गर्भपात कानून में बदलाव जरूरी,क्या हम इस दिशा में सोचेंगे?



कहते हैं कि मां बनना किसी भी महिला के लिए गर्व की बात होती है। कम से कम हमारे बुजुर्गो ने तो यही सिखाया है हमें। गर्भवती महिलाओं के लिए तमाम तरीके और कायदे-कानून होते हैं। यह भी बताया जाता है कि बच्चे को कैसे संभालना है, लेकिन एक बात बताइए अगर किसी बच्चे को ही यह जिम्मेदारी दे दी जाए तो क्या होगा? बहरहाल, अपने मामा की हवस का शिकार हुई 10 साल की बच्ची ने एक बच्चे को जन्म दिया है। यह जन्म सिजेरियन से हुआ। बच्चे का वजन कम है और उसे आईसीयू में रखा गया है। मां बनने वाली यह वही बच्ची है, जिसे पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने कानून का हवाला देते हुए गर्भपात की मंजूरी देने से इंकार कर दिया था। मगर सवाल यह है कि क्या वह बच्चे को संभाल पाएगी? रेप की वजह से जन्मे बच्चे को समाज में खड़ा कर पाएगी? हम सिर्फ कानून का हवाला देकर कब तक बच्चियों को मां बनने का अधिकार देते रहेंगे? यह ऐसे ज्वलंत सवाल हैं, जिनका हल अब हमें ढूंढना ही होगा, वह भी जल्द से जल्द।
इस मामले ने पूरे देश को हिला दिया था। रिश्ते के मामा ने बच्ची का रेप कर दिया था, जिससे वह गर्भवती हो गई थी। इस बात का खुलासा पीड़िता की हालत बिगड़ने पर हुआ था, पर तब तक देर हो चुकी थी। गर्भ 32 हफ्ते का हो चुका था। पीड़िता के माता-पिता बेटी का गर्भपात करवाना चाहते थे, लेकिन कानून 20 हफ्ते से ज्यादा के गर्भ को खत्म करने की इजाजत नहीं देता है। परिवार को सुप्रीम कोर्ट से भी निराशा हाथ लगी। पीजीआई की रिपोर्ट के मुताबिक, गर्भपात किए जाने से बच्ची की जान को खतरा हो सकता था। हम जिस कानून की बात कर रहे हैं, वह मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट-1971 है। विडंबना है कि यह कानून एक तरफ तो कहता है कि रेप से पैदा हुआ बच्चा मां के मानसिक संतुलन के लिए सही नहीं है तो ऐसे केस बार-बार क्यों देखे जाते हैं, जहां किसी रेप पीड़िता को बच्चा पैदा करना होता ही है। ताजा मामला भी इसी की बानगी है। एक 10 साल की छोटी बच्ची जो खुद को ठीक से नहीं संभाल सकती है वह अब बच्चा कैसे संभालेगी?
भारत में पांच साल में बच्चों से रेप के मामलों में 151 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। नेशनल क्राइम रिकॉर्डस ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2010 में दर्ज पांच हजार 484 मामलों से बढ़कर संख्या 2014 में 13 हजार 766 हो गई। बाल यौन शोषण संरक्षण अधिनियम (पोक्सो एक्ट) के तहत आठ हजार 904 मामले दर्ज किए गए हैं। ऐसे में क्या मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट-1971 को एक बार सामाजिक नजरिए से नहीं देखा जाना चाहिए। कुछ समय पूर्व की बात है जब गुजरात में एक महिला को इसी तरह से गर्भपात करवाने की मनाही थी। महिला का सवाल था कि वह क्या करेगी उस बच्चे का? क्या उसे समाज अपनाएगा? यह ऐसा सवाल है, जिसे हम नहीं सुलझाएंगे तो यह और उलझता जाएगा। यह भी याद रखना होगा कि बच्चे समाज का भविष्य होते हैं, उन्हें शोषण और हिंसा से बचाकर ही भविष्य की नींव रखी जा सकती है।

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