अयोध्या पर अब न हो राजनीति, ऐसे में हमारे नेताओं को चाहिए कि वे राजनीति करने से बाज आएं



सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या मसले की सुनवाई को अगले लोकसभा चुनाव तक टालने की दलील के बाद सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील कपिल सिब्बल चौतरफा घिरते दिख रहे हैं। पीएम मोदी और भाजपा के हमले के बाद अब सुन्नी वक्फ बोर्ड ने ही सिब्बल से किनारा कर लिया है, जिसका पक्ष रखते हुए उन्होंने शीर्ष अदालत में यह दलील दी थी। राम मंदिर के मुद्दे पर बोलते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि चुनाव के बीच अब कांग्रेस भी खुद को राम मंदिर से जोड़ रही है, लेकिन उन्हें राष्ट्र की चिंता नहीं है। सुन्नी वक्फ बोर्ड के सदस्य और बाबरी मस्जिद के पक्षकार हाजी महबूब ने भी सिब्बल के बयान को गलत करार देते हुए कहा, कपिल सिब्बल हमारे वकील हैं, लेकिन वे एक राजनीतिक दल से भी जुड़े हुए हैं। करीब 65 साल पुराना यह विवाद आज विवादित ढांचे के विध्वंस की 25वीं बरसी मना रहा है। एक ऐसा विवाद जिसे काफी पहले आपसी सहमति से सुलझा लिया गया होता, अगर राजनीति बीच में न आती। मगर राजनीतिक दलों के अपने स्वार्थ ने इस मुद्दे को कभी नेपथ्य में जाने ही नहीं दिया। अब जबकि मामला सुप्रीम कोर्ट में अंतिम सुनवाई के दौर में आया है, तो फिर वोट की राजनीति शुरू हो गई है।
सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील कपिल सिब्बल को यह जवाब पूरे देश को देना चाहिए कि वे क्यों 2019 तक मामले की सुनवाई टालने के पक्ष में हैं। जो विवाद अब खत्म होने की ओर है, उसे दो साल और आगे ले जाने में किसका फायदा सिब्बल को दिख रहा है। अगर ‘बाहर’ के हालात को देखें, तो यह तब से खराब हैं, जब 1949 में 16वीं सदी में बनाई गई बाबरी मस्जिद में मूर्तियां रखी गई थीं। इस तरह से देखें, तो मामला पहले हाईकोर्ट में ही नहीं जाना था। लेकिन तब और आज के माहौल में फर्क जरूर है। 2010 में कांग्रेस पूरी तरह से सेक्यूलर थी, आज उसकी भूमिका में बदलाव आ रहा है। सुप्रीम कोर्ट में सिब्बल की दलील के पीछे यह भाव सभी को दिखा है। अब कांग्रेस इससे इंकार करे, तो बात अलग है। सिब्बल की दलील पर आज भाजपा जिस तरह से आस्तीनें चढ़ा रही है, वह भी कम दोषी नहीं है। अयोध्या मसले पर राजनीति उसने भी कम नहीं की।
केंद्र और राज्य में सरकार होने के बाद आपसी सहमति की कोशिश एक बार भी नहीं की गई। भाजपा के लिए सत्ता का केंद्र रहा अयोध्या विवाद इसलिए भी नहीं सुलट पाया, क्योंकि भाजपा इसे हिंदू बनाम मुसलमान राजनीति का पर्याय मानती रही। लेकिन इन सबके बीच अयोध्या से किसी ने पूछने की जरूरत नहीं समझी कि उसे क्या चाहिए? अयोध्या में विवादित ढांचा गिराए जाने को आज 25 साल पूरे हो गए हैं। इन वर्षो में एक पूरी पीढ़ी जवान हो जाती है। मगर राजनीतिक दलों की मंशा के चलते इन जवानों के पास न तो काम है और न ही दाम। काम के लिए पलायन युवाओं की मजबूरी है। बेहतर जिंदगी वहां के लोगों के लिए सपना। मगर इस कड़वे सच को न तो भाजपा समझ रही है और न ही कपिल सिब्बल। अयोध्या के लोग अब इस विवाद का खात्मा चाहते हैं, तो ऐसे में हमारे नेताओं को चाहिए कि वे राजनीति करने से बाज आएं।

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