भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का ‘मिशन 350’ कठिन नहीं



भारतीय जनता पार्टी की विद्यार्थी इकाई है अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद। विद्यार्थियों के बीच काम करने वाला देश का सबसे बड़ा संगठन। किसी भी कार्य की सफलता और लक्ष्य की प्राप्ति के लिए संगठन का एक नीति वाक्य है-पूर्व योजना, पूर्ण योजना। यानी किसी बड़े लक्ष्य को प्राप्त करना है, तो समय रहते उसकी योजना बनाना आवश्यक है। पूर्व योजना के साथ ही पूर्ण योजना भी जरूरी है। यानी लक्ष्य तक पहुंच रहे हर सोपान पर मजबूती से कदम रखने की योजना। अपनी कमजोरी और ताकत का आकलन। यह सही है कि उचित समय पर जब हम पूरी तैयारी के साथ कदम बढ़ाते हैं, तब मंजिल पर जाकर ही रुकते हैं।
बीते समय के पन्ने पलट कर देखें तो पाएंगे कि अपने विद्यार्थी संगठन की तरह भाजपा भी ‘पूर्व योजना -पूर्ण योजना’ के सिद्धांत का पालन कर रही है। यही कारण है कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने दो साल पहले ही वर्ष 2019 के चुनाव का बिगुल फूंक दिया है। उन्होंने मध्यप्रदेश के दौरे पर आने से एक दिन पहले दिल्ली में पार्टी के 31 बड़े नेताओं के साथ बैठक कर 2019 के आम चुनाव में 350 सीटें जीतने का लक्ष्य तय किया है। यह लक्ष्य बड़ा जरूर दिख रहा है, लेकिन आज की स्थिति में भाजपा के लिए असंभव नहीं है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता एवं अमित शाह की चुनावी रणनीति के कारण यह लक्ष्य कठिन नहीं दिखता। वैसे भी अमित शाह बड़े व कठिन लक्ष्य लेने के साथ ही उन्हें प्राप्त करने में सिद्ध हैं। आम चुनाव 2014 और उत्तरप्रदेश के चुनाव में उन्होंने यह करके दिखाया भी है। सत्तारूढ़ पार्टी दो साल पहले चुनाव की तैयारियों की समीक्षा/घोषणा कर रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह की राजनीति को नहीं समझने वाले लोगों के लिए यह चौंकाने वाली घटना है। वर्तमान समय में भारतीय राजनीति के ‘चाणक्य’ अमित शाह को जो थोड़ा बहुत भी जानते-समझते हैं, उन्हें पता है कि 2019 की तैयारी तो 2014 से ही शुरू हो गई थी।
2014 के आम चुनाव में प्रचंड और अभूतपूर्व बहुमत मिलने के बाद से ही भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने 2019 के चुनाव की योजना प्रारंभ कर दी थी। समूचे देश में भाजपा के विस्तार का संकल्प इसी योजना के अंतर्गत आता है। पिछले तीन साल में उन्होंने सबसे अधिक ध्यान उन राज्यों पर लगाया है, जहां भाजपा का झंडा नहीं है। अमित शाह की योजना है कि कैसे भी इन राज्यों से भाजपा को कुछेक सीटें जीतनी चाहिए। असम और मणिपुर जैसे राज्यों में तो शाह की योजना से भाजपा ने सरकार तक बना ली है, जिसका लाभ 2019 के लोकसभा चुनाव में मिलेगा ही।
यदि योजना के अनुसार अमित शाह पूवरेत्तर व दक्षिण के राज्यों में कमल खिलाने में सफल हो जाते हैं, तब ‘मिशन-350’ बहुत ही आसान हो जाएगा। शाह की नजर तमिलनाडु, ओडिशा, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, केरल, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल और उत्तर पूर्वी राज्यों की 200 लोकसभा सीटों पर है। वर्तमान समय में इन राज्यों में जिस प्रकार की राजनीतिक हलचल देखी जा रही है, उससे प्रतीत होता है कि कुछ सीटें तो भाजपा के खाते में आ सकती हैं। यदि थोड़ी मेहनत कर ली जाए, तो।
नरेंद्र मोदी को हराने के लिए एकजुट होने का प्रयास कर रहे विपक्ष में मिशन-350 की खबर ने हड़कंप मचा दिया है। क्योंकि, विपक्ष को पता है कि अमित शाह ने 350 का आंकड़ा हवा में नहीं दिया होगा। एक-एक सीट का आकलन करने के बाद उन्होंने यह लक्ष्य तय किया है। पिछले तीन साल में उन्होंने समूचे देश की परिक्रमा लगाकर जनमानस का मन टटोलने का प्रयास किया है। बूथ स्तर की योजना में इस समय अमित शाह का मुकाबला किसी भी पार्टी का कोई नेता नहीं कर सकता। अपनी इसी शक्ति के आधार पर वे सटीक योजना बना पाते हैं। उन्हें पता होता है कि पार्टी कहां कमजोर है और कहां मजबूत। कहां ज्यादा काम की जरूरत है और कहां थोड़ी सक्रियता भी काफी है।
वर्ष-2019 की तैयारियों के संदर्भ में अमित शाह ने मंत्रियों को एक प्रजेंटेशन के माध्यम से उन 150 सीटों की स्थिति बताई है, जहां 2014 में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा था। उन्होंने मंत्रियों को बताया है कि 350 के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए इन सीटों पर दोगुनी मेहनत करने की जरूरत है। अमित शाह मिशन-350 की तैयारियों में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ना चाहते हैं। इसलिए वे देश के अलग-अलग राज्यों में प्रवास कर रहे हैं। अब तक वे जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, त्रिपुरा, उत्तरप्रदेश, पश्चिम बंगाल और ओडिशा जा चुके हैं। उन्होंने एक लाख किलोमीटर यात्र का लक्ष्य लिया है। वह हर माह 20 हजार किमी का सफर कर रहे हैं। इसी क्रम में वे अब मध्यप्रदेश में हैं।
अमित शाह के ‘मिशन-350’ के तहत 19 राज्य ऐसे हैं, जहां वे तीन दिन तक रुकेंगे तो सात राज्य ऐसे हैं, जहां वे दो दिन रहेंगे। इसी तरह तीन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में एक दिन रहने का कार्यक्रम है। इनमें ऐसे राज्य भी हैं, जहां भाजपा मजबूत है। दरअसल, भाजपा को ‘मिशन-350’ के लक्ष्य को भेदने के लिए इस वर्ष के आखिर में गुजरात और अगले साल राजस्थान और मध्यप्रदेश सहित पांच राज्यों में प्रस्तावित विधानसभा चुनाव में भी प्रचंड बहुमत से विजय प्राप्त करनी होगी।
यह वे राज्य हैं, जहां अभी भाजपा की सरकारें हैं और यहां से पिछले लोकसभा चुनाव में लगभग शत-प्रतिशत भाजपा सांसद चुने गए। यदि इन राज्यों में स्थिति कमजोर होती है, तब उसका असर 2019 के चुनाव पर भी आ सकता है। यही कारण है कि भाजपा की मजबूत स्थिति होने के बाद भी शाह ने इन राज्यों में तीन-तीन दिन का प्रवास कार्यक्रम बनाया है, ताकि 2018 के विधानसभा चुनाव की तैयारियों का जायजा लिया जा सके और इन राज्यों में प्रचंड जीत के लिए ‘पूर्व योजना-पूर्ण योजना’ अभी से ही बनवाई जा सके।
देश के राजनीतिक परिदृश्य पर जब हम नजर डालते हैं, तब स्पष्ट दिखाई देता है कि अभी नरेंद्र मोदी का मुकाबला करने के लिए विपक्ष के पास कोई प्रत्याशी नहीं है। एक समय में विपक्ष के नेता के तौर पर उभर रहे नीतीश कुमार भी अब भाजपा के पाले में आ गए हैं। पहले से कमजोर विपक्ष नीतीश के निर्णय से और बेदम हो गया है। जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला भी विपक्ष की गति को देखकर पहले ही कह चुके हैं कि हमें 2019 भूल जाना चाहिए और अभी से 2024 की तैयारी करनी चाहिए। कांग्रेस के थिंकटैंक माने जाने वाले जयराम रमेश कह रहे हैं कि उनकी पार्टी अस्तित्व के संकट के दौर से गुजर रही है।
वर्तमान समय में देश के लगभग 70 प्रतिशत हिस्से पर अब भाजपा का कब्जा है। भारतीय राजनीति के इतिहास में यह पहली बार है, जब किसी पार्टी या गठबंधन की सरकार 18 राज्यों में है। इसके साथ ही भाजपा की पृष्ठभूमि के नेता राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और लोकसभा अध्यक्ष जैसे शीर्ष पदों पर विराजमान हैं। यह उचित समय है, जब भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष शाह ने ‘मिशन-350’ का लक्ष्य तय किया है। जिस पार्टी के पास नरेंद्र मोदी जैसा लोकप्रिय राजनेता हो और अमित शाह जैसा कुशल रणनीतिकार, उसके लिए कोई भी लक्ष्य कठिन नहीं हो सकता।

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