क्या राजनीति में आएंगे तमिल सुपर स्टार रजनीकांत?



कुछ ही दिन पहले तमिल सुपर स्टार रजनीकांत ने अपने प्रशंसकों को ‘अत्यंत अल्प सूचना पर भी किसी युद्ध के लिए तैयार रहने’ का आह्वान कर सबको चौंका दिया था। अब यदि इस ‘युद्ध’ को राजनीति में प्रवेश की व्यंजनापूर्ण अभिव्यक्ति माना जाए, तो शायद यह उनकी सबसे ताजा घोषणा होगी। वे वाकई क्या करेंगे, इस सवाल का जवाब तो शायद वे खुद ही बेहतर दे पाएं। हालांकि, उनका यह बयान ही राज्य की राजनीति में तूफान लाने हेतु पर्याप्त था, खासकर ऐसे हालात में, जब राजनीति में हाशिए के तमाम लोग व दल उनके राजनीति में आने के खिलाफ हैं और वे उनका खुलकर विरोध कर रहे हैं।

हालांकि, तमाम लोग किंतु-परंतु के साथ राजनीति में उनके संभावित प्रवेश का स्वागत भी करते हैं। भारतीय जनता पार्टी उनके बयान से सबसे ज्यादा खुश है। तमिलनाडु की राजनीति में जगह बनाने को बेचैन भाजपा रजनीकांत के राजनीति में प्रवेश को अपने लिए बड़ी संभावना के रूप में देख रही है। उसकी रणनीति एकदम साफ है। अयोग्य और भ्रष्ट ठहराए जा चुके द्रविड़ दल राज्य की राजनीति के लिए खुद को ही एकमात्र विकल्प मानते हैं। लेकिन भाजपा के लिए यह एकदम अनुकूल है कि एआईएडीएमके विभाजन के कगार पर है और ओ. पन्नीरसेल्वम और ई. पलानीसामी का रोज का टकराव आम है। वहीं भाजपा दिवंगत मुख्यमंत्री जयललिता का नाम लेने से बचने की कोशिश भले ही करे, परंतु उनकी सबसे करीबी एन. शशिकला का आय से अधिक संपत्ति के मामले में सजा पाकर जेल में होना किसी से छिपा नहीं है। इन दोनों के साथ ही कांग्रेस के भी तमाम नेताओं का घोटालों एवं विवादों में फंसा होना बहुत कुछ कह देता है। तमिल राष्ट्रवाद के लिए लड़ने वाले हाशिए के दल भी कभी जनता में पैठ नहीं बना पाए। अब बहुत कम जन-समर्थन वाली भाजपा को भी एक ऐसे ही चमत्कारिक नाम की तलाश है, जो उसे वर्तमान संकट से बाहर निकाल सके।
गौरतलब है कि रजनीकांत बहुत संभलकर कदम रख रहे हैं। उनके पत्ते समझना बहुत आसान भी नहीं है। भाजपा में शामिल होने और न होने पर शायद वे खुद से तर्क-वितर्क की स्थिति में हैं। वे अपनी सुपर स्टार छवि को लेकर बेहद सतर्क हैं और ऐसा कोई कदम नहीं उठाना चाहेंगे, जो उनको जरा सा भी नुकसान पहुंचाने वाला हो। वहीं भाजपा सिनेमाई चमक-दमक से निकली राजनीति से प्रभावित है और उसे रजनीकांत हर दृष्टिकोण से मुफीद भी दिख रहे हैं।
पार्टी का मानना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की निर्विवाद रूप से एक महान छवि है, पर वह यह भी जानती है कि उत्तरप्रदेश या अन्य किसी उत्तर भारतीय राज्य के विपरीत तमिलनाडु को एक स्थानीय चेहरे की दरकार रहेगी। रजनीकांत का शुरुआती संघर्ष और फिल्मी नायकत्व किसी से छिपा नहीं है। प्रशंसक उन्हें भगवान मानते हैं। वे उनकी फिल्म रिलीज के दिन तमाम कर्मकांड के साथ उनके कटआउट्स को दूध से नहलाते हैं। उनके नाम पर मरने-मिटने वाले भी कम नहीं हैं। फिर भी रजनीकांत भाजपा के लिए रामबाण साबित होंगे, यह नहीं कहा जा सकता।
वैसे, देखा जाए तो रजनीकांत ने कभी भी अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं का स्पष्ट रूप से इजहार नहीं किया। वे कभी किसी राजनीतिक आंदोलन से भी नहीं जुड़े। यहां की राजनीति में करुणानिधि व एमजीआर ने सबसे पहले सिनेमा की पहुंच को समझा व सामाजिक संदेश फैलाने के सशक्त माध्यम के रूप में उसका इस्तेमाल किया। उन दिनों सिनेमाई नायक दमन, शोषण और उत्पीड़न से लड़ रहे थे, महिलाओं और सामाजिक रूप से पिछड़े वर्ग के समान अधिकार की वकालत कर रहे थे। चेन्नई के कई स्टूडियो भी अपने-अपने नए प्रयोग कर रहे थे।
इसी दौर में रजनीकांत को पहला फिल्मी ब्रेक ख्यात फिल्मकार बालाचंदर की फिल्म में मिला। सच है कि रजनीकांत बाक्स ऑफिस पर सफल रहे, लेकिन उन्होंने अपनी राजनीतिक प्रतिबद्धताएं या इच्छाएं कभी भी खुलकर जाहिर नहीं कीं। साल-1999 में पदायप्पा फिल्म रिलीज होने के वक्त एक बार जरूर लगा था कि वे सिनेमा के जरिए कोई संदेश देना चाहते हैं, क्योंकि यह फिल्म रजनीकांत और बड़े राजनीतिक रसूख वाली एक कद्दावर महिला के संघर्ष की कहानी थी। इसे असल जीवन की जयललिता के समान माना गया था, हालांकि यह बात साबित नहीं हो सकी थी। फिर बात आई-गई हो गई थी।
इसके बाद रजनीकांत साल-1995 में पहली बार राजनीति में सीधे उतरते तब दिखे, जब उस वक्त के प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हाराव से मिलने के बाद उन्होंने न सिर्फ राव सरकार की आर्थिक नीतियों की तारीफ की, बल्कि कांग्रेस का भी समर्थन किया। अगले ही साल वे डीएमके और राज्य के नए गठबंधन तमिल मनीला कांग्रेस के साथ खड़े दिखाई दिए। चुनाव में गठबंधन को जीत मिली। अब इस बात के प्रमाण तो हैं नहीं कि चुनाव जिताने में रजनीकांत की कितनी भूमिका थी, पर प्रशंसक तो यही मानते हैं।
यह भी सच है कि उस वक्त रजनीकांत ने एक बड़ा ही तीखा बयान दिया था कि एआईएडीएमके सत्ता में वापस आई, तो ‘ईश्वर भी तमिलनाडु को बचा नहीं पाएगा।’ पर राजनीतिक विश्लेषक इसमें ज्यादा कुछ पढ़ने की गुंजाइश नहीं देखते। उनका मानना है कि उनकी टिप्पणी चुनाव के दौरान लोगों का मन मिजाज पढ़ने व संभावित नतीजों के आकलन का नतीजा भर थी। लेकिन अब रजनीकांत तमिलनाडु की राजनीति में आए शून्य को महसूस कर रहे हैं। करुणानिधि सक्रिय और जयललिता जब तक जीवित रहीं, तब तक उन्होंने खुद को राजनीति से दूर रखा, पर वे अब राजनीति में आ सकते हैं। हां, विश्लेषक मानते हैं कि रजनीकांत भाजपा में जाने की बजाय खुद की पहचान बनाना ही पसंद करेंगे।
हालांकि, उनका सीधे तौर पर किसी बयान से चर्चा में न रहना बहस का विषय है। वे आमतौर पर मध्यमार्गी बयान देकर बचते रहे हैं। वे कभी भ्रष्टाचार मुक्त समाज की बात करेंगे या यह कहते दिख जाएंगे कि व्यक्तिगत रूप से नेता अच्छे होते हैं, गलती तो सिस्टम में होती है। वे कभी गलती से भी यह नहीं कहते कि वे खुद सिस्टम को कैसे ठीक करेंगे? जबकि उनकी अधिकांश फिल्मों में राजनीति व नौकरशाही में फैले भ्रष्टाचार से निपटने की कार्ययोजना का ही फिल्मांकन होता है। उनकी सबसे चर्चित फिल्म ‘शिवाजी द बॉस’ तो इसी फामरूले पर बनी व लोगों ने उसे खूब पसंद भी किया था।
अब जबकि तमिलनाडु में जयललिता के निधन व बीमार के.करुणानिधि की पार्टी में पारिवारिक विवाद से जो राजनीतिक निराशा पैदा हुई है, उसके चलते रजनीकांत के समर्थकों की नजर में उनके राजनीति में प्रवेश का यह बिलकुल सही समय है। उन्हें यह भी उम्मीद है कि इस बार वे ऐसी कोई गलती नहीं करेंगे, जो पिछले 25 वर्ष से करते आ रहे हैं, राजनीति में न आने की गलती, पर फैसला रजनी को ही करना है।

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