म्यांमार सीमा से लगे क्षेत्रों में बड़ी सैन्य कार्रवाई से प्राप्त हुआ लक्ष्य



भारतीय सेना ने एक बार फिर से म्यांमार सीमा से लगे क्षेत्रों में बड़ी कार्रवाई की है। ऐसी कार्रवाई देश का आत्मविश्वास बढ़ाती हैं। ध्यान रखिए, इस कार्रवाई के एक दिन पहले थल सेना अध्यक्ष जनरल बिपिन रावत ने पाकिस्तान का नाम लिए बिना ही उसको निशाना बनाते हुए कहा था कि जरूरत हुई तो फिर से सर्जिकल स्ट्राइक की जाएगी। सेना प्रमुख ने आतंकवादियों के बारे में कहा था कि हम उनका इंतजार कर रहे हैं। वे आएं और उनको ढाई गज जमीन के अंदर डाल देने के लिए हम तैयार हैं। हालांकि, यह पूरा बयान कश्मीर के संदर्भ में था किंतु इसके अगले दिन यांमार सीमा पर कार्रवाई की खबरें आ गईं, इसीलिए इसे तुरंत सर्जिकल स्ट्राइक मान लिया गया था। यह कैसी कार्रवाई थी इसके बारे में केवल सेना ही बता सकती है और अब सेना कह रही है कि उसने म्यांमार में सर्जिकल स्ट्राइक नहीं की है तो हमें इस स्वीकार करना चाहिए। वैसे भी नाम में क्या रखा है। मूल बात है, लक्ष्य हासिल करना। इस समय भारत का लक्ष्य चाहे जमू कश्मीर में हो या पूवरेर में, वह है आतंकियों और उग्रवादियों की कमर तोड़ देना। उसके लिए सरकार की ओर से उन्हें पूरी छूट है और इसके परिणाम भी आ रहे हैं। तो हम इस बहस में न पड़ें कि म्यांमार सीमा के पार सेना गई थी या नहीं, या उसने कहां से कार्रवाई को अंजाम दिया। उसने जो लक्ष्य हासिल किया
है, केवल उसे ही देखा जाना चाहिए। वास्तव में सच यही है कि हमारी सेना ने फिर एक बड़ा ऑपरेशन किया है और उसमें म्यांमार सीमा के अंदर उग्रवादियों या आतंकवादियों को भारी क्षति हुई है। कितनी हुई है इसका पता शायद बाद में चलेगा किंतु यह कार्रवाई बड़ी थी इसमें दो राय नहीं। संयोग से यह कार्रवाई नियंत्रण रेखा पार कर पाकिस्तान में की गई 27-28 सितंबर 2016 की रात की सर्जिकल स्ट्राइक की बरसी पर हुई। शायद इसलिए भी शुरू में लोगों ने इसे सर्जिकल स्ट्राइक कहना आरंभ कर दिया था। किंतु सेना द्वारा यह साफ करने के बाद कि हमने म्यांमार की सीमा पार नहीं की तो अब इस बारे में अन्य किसी प्रकार के स्पष्टीकरण की जरूरत ही नहीं है। म्यांमार पड़ोसी ही नहीं मित्र देश भी है। आतंकवादियों-उग्रवादियों के खिलाफ कार्रवाई में वह हमारा सहयोग करता
है, इसलिए हम उसके समान के खिलाफ न कोई कदम उठा सकते हैं न कोई बयान दे सकते हैं। गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने भी यही कहा है कि हमें सेना के बयान को ही अंतिम मानना चाहिए और अब सेना ने बयान दे दिया है। एक खबर यह भी है कि नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड- खापलांग गुट या एनएससीएन-के उग्रवादियों ने सेना पर गोलीबारी की और सेना ने जवाबी कार्रवाई की। हो सकता है तात्कालिक रूप से यह सच हो, किंतु इस कार्रवाई से साफ है कि सेना ने पहले से ही इसकी व्यापक तैयारी कर रखी थी। बिना तैयारी के अचानक इतनी बड़ी कार्रवाई संभव ही नहीं। वास्तव में जिस तरह से खापलांग
सहित कई समूहों की गतिविधियां म्यांमार से बढ़ी हैं, उसमें सेना की तैयारी काफी समय से है और रहेगी। मणिपुर, मिजोरम और अरुणाचल प्रदेश से लगे सीमाई इलाकों पर खापलांग समूह के नगा उग्रवादियों का आतंक कायम रहता है। उन्होंने नगा समझौते का भी विरोध किया। वे छिपकर भारतीय सुरक्षा बलों पर हमले करते हैं और फिर म्यांमार के जंगलों में भाग जाते हैं। तो यह सब निरंतर चल रहा है। उसमें सेना ने निश्चय ही एक बार बड़ी कार्रवाई का निर्णय किया तथा उसके अनुसार ही अपनी योजना को अंजाम दिया है। इसमें इतना तय है कि आतंकवादी म्यांमार में भागते मारे गए या फिर उसकी सीमा में घुसने के बाद मारे गए। इसमें सेना यांमार में घुसी या नहीं इसे स्पष्ट करना जरूरी नहीं है। हां, इतना साफ है कि म्यांमार सीमा के अंदर इनके खिलाफ कार्रवाई हुई है। हां, दो वर्ष पहले म्यांमार में सर्जिकल स्ट्राइक अवश्य हुई थी। जब 4 जून-2015 को मणिपुर के चंदेल जिले में बीएसएफ जवानों के काफिले को निशाना
बनाकर 28 जवानों को शहीद कर दिया गया था। उसके बाद अवश्य सर्जिकल स्ट्राइक हुई थी। यह कार्रवाई 9 जून को सेना ने म्यांमार की सीमा के अंदर घुसकर की थी, जिसमें 100 के आसपास आतंकवादी मारे गए थे और उनके अनेक शिविर नष्ट हो गए थे। उसके लिए सेना ने कई दिनों तक तैयारी की थी। वह एक बड़ा ऑपरेशन था जिसमें करीब 25-30 एलीट पैरा कमांडो हेलिकॉप्टर से म्यांमार के जंगल में उतारे गए थे। उस समय पूरे देश में उत्साह की लहर आई थी। ऐसा ऑपरेशन इसके पहले सेना ने कभी अंजाम नहीं दिया था। नौ जून 2015 की उस कार्रवाई ने लोगों की इस आकांक्षा को पूरा किया था। इससे पूरे देश
में रोमांच का अनुभव किया गया था एवं राष्ट्रवाद की एक नई लहर पैदा हुई थी। साफ है कि उस एक कार्रवाई से आतंकवादियों का खात्मा नहीं हुआ था। वे कमजोर तो हुए थे लेकिन समय का लाभ उठाकर वे फिर से संगठित हो गए। इसलिए भारतीय सेना के ईस्टर्न कमांड ने ऐसी कार्रवाई की आवश्यकता महसूस की। किंतु इस एक या दो कार्रवाई से समस्या का समाधान नहीं हो सकता है। पूर्वोर राज्यों में कम से कम 24 हिंसक संगठन सक्रिय हैं। इन सभी के प्रशिक्षण
शिविर अब भी म्यांमार, भूटान व बांग्लादेश में हैं। इनके खिलाफ सतत अभियान चलाए जाने की आवश्यकता है। 2003 में भारत के आग्रह पर ही भूटान रॉयल आर्मी ने वहां कार्रवाई की थी और उल्फा, एनडीएफबी और केएलओ को काफी नुकसान पहुंचाया था। बांग्लादेश की वर्तमान सरकार भी भारत के साथ सहयोग कर रही है। उसने भी समय-समय पर उग्रवादियों के खिलाफ अभियान चलाया है। इस समय हमारे संबंध तीनों देशों से अच्छे हैं और तीनों आतंकवाद के
खिलाफ सहयोग की घोषणा कर चुके है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पिछले दिनों जब म्यांमार के दौरे पर थे तो वहां आतंकवाद के खिलाफ सहयोग की घोषणा हुई। तो तीनों देशों का सहयोग हमको मिल सकता है। म्यांमार ने 2015 में जिस तरह हमारी कार्रवाई का किंचित भी प्रतिरोध नहीं किया उससे ही साफ हो गया था कि उसका रवैया आगे कैसा रहने वाला है। कहने का तात्पर्य यह कि पहले नौ जून-2015 तथा अब 27 सितंबर-2017 की कार्रवाई में चारित्रिक समानता भले न हो, लेकिन म्यांमार का रवैया दोनों समय समान रहा है। उसने सक्रिय न रहकर भी एक सहयोगी देश की भूमिका निभाई है। भविष्य में आवश्यकता पड़ने पर उसकी सेना सक्रिय भी हो सकती है। जाहिर है, ऐसा बयान उसी स्थिति में दिया गया होगा जब म्यांमार की सेना के साथ इस पर सहमति बनी होगी तभी तो म्यांमार की सेना ने इसका खंडन नहीं किया। तो ऐसी परिस्थितियों का लाभ उठाया जाना चाहिए। पहले राजनीतिक नेतृत्व की ओर से हिचक के कारण सेना को समस्या होती थी। अब राजनीतिक नेतृत्व की ओर से जब सेना को इसकी खुली छूट दे दी गई है तो फिर इनकी कमर तोड़ने का दायित्व सैन्य बलों का ही है। हमें अच्छे संबंधों की अनुकूल परिस्थितियों का लाभ उठाकर कम से कम म्यांमार के भीतर छिपने वाले समूहों के खिलाफ अभियान चलाना चाहिए।

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