सरकार ने कहा कि करोड़ों की बचत हुई, लेकिन विपक्ष ने कहा राफेल सौदे का सच सामने आए
फ्रांस से राफेल विमानों की खरीद के सौदे को बोफोर्स-दो के नाम से प्रचारित कर रहे विपक्ष के सामने सरकार ने दावा किया है कि 12 हजार 600 करोड़ रुपए की बचत की गई है। सरकार की तरफ से कहा गया है कि इन विमानों को उड़ने की स्थिति में खरीदा गया है। यह भी दावा किया गया है कि यूपीए सरकार के कार्यकाल में इस संबंध में कोई सौदा हुआ ही नहीं था। इससे पहले कांग्रेस ने सरकार पर हमला बोलते हुए कहा था कि सौदे की कीमत में तेज इजाफा हुआ है। यूपीए के कार्यकाल में एक विमान को 526 करोड़ रुपए में खरीदने की बात चल रही थी, लेकिन एनडीए सरकार में यह कीमत बढ़कर एक हजार 570 करोड़ रुपए हो गई। वैसे, विमान की खरीद प्रक्रिया यूपीए सरकार ने 2010 में शुरू की थी। वषर्-2012 से लेकर 2015 तक इसे लेकर बातचीत चलती रही। बहरहाल, राफेल पर उठे विवादों की वजह राजनीतिक है। हाल ही में सरकार ने बोफोर्स और अगस्तावेस्टलैंड हेलीकॉप्टर सौदों की जांच फिर से कराने की बात कही थी, जिसके बाद कांग्रेस ने भाजपा को जवाब देने की तैयारी की है।
ंसंसद का शीतकालीन सत्र बुलाने की जिद पर अड़ा विपक्ष संसद में इसी सौदे के सहारे सरकार को घेरने की तैयारी में है। यदि इस सौदे की पृष्ठभूमि पर नजर डालें तो पता चलेगा कि राफेल सौदा आरंभ से ही शक के दायरे में है। विपक्ष का यह भी कहना है कि सौदे का सारा फैसला प्रधानमंत्री कार्यालय में हुआ था। इस फैसले को इतना गुप्त रखा गया था कि रक्षा मंत्री तक को भनक नहीं थी। आधिकारिक रूप से जब सौदे पर हस्ताक्षर करना था, तब मंत्री को जानकारी दी गई। इस सौदे पर सबसे पहले भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी, बाद में स्वराज अभियान के योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण ने भी सवाल उठाए थे। अब राहुल गांधी इस मुद्दे को हवा देने का काम कर रहे हैं। हालांकि, अब तक किसी के पास घोटाले से जुड़े सबूत नहीं हैं। बेहतर होता कि इनमें से कोई आरोप लगाने के साथ सबूत भी देश के सामने रख पाता। चूंकि, ऐसा नहीं हो पाया है, तो केंद्र सरकार की दलीलों को मानना ही आखिरी विकल्प बचेगा।
संसद में सरकार को घेरने की योजना बना रही कांग्रेस को सबूतों के साथ आना होगा, वरना विरोध हंगामे की शक्ल में बदल जाएगा। कांग्रेस भले ही इस सौदे पर सरकार को आंख दिखा रही हो, मगर वाकई में इस सौदे से किसी को नाराज होना चाहिए, तो वह हैं मिस्र और कतर। मिस्र ने 24 राफेल करीब 5.9 अरब डॉलर में खरीदे। वहीं कतर ने इतने ही राफेल विमानों के लिए 7.2 अरब डॉलर खर्च किए हैं। साफ है कि भारत ने 36 राफेल फाइटर विमानों के लिए 8.9 अरब डॉलर की जो रकम खर्च की है, वह मिस्र व कतर के मुकाबले काफी कम है। विमान के साथ हथियारों के सिस्टम, इसके कल-पुर्जो की आपूर्ति के साथ पांच साल तक के रख-रखाव की गारंटी भी भारत को मिली है। ऐसे में विपक्ष के आरोपों के सामने सरकार का तर्क वाकई वजनदार है। अब कांग्रेस और विपक्ष को यह ध्यान रखना ही होगा कि कहीं हमलों का रुख उल्टा न हो जाए।
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