बच्चों में समझ नहीं होती, जानलेवा वीडियो गेम से बचाएं



जाने-माने मनोविश्लेषक सिगमंड फ्रायड ने कहा था कि मनुष्य का मूल स्वभाव यह है कि वह चुनौतियों को स्वीकार करता है। जब उनसे पूछा गया कि जो आप कह रहे हैं, वैसा समाज में दिखता तो नहीं है, अधिकांश लोग तो चुनौती को देखकर भाग खड़े होते हैं, तो इसका कारण भी बताइए? यह सुनकर फ्रायड बोले कि मनुष्य जब समझदार हो जाता है, तो वह यह भी समझने लगता है कि उसे कौन सी चुनौती स्वीकार करनी चाहिए और कौन सी नहीं। लेकिन बच्चों में यह समझ नहीं होती है। अत: वे कोई भी चुनौती स्वीकार कर लेते हैं। फ्रायड का यह विचार मुझे उस समय याद आया, जब सुना कि मुंबई में एक 14 वर्षीय बच्चे ने वीडियो गेम ब्लू ह्वेल का अंतिम टास्क पूरा करने के लिए एक इमारत की पांचवीं मंजिल से कूदकर आत्महत्या कर ली। यह बच्चा, जिसका नाम मनप्रीत था, नौवीं कक्षा का छात्र था और वह बहुत प्रतिभाशाली था। खबरों के मुताबिक, वह पायलट बनने का सपना देख रहा था। लेकिन उसने ब्लू ह्वेल की चुनौती को स्वीकार कर लिया और अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली। हालांकि, मुंबई पुलिस ने इन पंक्तियों के लिखे जाने तक स्वीकार नहीं किया था कि छात्र ने ब्लू ह्वेल के कारण आत्महत्या की, पर यह एक समस्या तो है, जिस पर विचार होना चाहिए।
यह इसलिए कि भले मनप्रीत की आत्महत्या की वजह कुछ और हो, लेकिन ब्लू ह्वेल के कारण दुनिया में 250 से भी ज्यादा लोग खुदकुशी कर चुके हैं और इनमें 90 फीसदी से भी अधिक बच्चे हैं, 13 से 17 वर्ष तक के बच्चे। समस्या सामाजिक और मनोवैज्ञानिक है, इसलिए उसका उपचार भी इन्हीं दोनों मोर्चो पर खोजा जाना चाहिए। यह कानूनी समस्या नहीं है। यह सही है कि रूस के जिस व्यक्ति ने इस गेम का आविष्कार किया था, उसको रूस सरकार ने जेल में डाल दिया है। मगर इससे कोई अंतर नहीं पड़ेगा, क्योंकि लोगों के पास दिमाग है, उनमें वैज्ञानिक समझ भी बढ़ने लगी है और इंटरनेट भी सर्वसुलभ हो गया है। अत: भविष्य में कोई दूसरा आदमी दूसरा खतरनाक गेम बना देगा। यूं भी ब्लू ह्वेल कोई पहला खेल नहीं है, जिसने समाज को संकट में डाला है। ऐसा ही एक गेम है, ‘साल्ट एंड आइस चैलेंज’। इससे बच्चे अपने शरीर के किसी हिस्से पर नमक डालते हैं और फिर उसी के ऊपर बर्फ का एक टुकड़ा रख लेते हैं। यह गेम जानलेवा तो नहीं है, लेकिन पीड़ादायक है। बर्फ शरीर के हिस्से को ठंडा करती है, जिससे चमड़ी संवेदनशील होती चली जाती है और चूंकि नमक बर्फ के नीचे होता ही है, इसलिए चमड़ी में जलन प्रारंभ हो जाती है। एक और गेम ट्यूब टेप चैलेंज है। इसमें ट्यूब टेप को शरीर पर लपेट लिया जाता है, फिर उससे बाहर आने की कोशिश होती है और अगर ट्यूब टेप गले के आसपास कस गई तो खिलाड़ी की जान भी चली जाती है। इससे अमेरिका में मौतें हुई भी हैं।
फिर, पॉकेमॉन गो के बारे में तो हम जानते ही हैं। इसमें बच्चा अपने मोबाइल पर गेम खेलते हुए पॉकेमॉन के बताए रास्ते पर ही चलता जाता है। वह गेम में इतना खोया रहता है कि उसे पता भी नहीं चलता कि कब वह सड़क पर आ गया और अकसर सड़क दुर्घटना का शिकार हो जाता है। इस प्रकार के बहुत सारे जानलेवा गेम इंटरनेट पर हैं और वे स्मार्ट फोन आदि के माध्यम से बच्चों की मुट्ठी में आ गए हैं। अत: यह मामला कानून से बहुत ऊपर की चीज हो चुका है। सामाजिक स्तर पर इस समस्या का निदान यह है कि बच्चों को अकेला न छोड़ें। यह सही है कि इस समय महानगरों में माता-पिता कामकाजी होने लगे हैं। अत: बच्चों को अकेला न छोड़ने की बात करना सरल है, जबकि उसका पालन करना कठिन। लेकिन दादा-दादी, नाना-नानी सबसे पास होते हैं। जब कोई व्यक्ति रोजगार के लिए अपने स्थान से विस्थापित हो जाता है, तो वह अपने बुजुर्ग माता-पिता को वहीं छोड़ आता है। कुछ लोग उन्हें वृद्धाश्रम में भेज देते हैं। यदि उन्हें अपने ही साथ रखा जाए तो वृद्धावस्था में उन्हें सहारा मिलेगा व हमारे बच्चे भी अकेलेपन से बच जाएंगे और तब उन्हें मोबाइल और इंटरनेट का सहारा नहीं लेना पड़ेगा। अगर कोई परिजन साथ नहीं रहता है तो मोहल्ले में जान-पहचान बढ़ानी होगी, ताकि बच्चों में पारस्परिक मेलजोल बढ़े और वे इंटरनेट की आभासी दुनिया से बचें।
इस सामाजिक समाधान के साथ ही समस्या का मनोवैज्ञानिक समाधान भी करना होगा। मनोवैज्ञानिक तथ्य यह है कि बच्चे ज्यों ही चलना शुरू करते हैं, त्यों ही वे चुनौतियों को स्वीकार करना सीख जाते हैं। यह गुण उनमें 14-15 वर्ष तक बना रहता है। इस आयुवर्ग में पढ़ाई में उनके अच्छे नंबर आना, खेलों आदि में उम्दा प्रदर्शन, सीखने की ज्यादा क्षमता आदि गुणों की वजह यही होती है कि वे इस आयुवर्ग तक चुनौतियों को स्वीकार करते हैं। बच्चों को जब कोई रचनात्मक चुनौती नहीं मिलती है, तब वे ब्लू ह्वेल जैसी नकारात्मक चुनौतियां स्वीकार कर लेते हैं। उन्हें संगीत, नई भाषा, तैराकी, नृत्य जैसी रचनात्मक चुनौतियां देकर नकारात्मक चुनौतियों से बचाया जा सकता है। यदि यह सब नहीं किया गया तो वे नेट की शरण में बने रहेंगे, जो उनके लिए हानिकारक है।

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