालय के कई न्यायाधीश ‘सरकार समर्थक’ हैं। दरअसल, इस तरह के सभी आरोप निराधार हैं व लोकतांत्रिक व्यवस्था को कमजोर करने वाले हैं। वास्तव में सोशल मीडिया आज अभिव्यक्ति के ऐसे विकसित मंच के रूप में हमारे समक्ष उपस्थित है, जहां सब कुछ गोली की ही तरह तेज व तुरंत चलता है। यहां जितनी तेजी से विचारों का

प्लास्टिक कचरे से होने वाला प्रदूषण भी बड़ी चिंता का कारण बात क्यों नहीं?

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दीपावली से पहले प्रदूषण को लेकर बातें तो खूब की गईं, मगर उसका असर किसी पर नहीं पड़ा। पर्व के नाम पर जहां-तहां खूब पटाखे जलाए गए। सड़कों पर पटाखों के अवशेष हमें यह बताने के लिए काफी हैं कि हमने अपनी धरती को पर्यावरण के अनुकूल बनाने में रत्तीभर भी प्रयास नहीं किया। खैर, पटाखों से होने वाले प्रदूषण की चर्चा में प्लास्टिक को सभी भूल गए। वर्तमान में प्लास्टिक कचरा बढ़ने से जिस प्रकार से प्राकृतिक हवा में प्रदूषण बढ़ रहा है, वह मानव जीवन के लिए तो अहितकर है ही, साथ ही हमारे स्वच्छ पर्यावरण के लिए भी विपरीत स्थितियां पैदा कर रहा है। हालांकि, समय-समय पर सरकार से लेकर गैर सरकारी संस्थाओं ने जागरण अभियान चलाए हैं, परंतु परिणाम अब तक मिलता दिखाई नहीं देता। ऐसे में प्रश्न यह है कि गैर सरकारी संस्थाओं के अभियान अपेक्षित परिणाम क्यों नहीं दे पा रहे हैं? इसके पीछे की कहानी कहीं कागज पर तो नहीं है। अपने देश में कागजों में काम होने की बीमारी लगातार बढ़ रही है। कागजों के आंकड़ों को वास्तविक धरातल पर उतारा जाता है, तो कहीं भी काम दिखाई नहीं देता। सामाजिक चेतना के कम होने के कारण हम चैतन्यता के नाम

गुजरात चुनाव को लेकर अब सोशल मीडिया पर भी जीत हार के कयास लगने शुरू

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राजनीति अपनी जगह है, उसे लेकर सोशल मीडिया पर चर्चाएं अपनी जगह, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और है। गुजरात के भावी चुनावों को लेकर जिस तरह सोशल मीडिया पर आक्रामक चर्चाएं जारी हैं, उससे आसानी से यही अंदाजा लगाया जा सकता है कि वहां इस बार कयास आसान नहीं है। जिस तरह चुनाव आयोग ने पहले हिमाचल प्रदेश की तारीखों का ऐलान कर दिया और गुजरात की तारीखों को रोके रखा, उससे भी इसी आशंका को बल मिला है। लेकिन अपने चुनावी सर्वेक्षणों की साख के लिए विख्यात सीएसडीएस के संजय कुमार के मुताबिक, जमीनी हकीकत कुछ और ही है। सीएसडीएस के सर्वेक्षण नतीजों के मुताबिक अगर गुजरात के लोगों की सोच मौजूदा स्तर पर बनी रही तो निश्चित तौर पर एक बार फिर गुजरात में भाजपा की सरकार बनेगी। भारत जैसे देश में राजनीति में नतीजों का सही-सही अनुमान लगा पाना किसी के लिए संभव नहीं है। लेकिन यह भी हकीकत है कि चुनाव नतीजों का मोटा अनुमान उस क्षेत्र में चुनाव लड़ रहे नेताओं को लग जाता है। आपसी बातचीत में कांग्रेसी नेता यह स्वीकार कर रहे हैं कि पिछली बार के नतीजों की तुलना में इस बार अगर उन्होंने दस-पंद्रह सीटें भी ज्यादा जीत लीं तो उसे

विश्वविद्यालयों के नामकरण में पड़कर अपना व देश का समय खराब न करे

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केंद्रीय मानव-संसाधन मंत्री प्रकाश जावडेकर ने एक दूरदर्शितापूर्ण सराहनीय निर्णय लेकर सांप्रदायिकता व धर्मनिरपेक्षता की अनुत्पादक किंतु ज्वलनशील बहस से देश को बचा लिया है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग यानी यूजीसी ने सिफारिश की थी कि बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (बीएचयू) से ‘हिंदू’ तथा अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से ‘मुस्लिम’ शब्द हटा लिया जाए, क्योंकि ये शब्द इन दोनों ही विश्वविद्यालयों के धर्मनिरपेक्ष चरित्र को दर्शा पाने में अक्षम हैं। याद रहे कि यूजीसी की जिस समिति ने यह सिफारिश की थी, उसने यह सुझाव अपनी कार्यसूची से बाहर जाकर दिया था, जबकि उसे तो प्रशासनिक, वित्तीय और शोध विषयों पर एक प्रकार का ऑडिट करके सुधार हेतु सुझाव देने थे। उपयरुक्त दोनों विश्वविद्यालयों को भी यूजीसी के यह संशोधन अस्वीकार्य थे। प्रकाश जावडेकर ने स्पष्ट कहा कि बीएचयू व एएमयू से ‘हिंदू’ और ‘मुस्लिम’ शब्द हटाने का शासन का कोई विचार ही नहीं है। उल्लेखनीय है कि अल्पसंख्यक मामलों के केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने भी कहा है कि देश में तमाम संस्थानों के साथ हिंदू, मुस्लिम, क्रिश्चियन, सिख या बौद्ध शब्द लगा है

‘न्यूटन’ का नायक घनघोर आदर्शवादी भारतीय सिनेमा का काला हास्य

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भारतीय सिनेमा के लिए ‘न्यूटन’ एक नए मिजाज की फिल्म है बिल्कुल ताजी, साबूत और एक ही साथ गंभीर और मजेदार। इसमें सादगी और भव्यता दोनों का विलक्षण संयोग है। ‘न्यूटन’ की विषयवस्तु भारी-भरकम है, लेकिन इसका ट्रीटमेंट बहुत ही सीधा और सरल है। बिल्कुल मक्खन की तरह। सिनेमा का यह मक्खन आपको उसी दुनिया की सैर कराता है, जिसमें हमारी जिंदगी की सारी खुरदरी हकीकतें दिखाई देती हैं। इसी के साथ ही यह सिनेमा के बुनियादी नियम मनोरंजन को भी नहीं भूलती है। यह एक क्लास विषय पर मास फिल्म है। नक्सलवाद प्रभावित इलाके में चुनाव जैसे भारी भरकम विषय वाली सितारा विहीन फिल्म से आप मनोरंजन की उम्मीद नहीं करते हैं। ऐसा भी नहीं है कि इस विषय पर पहले भी फिल्में न बनी हों लेकिन ‘न्यूनटन’ का मनोरंजक होना इसे अलग और खास बना देता है। आदर्शहीनता के इस दौर में इसका नायक घनघोर आदर्शवादी है और ऐसा करते हुए वह अजूबा दिखाई पड़ता है, यही इस फिल्म का काला हास्य है। ‘न्यूटन’ एक राजनीतिक फिल्म है, जिसे बहुत ही सशक्त तरीके से सिनेमा की भाषा में गढ़ा गया है। यह हमारे सिनेमा की ताकत का अहसास कराती है। इस फिल्म की कई परतें हैं, लेकिन

स्कूलों में बच्चों की पिटाई को लेकर चिंता तो जताई, लेकिन इस दिशा में किसी ने कदम नहीं उठाया

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कहावत है कि किसी भी अच्छे शिक्षक को अपने विद्यार्थी बहुत याद आते हैं, लेकिन विद्यार्थियों को अच्छे शिक्षक जीवनर्पयत याद रहते हैं, क्योंकि वे बच्चों को जीवन के हर मोड़ पर आगे बढ़ते रहने का हुनर सिखाते हैं, लेकिन दुखद बात यह है कि पिछले कुछ सालों में स्कूलों में बच्चों को मारने व पीटने की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं। ऐसे में शिक्षकों की छवि को भी नुकसान पहुंचा है, इसे विडंबना ही कहिए कि कुछ शिक्षक बावजूद इसके समझ नहीं पा रहे हैं। देश में कड़ा कानून बन जाने के बाद भी किसी न किसी हिस्से में प्रत्येक दिन ऐसी घटनाओं का घटित होना बहुत ही चिंता की बात है। हाल ही में उत्तरप्रदेश के एक स्कूल का वीडियो वायरल हुआ, जिसमें शिक्षिका एक बच्चे के गाल पर थप्पड़ बरसा रही थी। बच्चे का कसूर यह था कि अटेंडेंस के दौरान वह ड्राइंग कर रहा था। इस वजह से वह ‘यस मैडम’ नहीं बोल पाया। बस इसी से नाराज होकर उस टीचर ने बच्चे के गाल पर 40 थप्पड़ मारे। इसी तरह गाजियाबाद के एक छात्र को स्कूल में पेंसिल लेकर न जाना भारी पड़ गया। नाराज शिक्षक ने उस छात्र को करीब आधा घंटा मुर्गा बनाकर रखा और इसके बाद छात्र के कान पर जो

सोशल मीडिया में मुसीबत बनते फर्जी फोटो, मकसद समाज व देश के सौहाद्र्र को बिगाड़ना

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हाल ही में दो बड़ी घटनाओं में इस्तेमाल और वायरल हुईं फर्जी तस्वीरों ने तहलका मचा दिया था। बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी में लाठीचार्ज के बाद छात्र के बुरी तरह घायल होने के संदेश के साथ लड़की का चित्र वायरल हुआ और संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान की प्रतिनिधि मलीहा लोधी ने कश्मीर की फोटो बताकर एक महिला का चित्र भारतीय सुरक्षा बलों की ज्यादती को दिखाने के लिए प्रस्तुत किया। एक फोटो देश के जाने-माने विश्वविद्यालय में छात्रओं के धरने में हुई बर्बरता को बताने का कुप्रयास था, तो दूसरी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर दुनिया को भ्रमित करने वाला झूठ फैलाने की साजिश। गौरतलब है कि भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के भाषण के जवाब में यूएन में पाक की स्थायी प्रतिनिधि मलीहा लोधी ने कश्मीर में कथित ज्यादतियों का दावा करते हुए जो तस्वीर दिखाई वह इस्राइल की निकली। बीएचयू की घायल छात्र बताकर जिस लड़की का फोटो वायरल हुआ था, वह एकतरफा प्रेम में किए गए हमले का शिकार हुई थी। वह भी काफी दिनों पहले। यूएन में भारत की छवि बिगाड़ने के लिए दिखाई गई फोटो हीदी लिवाइन नाम की फोटो जर्नलिस्ट ने खींची थी। उनकी वेबसाइट पर दी ग

म्यांमार सीमा से लगे क्षेत्रों में बड़ी सैन्य कार्रवाई से प्राप्त हुआ लक्ष्य

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भारतीय सेना ने एक बार फिर से म्यांमार सीमा से लगे क्षेत्रों में बड़ी कार्रवाई की है। ऐसी कार्रवाई देश का आत्मविश्वास बढ़ाती हैं। ध्यान रखिए, इस कार्रवाई के एक दिन पहले थल सेना अध्यक्ष जनरल बिपिन रावत ने पाकिस्तान का नाम लिए बिना ही उसको निशाना बनाते हुए कहा था कि जरूरत हुई तो फिर से सर्जिकल स्ट्राइक की जाएगी। सेना प्रमुख ने आतंकवादियों के बारे में कहा था कि हम उनका इंतजार कर रहे हैं। वे आएं और उनको ढाई गज जमीन के अंदर डाल देने के लिए हम तैयार हैं। हालांकि, यह पूरा बयान कश्मीर के संदर्भ में था किंतु इसके अगले दिन यांमार सीमा पर कार्रवाई की खबरें आ गईं, इसीलिए इसे तुरंत सर्जिकल स्ट्राइक मान लिया गया था। यह कैसी कार्रवाई थी इसके बारे में केवल सेना ही बता सकती है और अब सेना कह रही है कि उसने म्यांमार में सर्जिकल स्ट्राइक नहीं की है तो हमें इस स्वीकार करना चाहिए। वैसे भी नाम में क्या रखा है। मूल बात है, लक्ष्य हासिल करना। इस समय भारत का लक्ष्य चाहे जमू कश्मीर में हो या पूवरेर में, वह है आतंकियों और उग्रवादियों की कमर तोड़ देना। उसके लिए सरकार की ओर से उन्हें पूरी छूट है और इसके परिणा