प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मंत्रिमंडल विस्तार में राजनीति नहीं, काबिलियत जरूरी



तमाम अनुमानों को दरकिनार करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने टीम में जिस तरह नौ नए चेहरे चुने, चार को प्रमोशन दिए व छह को बाहर का रास्ता दिखाया, उसके जरिए यह जताने की कोशिश की है कि अब उनकी टीम में वही फिट हो पाएगा जो काबिल होगा। मोदी के काबिलियत के इस पैमाने में राजनीति सबसे बड़ी शर्त नहीं है। साथ ही इस फेरबदल में उन्होंने एक तीर से कई निशाने साधे हैं। फेरबदल में मोदी स्टाइल की धमक देखने को मिली है। सारे पूर्वानुमानों को धता बताते हुए मोदी ने बिहार और उत्तरप्रदेश से दो-दो मंत्रियों को साथ लिया है तो मध्यप्रदेश सहित तीन राज्यों से एक-एक मंत्री को जगह दी गई है। पहली बार बिना किसी सदन के दो पूर्व सेवानिवृत्त अधिकारियों को मंत्री बनाए जाने का ऐलान कर मोदी ने साल-2019 की अपनी रणनीति का संदेश दे दिया है।
मोदी सरकार में दो रिटायर्ड आईएएस, एक आईपीएस तथा एक आईएफएस मंत्री बने हैं। इस फेरबदल में सहयोगी दलों को न लेकर उन्होंने यह भी साफ कर दिया है कि वे बिना दबाव काम करेंगे। यानी तीन साल बाद अब पीएम मोदी अपनी स्टाइल में काम करेंगे। राजनीतिक कौशल और संदेश देने की पूरी जिम्मेदारी खुद संभालेंगे और मंत्रियों को सिर्फ काम और काम करना होगा। अब वे मंत्रियों के साथ मिलकर अगले डेढ़ साल के लिए सिर्फ डिलिवरी पर फोकस रखना चाहते हैं। वे जानते हैं कि 2019 में वोट मोदी के समर्थन या विरोध में पड़ेंगे, जिसमें मंत्रियों का नाम, जाति और क्षेत्र कम मायने रखेगा। इसको देखते हुए मंत्रिमंडल में नए चेहरों को 4पी यानी पैशन, प्रोफिशिएंसी, प्रोफेशनल एक्सपीरियंस और उनकी पॉलिटिकल समझ के बेस पर चुना है। मोदी इन नए मंत्रियों को सरकार में शामिल कर और कुछ मौजूदा मंत्रियों को प्रमोट कर न्यू इंडिया के अपने विजन को आगे बढ़ाना चाहते हैं।
असल में प्रधानमंत्री यह संदेश देना चाहते थे कि उन्होंने परफॉर्मेस के आधार पर मंत्रियों को हटाया है व बेहतर प्रदर्शन करने वालों को नई जिम्मेदारी के लिए चुना है। बताया जा रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी के कार्यालय और कैबिनेट सचिवालय में मंत्रियों के कामकाज का ब्योरा तैयार हुआ था। उनका रिपोर्ट कार्ड बना था। उस आधार पर उनकी रैंकिंग तय की गई थी। इस रैंकिंग के आधार पर ही कुछ मंत्रियों की छुट्टी हुई है और कुछ के विभाग बदले गए हैं। इसी धारणा को आगे बढ़ाते हुए मोदी ने नौ नए मंत्री चुने। प्रशासनिक सेवा के जो चार अधिकारी मंत्री बनाए गए हैं, उनका रिकार्ड बहुत अच्छा है। आरके सिंह भले भाजपा के बड़े नेता नहीं हैं, पर बिहार में उनको आज भी बेहद सक्षम अधिकारी माना जाता है। इसी तरह केजे अल्फोंस और हरदीप सिंह पुरी की छवि भी बेहतर काम करने वाले अधिकारी की है।
अनंत हेगड़े, वीरेंद्र कुमार, अश्विनी चौबे, शिव प्रताप शुक्ल और गजेंद्र सिंह शेखावत सब अपने क्षेत्र के लोकप्रिय नेता हैं। अश्विनी चौबे और शिव प्रताप शुक्ल का राज्य में मंत्री रहते कामकाज का अच्छा रिकार्ड रहा है। सो, इस बदलाव के जरिए यह संदेश दिया गया है कि प्रधानमंत्री ने खराब प्रदर्शन करने वाले मंत्रियों को बाहर किया और अच्छे काम का रिकार्ड रखने वालों को सरकार में शामिल किया। सबसे बड़ा बदलाव रक्षा मंत्रालय में सामने आया है। मोदी ने निर्मला सीतारमण को इस भारी भरकम मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी है। इंदिरा गांधी के बाद सीतारमण देश की दूसरी रक्षा मंत्री बनी हैं। वहीं इंदिरा गांधी ने रक्षा मंत्री का पद प्रधानमंत्री रहते हुए संभाला था।
गैर-राजनीतिक लेकिन प्रशासनिक तौर पर दक्ष कई लोगों पर भी पीएम मोदी ने बड़ा दांव खेला है। मंत्रिमंडल में शामिल सभी लोग प्रोफेशनली दक्ष हैं और किसी न किसी सेक्टर से जुड़े विशेषज्ञ हैं। एक तरफ कई मंत्रियों की काहिली से पीएम मोदी नाराज थे, तो दूसरी तरफ सरकार के तीन साल पूरे होने के बाद अब गाड़ी को तेज चलाने के लिए सरकार में ग्रीस की जरूरत थी। सो, उन्होंने यह काम भी कर दिया है। माना जाता रहा है कि कुछ करीबियों को अलग रख कर देखें तो नरेंद्र मोदी नेताओं से ज्यादा नौकरशाहों पर ही भरोसा करते हैं। फेरबदल में नौ में से चार राज्यमंत्री आरके सिंह, सत्यपाल सिंह, अल्फोंस कन्नाथनम एवं हरदीप सिंह पुरी पूर्व प्रशासनिक अधिकारी रहे हैं। उनमें से अल्फोंस कन्नाथनम और हरदीप सिंह पुरी संसद के सदस्य भी नहीं हैं। अपने इस कदम से मोदी काम करने की अब तक के प्रधानमंत्री की पारंपरिक शैली को बदल कर इसमें इनोवेशन लाने का संकेत दे चुके हैं।
कैबिनेट विस्तार देखकर साफ लगता है कि मोदी की नजर रेलवे को पटरी पर लाने, रोजगार के मोर्चे पर काम करने, गंगा नदी की सफाई का अभियान तेज करने, रक्षा क्षेत्र को और मजबूत करने के साथ ही मिशन 2019 पर है। मोदी सरकार के तीन साल पूरे हो चुके हैं और अब भाजपा का पूरा फोकस 2019 के चुनाव जीतने पर हो गया है। ऐसे में फेरबदल कर मोदी सरकार की मशीनरी में ग्रीस तो डालना चाहते हैं, साथ ही क्षेत्रीय संतुलन साधकर राजनीतिक पकड़ भी बनाए रखना चाहते हैं। इसी सोच के तहत ही एक तरफ प्रशासनिक अनुभवों वाले लोगों को मंत्रिपरिषद में शामिल किया गया है तो दक्षिण की नेता निर्मला सीतारमण को तरक्की देकर रक्षा जैसा मजबूत मंत्रालय दिया गया है। वेंकैया नायडू के राष्ट्रपति बनने के बाद दक्षिण में भाजपा को कद्दावर नेता की जरूरत थी और निर्मला उपयुक्त साबित हो सकती हैं।
मोदी ने महेंद्र नाथ पांडेय को सरकार से संगठन में भेज कर यूपी के ब्राह्मणों को जो संदेश देने की कोशिश की, अब उसे डबल कर दिया है और इस डबल बेनिफिट स्कीम में निशाना भी डबल लगाया है। महेंद्र नाथ पांडेय के यूपी भाजपा चीफ बनने के बाद दूसरे ब्राह्मण सांसद शिव प्रताप शुक्ल को मंत्री बना कर भी मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने कई समीकरणों को दुरुस्त करने की कोशिश की है। इस बात के संकेत तो भाजपा ने शिव प्रताप शुक्ल को राज्य सभा में भेज कर ही दे दिए थे। उधर, कर्नाटक में अगले साल चुनाव होने हैं और यही वजह है कि ताकतवर नेता अनंत कुमार हेगड़े को सोच समझ कर जगह दी गई है। हेगड़े उन नेताओं में शामिल थे, जिन्होंने कश्मीर के लाल चौक पर तिरंगा फहराया था और यह बात भाजपा को बहुत सूट करती है।
लगातार कई बार विधायक व यूपी सरकार में कैबिनेट मंत्री रह चुके शिव प्रताप शुक्ल बाद के दिनों में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के चलते हाशिए पर चले गए थे। इसके चलते गोरखपुर और उसके आसपास के इलाकों में ठाकुरों और ब्राह्मणों में विभाजन की रेखा खिंच गई थी। इसके साथ ही पूर्वाचल से कलराज को हटाने के बाद भाजपा ने संकेत देने की कोशिश की है कि ब्राह्मण समुदाय इसे अन्यथा न ले। मध्य प्रदेश से दलित नेता वीरेंद्र कुमार को महिला एवं बाल विकास राज्य मंत्री तो राजस्थान के गजेंद्र सिंह शेखावत को कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय में भेजा गया है। पीएम मोदी की यह कवायद कितनी सफल होती है, यह तो भविष्य के गर्भ में है, लेकिन उन्होंने एक अच्छी दिशा में कदम तो बढ़ाया ही है।

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