अमेरिका और उत्तर कोरिया के बीच जारी जंग तीसरे विश्व युद्ध की आहट



उत्तर कोरिया के उस दावे को अमेरिका ने भले ही खारिज कर दिया हो, जिसमें उसने ट्रंप प्रशासन पर युद्ध शुरू करने की बात कही थी, मगर इस बात को हल्के में नहीं लिया जा सकता। अपने मिसाइल कार्यक्रम के जरिए पूरे विश्व के लिए मुसीबत बना उत्तर कोरिया आरोप लगा रहा है कि अमेरिका ने उस पर युद्ध का ऐलान कर दिया है, तो मान लेना चाहिए कि वह जंग के लिए उधार बैठा है। उत्तर कोरिया के विदेश मंत्री री योंग हो ने अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पर उनके देश के खिलाफ युद्ध की घोषणा करने का आरोप लगाया है। हो सोमवार न्यूयार्क में थे। हो ने कहा कि प्योंगयांग अमेरिकी बमवर्षक विमानों को मार गिराकर अपनी रक्षा करने के लिए तैयार है। पूरी दुनिया को स्पष्ट रूप से याद रखना चाहिए कि पहले अमेरिका ने हमारे देश के खिलाफ युद्ध का ऐलान किया है।
गौरतलब है कि उत्तर कोरिया का अमेरिका के साथ राजनयिक संबंध नहीं है। हो न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र के वार्षिक महासभा सत्र में शामिल होने गए थे। हालांकि, अमेरिका की ओर से युद्ध की घोषणा करने संबंधी किए गए दावों को खारिज किया गया है। व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव सारा सैंडर्स ने कहा, बिल्कुल नहीं, हमने उत्तर कोरिया पर युद्ध की घोषणा नहीं की है और सच कहूं तो इससे जुड़ी बातें बेतुकी हैं। अमेरिका के इस दावे के बाद यह सवाल मौजूं हो जाता है कि उत्तर कोरिया दुनिया के सामने गलतफहमी क्यों पैदा करना चाह रहा है। या उसने खुद को अमेरिका सहित दूसरे देशों से होने वाले हमले के लिए तैयार कर लिया है। यहां दोनों ही कारण वाजिब हैं। पहला-उत्तर कोरिया यह जानता है कि अमेरिका एक दिन उस पर हमला करेगा जरूर, लेकिन तब उसके पास दुनिया के सामने खुद को बेचारा बताने का वक्त नहीं होगा। दूसरा-तानाशाह किम जांेग इस बहाने अमेरिका को उकसाना चाहता है, ताकि ट्रंप उस पर हमला करें और वह अमेरिका को बर्बाद कर दे।
बहरहाल, आतंकवाद के उन्मूलन के लिए संयुक्त प्रयास पर सहमति बना रहे विश्व के समक्ष उत्तर कोरिया एक महासंकट के रूप में उपस्थित हो चुका है। संयुक्त राष्ट्र संघ समेत विश्व के लगभग सभी महाशक्ति देशों के प्रतिबंधों और चेतावनियों को अनदेखा करते हुए तानाशाह किम जोंग के नेतृत्व में यह पिद्दी-सा देश विश्व के लिए भारी सिर दर्द बनता जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंधों को धता बताते हुए एक के बाद एक घातक प्रक्षेपास्त्रों का परीक्षण करने से लेकर अमेरिका जैसे देश को भी खुलेआम चुनौती देने तक उत्तर कोरिया का रवैया पूरी तरह से उकसावे वाला रहा है। हाल ही में उसने जापान के होकैडो शहर के ऊपर से मिसाइल दाग दी थी, जिसके बाद जापान ने इस शहर समेत अपनी राजधानी क्षेत्र में मिसाइल रक्षा प्रणाली की तैनाती कर ली है, ताकि खतरे को टाला जा सके।
उत्तर कोरिया का क्या करना है, इसका कोई ठोस उत्तर फिलहाल किसी भी महाशक्ति देश के पास नहीं है। अब तक उत्तर कोरिया की अराजक गतिविधियों के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र और विश्व के महाशक्ति देशों की तरफ से सिवाय जुबानी जमाखर्च के धरातल पर कोई कार्रवाई नहीं की जा सकी है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप कह तो बहुत कुछ रहे हैं, मगर मालूम उन्हें भी होगा कि किम जोंग का खात्मा इतना आसान नहीं है। कहा यह भी जा रहा कि अमेरिका ने लादेन को जैसे पाकिस्तान में ही घुसकर मार गिराया था, वैसे ही किम को भी मार सकता है। लेकिन, हमें नहीं भूलना चाहिए कि इन दोनों मामलों में भारी अंतर है। लादेन आतंकी था, जिसके पास कुछ लड़ाकों व पाकिस्तानी हुकूमत के अप्रत्यक्ष सहयोग के अलावा कुछ नहीं था।
वहीं, किम जोंग एक सनकी राष्ट्राध्यक्ष है, जिसके साथ न केवल लादेन से कहीं अधिक सुरक्षा तंत्र होगा बल्कि उसके नियंत्रण में अब परमाणु हथियारों का जखीरा भी है। ऐसे में, क्या उसको लादेन की तरह मार गिराने की कल्पना की जा सकती है? यकीनन नहीं! यह बात अमेरिका भी बाखूबी समझता है, तभी तो अब तक उसने कोई भी कार्रवाई करने से परहेज किया है। स्पष्ट है कि किम के तानाशाही नेतृत्व में उत्तर कोरिया विश्व के लिए एक घातक यक्ष-प्रश्न बन गया है। घातक यक्ष-प्रश्न इसलिए क्योंकि अगर जल्द से जल्द इसका उचित उत्तर नहीं खोजा गया तो पूरी संभावना है कि ये दुनिया को तीसरे विश्व युद्ध की तरफ ले जाएगा। तीसरे विश्व युद्ध की बात करने के पीछे ठोस कारण हैं, जिन्हें समझने के लिए आवश्यक होगा कि हम पिछले दोनों विश्व युद्धों के इतिहास और उनकी पृष्ठभूमि का एक संक्षिप्त अवलोकन करें।
विश्व युद्धों के इतिहास पर दृष्टि डालें तो दोनों ही युद्धों की परिस्थितियां पहले से ही ज्वालामुखी की तरह निर्मित हो रही थीं, जिनका किसी छोटी तत्कालीन घटना को कारण बनाकर दोनों विश्व युद्ध के रूप में महाविस्फोट हुआ। आस्ट्रिया के राजकुमार और उनकी पत्नी की सेराजोवा में हुई हत्या प्रथम विश्व युद्ध का तात्कालिक कारण बनी। इस विश्व युद्ध की पृष्ठभूमि के अध्ययन पर स्पष्ट होता है कि तत्कालीन दौर में यूरोपीय देशों के बीच उपनिवेशों की स्थापना की गई। इस कारण परस्पर ईष्र्या और द्वेष का भाव बुरी तरह से भर चुका था। हितों के टकराव जैसी स्थिति भी जन्म ले चुकी थी। गुप्त संधियां आकार लेने लगी थीं। परिणाम विश्व युद्ध के रूप में सामने आया था।
1918 में प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद विश्व बिरादरी ने एक तरफ जहां युद्ध जैसी परिस्थितियों को रोकने के लिए राष्ट्र संघ (लीग ऑफ नेशंस) की स्थापना की, वहीं दूसरी तरफ ‘वर्साय की संधि’ के तहत जर्मनी पर लगाए गए अनुचित और अन्यायपूर्ण प्रतिबंधों ने अनजाने में द्वितीय विश्व युद्ध की भूमिका का निर्माण कर दिया। 1935 में जर्मनी जब हिटलर के नेतृत्व में ताकतवर होकर उभरा तो उसने वर्साय की संधि और प्रतिबंधों का उल्लंघन शुरू कर दिया। वर्ष 1939 में जर्मनी ने पोलैंड पर आक्रमण किया और बस यहीं से द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हो गया। ये युद्ध भयानक रूप से संहारक रहा और अंत होते-होते अमेरिका ने जापान पर परमाणु हमले तक कर दिए। राष्ट्र संघ जिसकी स्थापना विश्व युद्ध जैसी परिस्थितियों को रोकने के लिए की गई थी, अप्रासंगिक होकर रह गया।
इन दोनों विश्व युद्धों में जो एक बात समान है, वह यह कि इनके लिए वैश्विक वातावरण तो पहले से बना हुआ था, मगर शुरुआत किसी एक छोटे-से तात्कालिक कारण से ही हुई। आज भी वैश्विक वातावरण में तनाव साफ है। यह बात सर्वस्वीकृत है कि किम को चीन का अंदरूनी समर्थन और सहयोग है, जिसके दम पर वह हथियारों आदि के मामले में बेहद सशक्त हो चुका है। साथ ही, चीन का जापान और अमेरिका से मुखर विरोध है। ऐसे में, उत्तर कोरिया पर हाथ डालने की स्थिति में उसके साथ चीन भी दिक्कतें खड़ी कर सकता है। पाकिस्तान का समर्थन भी चीन के ही साथ होगा। अमेरिका व यूरोपीय देश एक साथ आ सकते हैं। फिर तीसरे विश्व युद्ध के लिए और आवश्यकता ही किस चीज की रह जाएगी। अगर तीसरे विश्व युद्ध की आशंका पर विराम लगाना है तो फिर उत्तर कोरिया का समाधान विश्व के महाशक्ति राष्ट्रों को संयुक्त राष्ट्र संघ के साथ मिलकर खोजना पड़ेगा। वह भी जल्द से जल्द।

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