अमरनाथ यात्रा पर इस बार कुछ ज्यादा ही खतरा,सतर्कता जरूरी



यदि खुफिया एजेंसियां यह कह रही हैं कि अमरनाथ यात्रा पर इस बार कुछ ज्यादा ही खतरा है तो उनकी यह आशंका गलत नहीं मानी जा सकती। अमरनाथ की पवित्र गुफा दक्षिण कश्मीर में है। जम्मू से अमरनाथ के दो ही रास्ते हैं। या तो बालटाल होकर वहां तक पहुंचा जा सकता है या फिर पहलगाम होकर। पहलगाम वह जगह है, जो अगर बहुत अशांत नहीं है तो बहुत शांत भी नहीं है। अशांत तो बालटाल भी नहीं है, पर श्रीनगर एवं अनंतनाग जैसे इलाके इसके आसपास हैं, जो सबसे ज्यादा अशांत हैं। अत: यह मानना सही नहीं होगा कि आतंकवादी और अलगाववादी 40 दिन तक चलने वाली पवित्र अमरनाथ यात्रा में कोई बाधा पैदा करने की कुचेष्टा नहीं करेंगे। अलगाववादी तो इस यात्रा के खिलाफ यूं भी रहते हैं। 2013 में सैयद अलीशाह गिलानी ने इसका खुलकर विरोध किया था। तब उनके दबाव में आकर अमरनाथ यात्रियों की संख्या को कम करना पड़ा था। इसके लिए पंजीकरण चार लाख से ज्यादा यात्रियों ने कराया था, जबकि बाबा अमरनाथ के दर्शनों का लाभ मात्र ढाई-पौने तीन लाख श्रद्धालु ही ले पाए थे।

अलगाववादी इस वार्षिक यात्रा का विरोध इसलिए करते हैं कि उन्हें यह लगता है कि इसके लिए कश्मीर में भारी हिंदुओं का पहुंचना घाटी की मुस्लिम-बहुल पहचान को समाप्त करने की साजिश है। वैसे, उनकी यह धारणा गलत होती है। श्रद्धालु घाटी में रहने के लिए नहीं, बल्कि बाबा अमरनाथ के दर्शन करने जाते हैं। वहां जो हिंदू रहते थे, उनमें से ज्यादातर को तो अलगाववादियों ने खदेड़ ही दिया है, वर्षो पहले। अत: अमरनाथ यात्रा से कश्मीर की ‘पहचान’ को जरा भी खतरा नहीं है, लेकिन वे इसका विरोध करते रहे हैं। यह सही है कि इस बार की अमरनाथ यात्रा को लेकर अलगाववादियों का अभी तक कोई बयान नहीं आया है। शायद इसकी वजह यही है कि केंद्र में भाजपा की सरकार है, जो उनके सामने झुक नहीं रही है और यह पार्टी राज्य सरकार में भी शामिल है। इसलिए महबूबा सरकार भी खुलकर अलगाववादियों का पक्ष नहीं ले पा रही है, पर इसका अर्थ यह नहीं है कि अमरनाथ यात्रा निरापद है।
हां, संदेह इसमें भी नहीं है कि केंद्र सरकार ने अमरनाथ यात्रा की सुरक्षा के पुख्ता प्रबंध किए हैं। यात्रा के मार्ग और गुफा के आसपास के पूरे इलाके पर सैटेलाइट और ड्रोन से नजर रखी जा रही है। फिर, राज्य की पुलिस तो मुस्तैद है ही, सेना और सुरक्षा बल भी सतर्क हैं। अब जबकि खुफिया रिपोर्ट आ गई है, तो यात्रा की सुरक्षा का यदि कोई पेच ढीला रह गया होगा तो वह उसे भी कस देगी। वहीं, सबसे बड़ी बात यह है कि कश्मीर में अशांति के बावजूद भक्तों के उत्साह में कोई कमी नहीं है। इस बार भोलेनाथ के दर्शनों के लिए ढाई लाख श्रद्धालु जाएंगे। उनका यह उत्साह आतंकवादियों के हौसलों को पस्त करेगा, फिर भी संकट की आशंका को पूरी तरह खारिज नहीं किया जा सकता। आतंकी खुद मरकर दूसरों को मारते हैं। अत: यह सुनिश्चित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी जानी चाहिए कि श्रद्धालु निर्भय होकर बाबा के दर्शन कर सकेंगे।

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