मोदी नई परंपरा की शुरुआत की तैयारी में, चीन विरोधियों को जोड़ने की पहल



गणतंत्र दिवस समारोह में विकसित देशों के राष्ट्रध्यक्षों को न बुलाने की परंपरा तोड़ चुके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब एक नई परंपरा की शुरुआत करने की तैयारी में हैं। बताने की जरूरत नहीं कि मोदी के कार्यकाल में अमेरिकी और फ्रांसीसी राष्ट्रपति हमारे गणतंत्र दिवस कार्यक्रम की अध्यक्षता कर चुके हैं, लेकिन 2018 के लिए सरकार की तैयारी आसियान (दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के संगठन) के राष्ट्राध्यक्षों को बुलाने की है। अभी इसके बारे में संपूर्ण जानकारी देश से साझा नहीं की गई है, मगर यह स्पष्ट है कि अगले वर्ष गणतंत्र दिवस कार्यक्रम में बुलाया आसियान देशों के नेताओं को ही जाएगा। आसियान में 10 देश शामिल हैं-लाओ पीडीआर, म्यांमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड, मलेशिया, ब्रुनेई, इंडोनेशिया, वियतनाम और कंबोडिया। वैसे तो ये सभी देश किसी न किसी कारण से चीन से दुखी हैं, पर फिलीपींस, वियतनाम, ब्रुनेई और मलेशिया का चीन से सीधा झगड़ा है। दक्षिण चीन सागर को चीन अपना मानता है, जबकि अंतरराष्ट्रीय नियमों के मुताबिक एक निश्चित दूरी तक उन सभी देशों का समुद्र पर अधिकार होता है, जिनका अपना भू-भाग समुद्र तट तक विस्तृत होता है।
लेकिन चीन इस अंतरराष्ट्रीय कानून को नहीं मानता। अत: उसने ब्रुनेई, फिलीपींस, वियतनाम और मलेशिया को दक्षिण चीन सागर से पूरी तरह बेदखल कर दिया है। यह मामला अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में भी गया था, जहां से निर्णय चीन के खिलाफ ही आया था। पर उसने यह निर्णय नहीं माना। अंतरराष्ट्रीय बिरादरी भी चीन को न्यायालय का निर्णय मानने के लिए बाध्य नहीं कर पाई। इसलिए स्थिति यह है कि ब्रुनेई, फिलीपींस, वियतनाम और मलेशिया के तो जहाज भी दक्षिण चीन सागर से नहीं गुजर पाते। इस विवाद से दो देश और जुड़े हुए हैं-दक्षिण कोरिया और जापान। चीन के साथ इनका पूर्वी चीन सागर को लेकर भी विवाद है, जहां दक्षिण चीन सागर की ही तर्ज पर उसने कृत्रिम द्वीप बना लिए हैं और उन पर उसकी नौसेना के जहाज आते-जाते रहते हैं। दक्षिण कोरिया तो खैर शांत है, पर कभी-कभी जापान प्रतीकात्मक विरोध जताता रहता है, दक्षिण व पूर्वी चीन सागरों में। ऐसा ही विरोध अमेरिका भी जताता है, इन दोनों ही सागरों के रास्ते से अपने जंगी जहाज गुजार कर। मगर, ब्रुनेई और फिलीपींस जैसे देश तो प्रतीकात्मक विरोध भी दर्ज नहीं करा पाते। इस तरह के विरोधों से वैसे भी कुछ होता नहीं हैं।
तनातनी के इस माहौल में आसियान देशों के नेताओं को बुलाने की मोदी सरकार की पहल निश्चित ही चीन पर दबाव बनाने की कूटनीति है। संदेश साफ है कि भारत एशिया में चीन के विरोध में एक मोर्चा भी बनाना चाहता है और उसका नेतृत्व भी करना चाहता है। भूटान के पक्ष में खड़े होकर हमने दिखा दिया है कि भारत नेतृत्व कर सकता है और चीन विरोधी देश अगर उस पर भरोसा कर लें तो फायदे में ही रहेंगे, क्योंकि हम दूसरे देशों की संप्रभुता का सम्मान करते हैं, हम विस्तारवादी नहीं हैं। ये देश हम पर निश्चित ही भरोसा करेंगे और इनके नेता हमारे गणतंत्र दिवस समारोह में शिरकत करेंगे।

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