बिग बॉस के बहाने छोटे पर्दे पर कार्यक्रमों के प्रसारण को लेकर बहस फिर से तेज हो गई




तीन नवंबर-2006 को बिग बॉस की शुरुआत सोनी टीवी पर हुई थी। यह इसका पहला सीजन था, जिसमें होस्ट की भूमिका अभिनेता अरशद वारसी ने निभाई थी। पंद्रह हाउसमेट्स के साथ लगभग तीन महीने चले इस शो ने ऐसी लोकप्रियता पाई कि फिर तो इसके एक बाद एक सीजन आने शुरू हो गए। शो की बढ़ती लोकप्रियता के कारण अरशद वारसी बीती बात हो गए और सिनेमा जगत के बड़े नामों ने शो के संचालन (होस्टिंग) में दिलचस्पी लेनी शुरू कर दी। शिल्पा शेट्टी, संजय दत्त, सलमान खान और यहां तक कि सदी के महानायक अमिताभ बच्चन भी खुद को इससे दूर नहीं रख सके। अमिताभ बच्चन तीसरे सीजन में संचालक (होस्ट) की भूमिका में नजर आए। हालांकि, ये शो उन्हें अपने लिए उपयुक्त नहीं लगा या कुछ और कारण रहा कि अगले सीजन में वे इससे अलग हो गए। उसके बाद से इस शो के संचालन का दारोमदार सलमान खान के ऊपर है। सलमान खान के संचालन में टीआरपी बेहतर रहने के कारण ही उन्होंने इस शो के सबसे ज्यादा सात सीजन होस्ट किए हैं। ग्यारहवें सीजन के संचालक भी सलमान खान ही हैं।
शो में क्या होता है- यह बताने की जरूरत नहीं है। सब जानते हैं कि विविध क्षेत्रों, ज्यादातर टीवी व सिनेमा के प्रसिद्ध लोगों को एक निश्चित समयसीमा के लिए एक घर में बंद कर उनके व्यवहार को कैमरों के जरिए देखा जाता है, जिसका व्यवहार सबसे बेहतर रहता है और कुछ अभद्रता आदि नहीं करता, वह विजेता बनता है। उसे एक करोड़ की धनराशि प्राप्त होती है। मगर, यहां जानने वाली महत्वपूर्ण बात है कि शो की टीआरपी। सेलिब्रिटियों के आपसी झगड़ों, विवादों, सनसनीखेज खुलासों और तरह-तरह की अंतरंग चीजों का अश्लील प्रदर्शन और फिर उस पर बेमतलब का हल्ला व गाली-गलौज। इन चीजों के मद्देनजर शो में प्राय: विवादित पृष्ठभूमि या विवादित रवैए वाले लोगों को ही लिया जाता है। अभी पिछले सीजन में विवादित रहे ओम स्वामी को लिया गया था, जिसने घर में जाकर चाल-चलन और व्यवहार की मर्यादाएं लांघ दी थीं। ओम का व्यवहार निर्लज्जता और अभद्रता की सारी सीमाएं तोड़ने वाला था। विचित्र बात यह है कि टीवी मीडिया की भी इस शो में भारी दिलचस्पी होती है। प्रिंट तो नहीं, मगर टीवी और डिजिटल मीडिया में बिग बॉस शुरू होने के बाद बिग बॉस के घर में हुई घटनाओं को ऐसे दिखाया जाता है जैसे कोई बड़ी एक्सक्लूसिव खबर हो। बहरहाल, बिग बॉस की लोकप्रियता से कई सवाल भी उठते हैं। सोचिए, थक-हारकर कुछ पल टीवी के सामने बैठकर दिमाग हल्का करने के लिए अच्छा देखने के बजाय बिग बॉस के घर में दूसरों के झगड़े देखने में लोगों का दिलचस्पी लेना किस प्रवृत्ति का सूचक है?
दरअसल यह दिखाता है कि हमारे अंदर दूसरों के जीवन में झांकने और दूसरों के यहां होने वाले कलह-क्लेश का आनंद लेने की बुरी लत इतनी बढ़ चुकी है कि अब बाकायदा इसका खाते-पीते टीवी पर आनंद लेने लगे हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो हमारे मनोरंजन का स्वाद दिन-प्रतिदिन फूहड़ से फूहड़तम होता जा रहा है। यह स्थिति शहरी व शिक्षित कहे जाने वाले तबके में अधिक है। पर इन सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि यह शो टीवी पर आता है, जिसे बच्चे भी देखते हैं, ऐसे में उनकी मानसिकता पर क्या प्रभाव पड़ता होगा? बच्चे टीवी पर सेलिब्रिटियों के झगड़ों और गाली-गलौज से क्या सीखेंगे? कितनी विचित्र बात है कि एक तरफ अभिभावक बच्चों को गाली-गलौज और झगड़ों आदि से बचने की नसीहतें देते हैं और दूसरी तरफ खुद टीवी पर यही सब मजा ले-लेकर देखते हैं, तो उनके प्रति बच्चों में क्या राय बनेगी? बिग बॉस तो एक उदाहरण है। ऐसे और भी तमाम शो हैं जो अलग-अलग चैनलों पर प्रसारित होते हैं, जिनमें कुछ के नाम पर कुछ और दिखाकर टीआरपी बटोरी जाती है, मगर उन शो का परिवारों और बच्चों पर क्या और कैसा प्रभाव पड़ता होगा, इस पर कभी विचार नहीं किया जाता। क्राइम पेट्रोल, सावधान इंडिया और होशियार जैसे शो की रूपरेखा अलग है, मगर अपराध के प्रति जागरूकता फैलाने के नाम पर वे भी सामाजिक विकृति पैदा करने का ही काम कर रहे हैं। इन आपराधिक कार्यक्रमों में रहस्य, रोमांच और सेक्स को मिला एक कॉकटेल तैयार करके घरों में पहुंचाया जा रहा है। इन कार्यक्रमों से अपराध के प्रति जागरूकता आए न आए, पर अपराध करने के दस तरीके जरूर सीख जाएंगे। इन कार्यक्रमों की सफलता इसका प्रमाण है कि ये अब लोगों को भा रहे हैं। बहरहाल, अभिभावकों को चाहिए कि अपने लिए न सही, अपने बच्चों के लिए इस तरह के कार्यक्रमों को देखने से परहेज करें तो बेहतर होगा।
टीवी या कहें छोटा पर्दा एक समय अपनी मर्यादा को जानता था, पर अब व्यावसायिकता की होड़ ने मर्यादा तार-तार कर दी है। टीवी पर क्या दिखाना है और क्या नहीं, इसकी जवाबदारी लेने वाला भी कोई नहीं है। फिर टीवी पर क्या देखना है और क्या नहीं, यह सोचने की चिंता अभिभावकों को नहीं रह गई। मनोरंजन के नाम पर टीवी पर फूहड़ता परोसी जा रही है और हम ड्राइंग रूम में बैठकर उसका स्वाद ले रहे हैं, जबकि होना यह चाहिए कि इस तरह के कार्यक्रमों को नकारा जाए, ताकि कार्यक्रम बनाने वाले निर्माताओं को उनकी गलती का अहसास हो और छोटा पर्दा अपनी हद में रहे।

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