दुनिया की ताकतवर महाशक्ति घेरे में, अमेरिकी धरती से उसी पर निशाना



अमेरिका चाहे कितना भी लोकतांत्रिक क्यों न हो, लेकिन हम सामान्य अमेरिकी नागरिकों को छोड़ दें, तो वह अपनी धरती से किसी विदेशी नेता को अपनी आलोचना करने का मौका शायद कभी नहीं देता। हां, न्यूयॉर्क का संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय अपवाद हो सकता है। पर नरेंद्र मोदी ने जिस तरह वाशिंगटन में भारतीयों को संबोधित करते हुए अमेरिका पर भी सवाल उठाया है, उससे वैश्विक राजनीति में भारत और भारतीयता की धमक का ही परिचय मिलता है। हालांकि, उन्होंने अमेरिका को सीधे निशाने पर नहीं लिया, लेकिन चीन के बहाने दुनिया की सबसे ताकतवर महाशक्ति को घेरे में जरूर ले लिया। उन्होंने चीन की ओर इशारा करते हुए कहा कि भारत वैश्विक नियमों का पालन करता है, क्योंकि हमारी यही परंपरा है। मोदी ने कहा कि भारत वैश्विक नियमों का उल्लंघन करके अपने लक्ष्यों को पूरा करने पर भरोसा नहीं करता है। यह कहकर उन्होंने हिंद महासागर में चीन की बढ़ती दादागीरी की ओर जहां दुनिया का ध्यान आकर्षित किया है, वहीं उन्होंने जलवायु परिवर्तन को लेकर हुए पेरिस सम्मेलन से पीछे हटने के ट्रंप के फैसले पर भी सवाल उठाया है।
यहां ध्यान देने योग्य तथ्य यह भी है कि हाल ही में अपनी फ्रांस यात्र के दौरान भी उन्होंने पेरिस जलवायु समझौते से बाहर निकलने को लेकर ट्रंप पर सवाल उठाया था। बहरहाल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का वाशिंगटन का यह भाषण भले ही विदेशी भूमि पर दिए गए उनके दूसरे भाषणों जितना प्रभावशाली न बन पड़ा हो, लेकिन उसकी तासीर बेहद मारक रही। उन्होंने पाकिस्तान की सीमा में किए गए सर्जिकल स्ट्राइक का हवाला देकर भारत की स्थिति को पूरी तरह से साफ कर दिया। उन्होंने कहा कि दुनिया ने इसके जरिए यह देखा है कि भारत जरूरत पड़ने पर अपनी ताकत का इस्तेमाल कर सकता है। लेकिन वह वैश्विक नियमों और कानूनों का उल्लंघन नहीं करता। उन्होंने यह सब कहकर पाकिस्तान को भी एक तरह से चेतावनी दे दी है कि अब वे दिन बीत चुके हैं, जब वह भारत के खिलाफ दुनिया के दूसरे देशों के सामने रोना रोता था और कुछ देश उसके साथ खड़े हो जाते थे। अब उसका साथ कोई नहीं देगा, उसे अपनी हरकतों से बाज आना पड़ेगा।
लिहाजा, कहा जा सकता है कि इस एक भाषण के जरिए मोदी ने जिस तरह दो महाशक्तियों, अमेरिका और चीन को वैश्विक जनमत के सामने कठघरे में खड़ा किया है और पाकिस्तान को चेतावनी दी है, वह उनके अंतरराष्ट्रीय राजनय की सूझ-बूझ के साथ ही साथ भारत की बढ़ती वैश्विक ताकत का भी प्रतीक बन गया है। इस भाषण के जरिए भारत ने अपनी ताकत के साथ ही अपने संयम और अपनी जवाबदेही को भी जाहिर कर दिया है। इस लिहाज से मोदी के इस भाषण को दूरंदेशी माना जा सकता है, जिसके जरिए उन्होंने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थाई सीट के लिए भारत की दावेदारी भी मजबूती से जताई है। अब जबकि मोदी और ट्रंप की मुलाकात होगी, तो इस भाषण का उस पर भी असर दिखेगा।

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