नेपाल PM शेर बहादुर देउबा का भारत आना रिश्तों में नए दौर की शुरुआत



पड़ोसी मुल्क नेपाल में चीन की बढ़ती दखलंदाजी के बीच प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा का भारत आना रिश्तों में नए दौर की शुरुआत है। इस दौरे में दोनों तरफ से जिस तरह की गर्मजोशी दिखाई गई है, वह बताती है कि अब पुराने विवाद पीछे छूटने वाले हैं। नेपाल में नया संविधान बनने के बाद तराई क्षेत्र में सुलगते मधेशी आंदोलन के बाद नेपाल के साथ भारत के रिश्तों में काफी खटास आई थी, जिसका चीन ने खूब फायदा उठाया। उसने न सिर्फ नेपाल के साथ अपने आर्थिक संबंध बढ़ाए, बल्कि वहां की भौगोलिक परिस्थितियों में भी दखल बढ़ाने के सपने देखने लगा, जैसा उसने पाक अधिकृत कश्मीर यानी पीओके में किया है। मगर, चीन के सपनों को धता बताते हुए देउबा पीएम का पदभार ग्रहण करने के बाद पहले विदेश दौरे के तहत चार दिनी भारत यात्रा पर धर्मपत्नी सहित लगभग पूरी कैबिनेट के साथ दिल्ली आए। यह दौरा ऐसे समय पर हुआ है, जब नेपाल पर भारत की जासूसी करने का आरोप लगने लगा था। उम्मीद है कि यह दौरा दोनों देशों के वर्षो पुराने सांस्कृतिक रिश्ते को फिर से जीवित करने का प्रयास करेगा, जैसा कुछ वर्षो पहले तक होता आया है।
भारत के पड़ोसी देशों में नेपाल ऐसा राष्ट्र है, जिससे रिश्ते हर लिहाज से बेहतर रहे हैं। मगर चीन की नीति ने इसमें दरार पैदा की। एक समय ऐसा भी आया, जब लगा कि नेपाल चीन की गोद में जा बैठेगा, तभी भारत की कूटनीति उसे वापस ट्रैक पर ले आई। अब जबकि देउबा का दौरा हो चुका है और भारत को अपेक्षित सफलता मिल चुकी है, तो यह मान लेना गलत नहीं होगा कि दोनों देशों के रिश्तों में वैसी ही गर्माहट देखने को मिल सकती है, जैसी पहले थी। बहरहाल, देउबा के दौरे को भारत के साथ द्विपक्षीय संबंधों को और प्रगाढ़ बनाने को लेकर राजकीय यात्रा बताया गया, लेकिन उनके दिल्ली आने की सच्चाई कुछ और ही है। चीन के साथ नेपाल की बढ़ती भारत विरोधी गतिविधियों को ध्यान में रखकर ही पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नेपाली प्रधानमंत्री से बात की। मोदी ने उन्हें दिल्ली आने का न्यौता दिया। नेपाल में अब तक जितने प्रधानमंत्री आए हैं, उनमें देउबा का झुकाव भारत की तरफ ज्यादा रहा है। इस यात्रा के दूसरे पहलू पर गौर किया जाए, तो जब भी नेपाल का कोई बड़ा नेता भारत आता है, तो उनके कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जिसमें विपक्षी नेताओं से मुलाकात जरूर शामिल होती है। साथ ही नेपाली समुदाय के लोग से भी मिलना होता है। लेकिन इस बार ऐसा कुछ नहीं हुआ। सुषमा स्वराज ने हवाई अड्डे पर शेर बहादुर देउबा की आगवानी की, जो यह दर्शाता है कि भारत उनकी इस यात्रा को ज्यादा महत्व नहीं देना चाहता था।
देखा जाए, तो विदेश से जब कोई मेहमान मसलन प्रेसिडेंट या पीएम आते हैं तो उनका स्वागत करने खुद हमारे पीएम या राष्ट्रपति हवाई अड्डे पर जाते हैं। उनका जोरदार स्वागत करते हैं, लेकिन नेपाली पीएम के आने पर ऐसा कुछ नहीं किया गया। शेर बहादुर देउबा का भारत दौरे का नेपाल में भी विरोध हुआ। मधेशी समुदाय के लोग व विपक्षी पार्टियों के नेता जमकर विरोध कर रहे थे। देउबा मोदी से डरते हैं, जैसे नारे लगा रहे थे। भारत की तरफ से नेपाल पर जितने भी आरोप लग रहे हैं, उन सभी पर नेपाल की बस एक ही सफाई है कि चीन को लेकर हमारे प्रति हिंदुस्तान गलतफहमी न पाले। पड़ोसी होने के नाते हम भारत का ख्याल रखते हैं। देउबा ने कहा भी नेपाल पर भारत की चीन से जासूसी का आरोप मीडिया की देन मात्र है। अपनी बात को सही साबित करने के लिए पिछले दिनों नेपाल के उप-प्रधानमंत्री कृष्ण बहादुर महारा ने डोकलाम विवाद पर नेपाल के स्टैंड को बड़े संतुलित तरीके से रखा था। उन्होंने कहा था सीमा विवाद पर नेपाल न ही इस पक्ष रहेगा और न ही उस पक्ष। नेपाल चाहता है कि भारत और चीन शांतिपूर्ण कूटनीति के जरिए इस विवाद का समाधान करें। इस बयान को भारत और नेपाल के संबंधों को मजबूती देने की दिशा में काफी अहम माना गया था।
बहरहाल, नेपाल के प्रधानमंत्री देउबा अपने साथ उच्च स्तरीय व्यावसायिक प्रतिनिमंडल लेकर भारत आए, उससे यह साफ है कि पड़ोसी देश भारत के साथ अपने व्यापार संबंधों को मजबूत करना चाहता है। देउबा के नेतृत्व में वर्तमान नेपाली कांग्रेस सरकार पिछली सरकार खासकर केपी ओली की तुलना में भारत से संबंध को ज्यादा बेहतर करने की इच्छुक बताई जा रही है। नेपाल की तरफ से भारत के साथ आर्थिक संबंधों को मजबूत करने का प्रयास ऐसे समय में किया जा रहा है, जब पिछले कुछ वर्षो के दौरान वहां पर चीन का बेतहाशा निवेश हुआ है। हालांकि, यह नेपाल को ही तय करना है कि वह आगे क्या करता है, क्योंकि भारत हमेशा से ही न सिर्फ पड़ोसियों, बल्कि दुनिया के सभी देशों से मित्रवत व्यवहार रखने के पक्ष में रहा है। यह भारत की कूटनीति नहीं, संस्कृति रही है। नेपाली प्रधानमंत्री के आने के बाद रिश्तों में जो अनुकूलता देखी गई है, वह बनी रहनी चाहिए। यह सिर्फ भारत नहीं नेपाल के लिए भी बेहतर होगा। यह भी तय है कि भारत-नेपाल के बेहतर होते संबंधों को लेकर चीन चुप नहीं बैठेगा। वह नेपाल को भड़काने के कई जतन करेगा। अब देखते हैं कि नेपाल किधर जाता है।

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