प्लास्टिक कचरे से होने वाला प्रदूषण भी बड़ी चिंता का कारण बात क्यों नहीं?



दीपावली से पहले प्रदूषण को लेकर बातें तो खूब की गईं, मगर उसका असर किसी पर नहीं पड़ा। पर्व के नाम पर जहां-तहां खूब पटाखे जलाए गए। सड़कों पर पटाखों के अवशेष हमें यह बताने के लिए काफी हैं कि हमने अपनी धरती को पर्यावरण के अनुकूल बनाने में रत्तीभर भी प्रयास नहीं किया। खैर, पटाखों से होने वाले प्रदूषण की चर्चा में प्लास्टिक को सभी भूल गए। वर्तमान में प्लास्टिक कचरा बढ़ने से जिस प्रकार से प्राकृतिक हवा में प्रदूषण बढ़ रहा है, वह मानव जीवन के लिए तो अहितकर है ही, साथ ही हमारे स्वच्छ पर्यावरण के लिए भी विपरीत स्थितियां पैदा कर रहा है। हालांकि, समय-समय पर सरकार से लेकर गैर सरकारी संस्थाओं ने जागरण अभियान चलाए हैं, परंतु परिणाम अब तक मिलता दिखाई नहीं देता। ऐसे में प्रश्न यह है कि गैर सरकारी संस्थाओं के अभियान अपेक्षित परिणाम क्यों नहीं दे पा रहे हैं? इसके पीछे की कहानी कहीं कागज पर तो नहीं है। अपने देश में कागजों में काम होने की बीमारी लगातार बढ़ रही है। कागजों के आंकड़ों को वास्तविक धरातल पर उतारा जाता है, तो कहीं भी काम दिखाई नहीं देता। सामाजिक चेतना के कम होने के कारण हम चैतन्यता के नाम पर शून्य की तरफ बढ़ते जा रहे हैं। अगर प्लास्टिक प्रदूषण बढ़ने की यही गति रही, तो एक दिन हमें शुद्ध हवा भी नसीब नहीं होगी।
वर्तमान में वायु प्रदूषण के चलते ही हमारे शरीर में कई प्रकार के विषैले कीटाणु प्रवेश कर रहे हैं, जो हमारे स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डाल रहे हैं। कई बीमारियां केवल गंदगी के कारण हो रही हैं, चाहे वह प्लास्टिक कचरे से उत्पन्न गंदगी हो या फिर जाम नालियों के गंदे पानी से पैदा होने वाली गंदगी। प्लास्टिक पॉलीथिन और खाद्य सामग्री में उपयोग आने वाले प्लास्टिक के सामान रासायनिक पदार्थो के प्रयोग के कारण हमें जहर भरा खाना खाने के लिए विवश होना पड़ रहा है। हमारे देश में स्वच्छ भारत अभियान चलाया जा रहा है, लेकिन क्या हम जानते हैं कि प्लास्टिक कचरा स्वच्छ भारत अभियान की दिशा में बहुत बड़ा अवरोधक बनकर सामने आ रहा है। प्लास्टिक कचरे से मुक्ति पाने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार ने एक सराहनीय कदम उठाया है। 2014 में छत्तीसगढ़ की सरकार ने पॉलीथिन पर प्रतिबंध लगाकर इससे मुक्ति का सूत्रपात किया था और अब प्लास्टिक से निर्मित प्रचार सामग्री और खाद्य पदार्थो के लिए उपयोग में लाई जाने वाली डिस्पोजल वस्तुओं पर भी प्रतिबंध लगाने का निर्णय लिया है। छत्तीसगढ़ सरकार का यह कदम सभी राज्यों के लिए एक पाथेय है। छत्तीसगढ़ एक पिछड़ा क्षेत्र था, पर अब ऐसा नहीं है, छत्तीसगढ़ से यह पिछड़ेपन का ठप्पा हटने लगा है। सरकार के अभियान से वहां की जनता में चेतना जगी है, जिसका असर दिखाई देने लगा है।
प्लास्टिक कचरा वास्तव में आयातित कचरा है। हमारे देश में कागज एवं कपड़े के बैग ही प्रचलन में रहते थे, मगर विदेशियों की नकल करने के कारण हम भी प्लास्टिक का उपयोग करने की ओर प्रवृत होते चले गए। यही प्रवृति आज हमारे देश की सबसे विकराल समस्या बनकर उभर रही है। हमने कहावत सुन रखी है कि अपना काम बनता भाड़ में जाए जनता, यह सोच किसी प्रकार से भारतीय संस्कृति की संवाहक नहीं हो सकती। यह सोच विदेशों की नकल है। आज प्लास्टिक कचरे का उपयोग कुछ इसी तर्ज पर किया जा रहा है। लोग अपना काम बनाने के लिए प्लास्टिक के सामानों का प्रयोग कर रहे हैं और बाद में यही सामान कचरा बन जाता है, जो जनता के लिए गंभीर समस्याओं को पैदा कर रहा है। कचरा फेंकने वाले लोगों को क्या मालूम नहीं कि यह कचरा हमारे लिए भी समस्या बन रहा है व देश के लिए गंभीर स्थिति पैदा कर रहा है। इस स्थिति को और आगे बढ़ने से रोकने के लिए किसी सरकार के कदम उठाने मात्र से सफलता नहीं मिलने वाली है। इसके लिए जनता की भागीदारी भी बहुत मायने रखती है। वास्तव में जिस देश की जनता अपने देश के प्रति तादात्म्य स्थापित करते हुए कार्य करती है, वह देश बहुत सुंदर और स्वच्छ होता है। हम भारत के निवासी हैं। इसलिए हमारे आचरण और कार्य में भारतीय संस्कृति का प्रदर्शन दिखना ही चाहिए। हमारी संस्कृति यही कहती है कि सर्वे भवन्तु सुखिन: अर्थात सभी सुखी हों, लेकिन आज के दौर में हमें यह भी चिंतन करना होगा कि क्या हमारे कार्यो से जनता को सुख की अनुभूति होती है और हम देश को स्वस्थ बनाने के लिए अपनी ओर से कितना योगदान दे रहे हैं।
लोग कितना भी कहें कि हम भारतीय हैं, लेकिन जब तक हमारी दिनचर्या में भारतीयता दिखाई नहीं देगी, तब तक हम भारतीय नहीं हैं। आज हम देख रहे हैं कि हम भारत के नागरिक ही जाने अनजाने में एक-दूसरे के लिए समस्याओं का निर्माण करते जा रहे हैं। देश में वातावरणीय समस्याओं का प्रादुर्भाव हमारी ही देन है, जिसे जाने या अनजाने में हमने पैदा किया है। हम यह भी जानते हैं कि प्लास्टिक कचरे के कारण जिन बस्तियों में पानी भर जाता है, उसका एक मात्र कारण भी तो हम हैं। नालियां जाम होने की वजह से ही ऐसे हालात बन रहे हैं। पेड़ पौधे भी प्रदूषित वातावरण का शिकार हो रहे हैं। ऐसी स्थिति में हमें ताजी हवा कैसे मिल सकती है। आज यह सबसे बड़ा सवाल है। अब हमें चैतन्य शक्ति का जागरण करके देश को स्वच्छ वातावरण देने के लिए प्लास्टिक कचरे से मुक्ति पाना ही होगा।

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