सामाजिक बंधनों एवं परंपराओं के बारे में सोच के हों टीवी सीरियल



दृश्य साधन मानसिकता पर गहरा प्रभाव डालते हैं, इसी कारण सामाजिक मनोविज्ञान के तार भी इससे गहरे जुड़े हुए दिखाई देते हैं। सामाजिक मनोविज्ञान में संस्कार और पुरातन जकड़न इतनी गहरी बैठी है कि वर्चस्ववादी ताकतों और मानसिकता को हवा देने वाली स्थितियों को समाज सहज ही अपने में आत्मसात कर लेता है। टेलीविजन और उसमें आने वाले ऐसे धारावाहिक इसी मानसिकता को हवा देते हैं। यह मंच कई प्रसंगों में घर-घर की कहानी और परंपराओं की दुहाई के नाम पर ही सामाजिक जड़ मान्यताओं को बढ़ावा देता रहा है। कुछ नया करने की आड़ में ये शो कभी अतिमानवीय कथानकों को पकड़ते हैं, तो कभी जड़ मान्यताओं को हवा देते हैं। कभी ये इतिहास के झरोखों से केवल ऐसे ही प्रसंगों को चुनते हैं, जो महज भूलों से स्मृति में जमे रहते हैं तो कभी किसी कुप्रथा को ही आभिजात्य और सामंती रंग देकर विलासिता को बढ़ावा देते प्रतीत होते हैं। वर्तमान में ऐसे कथानक टीवी सीरियल्स में बढ़ गए हैं, जो घर की भीतरी संस्कृति में चुपचाप दखल देते हैं। हाल ही में बाल विवाह को एक विलास व सामंती कलेवर में प्रस्तुत करने वाले सीरियल को प्रतिबंधित करने की मांग पूरे देश में पुरजोर ढंग से उठी है।
एक टीवी चैनल पर दिखाया जा रहा शो ‘पहरेदार पिया की’ शुरू से ही लीक से हटकर विषय होने के कारण विवाद में रहा है। इस धारावाहिक के नाटकीय कथानक में 10 वर्ष के बच्चे और 19 साल की लड़की का विवाह दिखाया गया है। यहां 10 वर्ष के अबोध बालक को शादी की रस्में पूरी तन्मयता से पूर्ण करते हुए दिखाया जा रहा है। नि:संदेह दर्शक बालमन पर इसका नकारात्मक असर कहीं न कहीं गहरे तक पड़ता ही है। साथ ही भव्य तरीके से इन कुप्रथाओं को सामने रखना सामाजिक मनोविज्ञान के ताने-बाने पर भी प्रभाव डालता है। गौरतलब है कि भारत दुनिया के उन देशों में शामिल है, जहां सबसे ज्यादा बाल विवाह होते हैं। यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में दुनियाभर के 40 प्रतिशत बाल विवाह होते हैं। भारत में 49 फीसदी लड़कियों का विवाह 18 वर्ष से कम आयु में ही हो जाता है। बाल विवाह जैसा अभिशाप ही लिंगभेद और अशिक्षा का सबसे बड़ा कारण है। हालांकि, अब कई कानून और संस्थाएं इन्हें रोकने का काम कर रही हैं, पर अब भी बदलाव का आंकड़ा छूना आसान नहीं प्रतीत हो रहा है।
इस शो के कथानक और विषय पर बढ़ते प्रतिरोध को लेकर शो के बचाव में आए किरदारों का कहना है कि हम किसी को कुछ नहीं सिखा रहे हैं, बल्कि यह प्रगतिशील विचारों का शो है, लेकिन शो को देखने पर ऐसा प्रथम दृष्टया प्रतीत नहीं होता। फिलवक्त शो को बंद करने के लिए दायर की गई ऑनलाइन याचिका ने शो के आयोजकों को चिंता में जरूर डाल दिया है। खबरों की मानें, तो दर्शक बिलकुल नहीं चाहते कि टीवी पर इस तरह के शो आएं। स्मृति इरानी तक अपनी बात पहुंचाने के लिए विरोध स्वरूप प्रारंभ हुई इस मुहिम में चेंज ओआरजी वेबसाइट पर एक दर्शक ने सीरियल को बैन करने के लिए एक अभियान प्रारंभ किया है। इस मुहिम पर अभी तक 55 हजार लाइक्स भी आ चुके हैं। चिंता का विषय यह है कि शो एक 10 वर्ष के किशोर और नवयौवना के बीच प्रेम-प्रसंगों के दृश्य दिखा रहा है। राजकुमार, रनिवासों सा परिवेश लिए यह शो अपने रंग व दृश्य संयोजन के लिए भी चर्चा में रहा है। परंतु विसंगति किसी भी सांचे में परोसी जाए उसे स्वीकार नहीं किया जा सकता है। हमारे समाज का एक बड़ा तबका अर्धशिक्षित एवं अशिक्षित है। वे उसी बात को सत्य मान बैठते हैं, जो दिखाई दे रहा है। एक सामान्य धारणा यह भी है कि जो दिखता है वह सच ही होता है, ऐसे में जब हम लिंगभेद और सामाजिक संतुलन की बात करते हैं तो फिर ये शो आंखों का काजल चुराते से प्रतीत होते हैं। यह भ्रम, छलावा और झूठा वैभव परोस कर टेलीविजन संस्कृति, शुचिता और नैतिकता पर भी प्रभाव डाल रहा है। सीरियल में अनेक प्रसंग है, जो बालमन और युवामन को अपनी गिरफ्त में ले रहे हैं। यह गलत शुरुआत है।
दूसरी तरफ, भारत में अब भी समाज का ढांचा पितृसत्तात्मक ही है। ऐसे में महिलाओं को अपने अधिकारों के लिए अनेक स्तरों पर लड़ाई लड़नी पड़ रही है। शिक्षा और आधुनिक युग की बयार ने महिलाओं को आर्थिक स्वतंत्रता तो दे दी है, परंतु दकियानूसी मानसिकता और पितृसत्ता के पैरोकार अब भी इस स्वतंत्र छवि वाली स्त्री से नाखुश हैं। ऐसे में सिर्फ परंपराओं या अन्य छलावे के माध्यम से स्त्री जीवन को कुंद बनाकर प्रस्तुत की जाने वाली मानसिकता वाकई प्रतिबंधित होनी चाहिए। सिनेमा, रंगमंच और साहित्य आदि जनमानस की भावनाओं पर प्रत्यक्ष प्रभाव डालते हैं अत: सेंसर की इन्हें भी अधिक आवश्यकता है। साहित्य, समाज और सिनेमा स्वहितों को छोड़कर और लामबंद होकर विसंगतियों के खिलाफ अगर मोर्चा खोल तो इससे बेहतर नजीर अन्य नहीं होगी, अन्यथा यही होगा कि-मैं सच कहूंगी मगर फिर भी हार जाऊंगी,वो झूठ बोलेगा और लाजवाब कर देगा।(परवीन शाकिर)

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