यात्रा अब खत्म, शंकर सिंह बाघेला की घर-वापसी संभव



लगता है कि गुजरात के नेता शंकर सिंह बाघेला की कांग्रेस के साथ चली आ रही 11 साल पुरानी यात्रा अब खत्म होने जा रही है। कहा जा रहा है कि उन्होंने अपनी मौजूदा अध्यक्ष सोनिया गांधी को बता दिया है कि कांग्रेस के प्रति उनकी वचनबद्धता का वक्त खत्म होने वाला है। वैसे, राहुल गांधी की 30 जून को प्रस्तावित गुजरात यात्रा का लोगों को इंतजार है। वे बाघेला से भी मिलेंगे, पर माना यह जा रहा है कि राहुल गांधी से मुलाकात के बाद बाघेला पार्टी छोड़ सकते हैं। कारण, वे कांग्रेस में खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। गुजरात के पुराने कांग्रेसी नेता बाघेला के खिलाफ हैं। केशुभाई पटेल को 1995 में मुख्य मंत्री बनाने से नाराज बाघेला ने दो वर्ष बाद भाजपा छोड़ दी थी। 1996 के आम चुनावों में गोधरा सीट से बाघेला की हार हुई थी। इसके लिए उन्होंने भितरघात को जिम्मेदार माना था। इसका कांग्रेस ने फायदा उठाया और भाजपा से उन्हें अलग कर उसे कमजोर करने की कोशिश की।
तब बाघेला की अगुवाई में भाजपा को तोड़कर कांग्रेस ने कुछ दिन अपनी सरकार तो चला ली, लेकिन इसके बाद हुए चुनाव में भाजपा को ही जीत मिली, जबकि तब कांग्रेस की सत्ता में वापसी की उम्मीदों के केंद्र बाघेला ही थे। इसके बाद उन्होंने कांग्रेस की उम्मीदों को कई बार तोड़ा और पार्टी में उन्होंने अपनी अहमियत खो दी। अब तो उन्हें किनारे लगाने की कोशिश भी होने लगी है। जाहिर है कि इससे वे आहत हैं। जब कोई ताकतवर शख्सियत आहत होती है, तो वह अपने लिए अलग राह तलाशने लगती है। बाघेला ने हाल के दिनों में जिस तरह से भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से दो बार मुलाकात की है, उसका संकेत साफ है। संकेत यह है कि वे उस भाजपा का दामन थाम सकते हैं, जिसे खड़ा करने में पिछली सदी के आखिरी दशक में उन्होंने सबसे ज्यादा जोर लगाया था। उन्होंने कांग्रेस को खड़ा करने में भी कोई कसर बाकी नहीं रखी, मगर उनका जादू चल नहीं पाया। इसका कारण यह रहा कि कांग्रेस के ही नेताओं ने उनका साथ नहीं दिया। बाघेला की इस विफलता ने उन्हें कांग्रेस आलाकमान की नजरों से तक उतार दिया।
राजनीति वैसे भी बहुत निष्ठुर होती है। उपयोगिता खत्म होने के बाद तो वह किसी को भी दूध की मक्खी की तरह निकाल फेंकती है, तो बाघेला तो बहुत छोटी चीज हैं। उन्हें इसका आभास हो गया है कि अब कांग्रेस में वे कमजोर पड़ गए हैं। इसलिए वे खुद ही अलग राह तलाश रहे हैं। इधर, भाजपा को तो उनकी जरूरत है ही। यह इसलिए कि हार्दिक पटेल के आंदोलन के बाद से गुजरात में वह कमजोर हुई है। भाजपा का सबसे बड़ा समर्थक पाटीदार समुदाय उसके साथ अब भी है, यह कोई नहीं कह सकता। इस वर्ष के अंत में गुजरात में विधानसभा का चुनाव होना है। भाजपा को हर हाल में यह चुनाव जीतना ही होगा, अन्यथा वह नरेंद्र मोदी और अमित शाह की निजी हार मानी जाएगी। चूंकि बाघेला क्षत्रिय समुदाय के हैं। अत: उनकी घर-वापसी भाजपा के उस नुकसान की भरपाई करेगी, जो पटेलों के दूर होने की वजह से हो सकता है।

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