साइबर सुरक्षा को प्राथमिकता देने का समय


इतिहास के अब तक के सबसे बड़े साइबर अटैक ने पूरी दुनिया को झकझोर कर रख दिया है। सबसे बड़ी बात यह है कि यह अटैक अभी जारी है और इसके माध्यम से बड़े पैमाने पर फिरौती भी मांगी जा रही है। इस साइबर अटैक के तुरंत बाद दुनियाभर के सौ देशों के एक लाख25 हजार से ज्यादा कंप्यूटर सिस्टम हैक हो गए थे। इसका आंकड़ा अब लगातार बढ़ रहा है और इसने अब लगभग पूरी दुनिया को चपेट में ले लिया है।

इसकी शुरुआत पिछले शुक्रवार को ब्रिटेन की नेशनल हेल्थ सर्विस से हुई। ब्रिटेन के कई अस्पतालों में कंप्यूटर्स और फोन बंद हो गए। इसे रैनसमवेयर अटैक कहा जा रहा है। यह ऐसा वायरस है, जिससे डाटा लॉक हो जाता है। उसे अनलॉक करने के लिए फिरौती के तौर पर हैकर्स बिटकॉइंस या डालर्स में रकम मांगते हैं। रैनसमवेयर एक तरह का सॉफ्टवेयर वायरस है। इसके कंप्यूटर में आते ही आप अपनी किसी भी फाइल का इस्तेमाल नहीं कर सकते। अगर आप फाइल खोलना चाहेंगे तो आपको हैकर्स को तीन सौ बिटकॉइन देने होंगे। पैसा तय वक्त में ही देना होगा, नहीं तो वायरस ईमेल के जरिए और फैल जाएगा। यह एक नए किस्म का अपराध है, जिसमें अपराधी को पकड़ना सरल नहीं होता। जिस तरह रुपए, डालर और यूरो खरीदे जाते हैं, उसी तरह बिटकॉइन की भी खरीद-बिक्री होती है। ऑनलाइन पेमेंट के अलावा इसे ट्रेडिशनल करंसी में भी बदला जाता है। बिटकॉइन की खरीद-बिक्री के लिए एक्सचेंज भी हैं, पर उनका कोई ऑफिशियल शेप नहीं है। बिटकॉइन एक नई इनोवेटिव डिजिटल या वचरुअल करंसी होती है। यह ब्लैकमनी, हवाला और टेररिस्ट एक्टिविटीज में ज्यादा इस्तेमाल किए जाने की वजह से खतरनाक है। भारत के आरबीआई समेत सभी देशों के रेग्युलेटरों ने इसे लीगल वैलिडिटी नहीं दी है। इसके बावजूद यह करंसी चल रही है।
बहरहाल, इस वायरस के पीछे लगे दिमाग ने यह अच्छी तरह दिखा दिया कि कंप्यूटर और साइबर तकनीक की मदद से किसी भी अपराध को अच्छी तरह से और काफी बड़े पैमाने पर अंजाम दिया जा सकता है। इसका गणित बहुत सीधा है। अगर आधे शिकार भी फिरौती दे दें, तो हैकर्स के हाथों में बैठे-बैठे ही कई हजार करोड़ की रकम पहुंच जाएगी। अनुभव के आधार पर कहा जा सकता है कि हमें कभी पता ही नहीं चलेगा कि यह फिरौती वसूलने वाले कौन थे, उन्होंने इस रकम का क्या किया। हम यह भी नहीं जान पाएंगे कि उनका अगला हमला कब होगा, कैसा होगा। सच यही है कि ज्यादातर हैकर कानून की पकड़ से बच निकलते हैं। कितने प्रतिशत पकड़े जाते हैं, इसके प्रामाणिक आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। गौरतलब है कि इससे पहले साल-2013 में याहू का डाटा चोरी हुआ था। उसके करीब एक अरब अकाउंट्स से डाटा चोरी किया गया था। लेकिन दुनिया के सौ देशों में एक साथ साइबर अटैक का यह पहला मामला है। फिनलैंड की साइबर सिक्युरिटी कंपनी एफ-सिक्योर के चीफ रिसर्च अफसर माइको हाइपोनेन के मुताबिक, रैनसमवेयर इतिहास का सबसे बड़ा साइबर अटैक है। इसका हमारे देश पर भी असर पड़ा है। भारत में रैनसमवेयर वायरस का असर आंध्रप्रदेश के पुलिस नेटवर्क पर पड़ा है। आंध्र पुलिस का 25 फीसदी इंटरनेट नेटवर्क शनिवार सुबह ठप पड़ गया था, तो 25 फीसदी सिस्टम्स पर काम नहीं हो सका।
लिहाजा, असली सवाल यही है कि साइबर हमलों से निपटने के लिए हम कितने तैयार हैं? साइबर विशेषज्ञों के अनुसार भारत में जितने सर्वर मौजूद हैं, वे हैकिंग प्रूफ नहीं हैं। हम तभी जागते हैं, जब कोई बड़ा साइबर अटैक हो और हैकर्स के नए तरीकों का सॉल्यूशन ढूंढने में हमें महीनों लग जाते हैं। फिलहाल तो इस साइबर हमले के बाद रिजर्व बैंक ने बैंकों को चेतावनी जारी की है। उसने कहा है कि रैमसमवेयर वायरस का अटैक एटीएम पर हो सकता है, इसलिए बैंक सावधानी बरतें। यह अपील सही भी है। आंकड़े गवाह हैं कि पिछले पांच साल में हैकिंग के मामले तीन गुना बढ़ गए हैं। डिजिटल इंडिया और कैशलेस इकोनॉमी के हल्ले के बीच साइबर सुरक्षा को मजबूत करने के प्रति सरकार ज्यादा गंभीर नहीं है। गृह मंत्रलय की रिपोर्ट के मुताबिक गत पांच वर्षो की तुलना में इस वर्ष साइबर अपराध 60 फीसदी से ज्यादा ज्यादा बढ़े हैं। उसके आंकड़ों के मुताबिक, इस वर्ष 32 हजार से ज्यादा साइबर अपराध दर्ज किए गए हैं, जबकि पिछले तीन साल में 96 हजार से ज्यादा वेबसाइट्स हैक की गई हैं। केपीएमजी की रिपोर्ट के मुताबिक, देश में पिछले साल करीब 72 प्रतिशत कंपनियों पर साइबर हमले हुए और 63 प्रतिशत कंपनियों को इनसे आर्थिक नुकसान भी हुआ। मशहूर रिसर्च फर्म गार्टनर की एक रिपोर्ट के मुताबिक, साल-2020 तक ऑनलाइन कारोबार करने वाली 60 फीसदी कंपनियों पर साइबर अटैक का खतरा मंडराएगा।
इधर, देश के सभी आईपी एड्रेस की निगरानी करने वाली साइबर सुरक्षा एजेंसी (सीईआरटी-इन) कह रही है कि साल-2016 की पहली तिमाही में ही आठ हजार 56 वेबसाइट्स हैक की गई थीं, यानी हर दिन करीब 90 साइट्स। ऐसे सबसे ज्यादा हमले फाइनेंशियल व इंश्योरेंस सेक्टर पर किए गए हैं। सरकार लगातार कैशलेस ट्रांजेक्शसन को बढ़ावा देने की बात कर रही है, लेकिन इसमें साइबर हमले का खतरा भी काफी बढ़ गया है। देश के सरकारी रक्षा, विज्ञान और शोध संस्थान व राजनयिक दूतावासों पर साइबर जासूसी का आतंक मंडरा रहा है। अत: वह समय आ गया है, जब सरकार इन हमलों को गंभीरता से ले। हमारी तकनीक हैकर्स की तकनीक से उन्नत होनी चाहिए, लेकिन ऐसा है नहीं। अगर सरकार साइबर अटैक रोकने की दिशा में काम नहीं करेगी तो खतरा बढ़ता चला जाएगा।

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