चाबहार: भारत-ईरान के बीच कूटनीति की नई इबारत लिखने वाला चाबहार पोर्ट शुरू हो गया



भारत और ईरान के बीच कूटनीति का नया दौर कहा जा रहा चाबहार पोर्ट शुरू हो गया है। पोर्ट के पहले चरण का उद्घाटन ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी ने किया। इस अवसर पर भारत, अफगानिस्तान और इलाके के कई दूसरे देशों के प्रतिनिधि मौजूद थे। ईरान के दक्षिण पूर्व सिस्तान बलूचिस्तान क्षेत्र में मौजूद इस पोर्ट से भारत, ईरान व अफगानिस्तान के बीच एक नया रणनीतिक मार्ग खुलेगा। इस पोर्ट का शुरू होना भारत के लिए रणनीतिक और व्यापारिक समेत कई मायनों में फायदेमंद है। साथ ही इस बंदरगाह के जरिए भारत अब बिना पाकिस्तान गए ही अफगानिस्तान और फिर उससे आगे रूस और यूरोप से जुड़ सकेगा। अभी तक भारत को अफगानिस्तान जाने के लिए पाकिस्तान होकर जाना पड़ता था। ईरान के दक्षिणी तट पर सिस्तान-बलूचिस्तान प्रांत में स्थित चाबहार बंदरगाह भारत के लिए रणनीतिक तौर पर उपयोगी है। यह फारस की खाड़ी के बाहर है तथा भारत के पश्चिम तट पर स्थित है और भारत के पश्चिम तट से यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है।
चाबहार पोर्ट का एक महत्व यह भी है कि यह पाकिस्तान में चीन द्वारा चलने वाले ग्वादर पोर्ट से 100 किलोमीटर ही दूर है। चीन अपने 46 अरब डॉलर के चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे कार्यक्रम के तहत ही इस पोर्ट को बनवा रहा है। चीन इस पोर्ट के जरिए एशिया में नए व्यापार व परिवहन मार्ग खोलना चाहता है। अब अगर इस चाबहार के व्यावसायिक महत्व को देखें, तो ईरान का उपभोक्ता बाजार भारतीय उद्योगों के लिए एक बड़ा मार्केट है। भारतीय उद्योगों को ईरान माल भेजने के लिए एक प्रवेश मार्ग की आवश्यकता थी, जिसे चाबहार बंदरगाह पूरी करता है। वहीं ईरान के बाजार के अतिरिक्त भारत की व्यावसायिक कंपनियों के लिए पूरे मध्य एशिया का बाजार भी खुल जाएगा जिनमें प्रमुख हैं-तुर्कमेनिस्तान, कजाखस्तान, उज्बेकिस्तान इत्यादि, जो ईरान के उत्तर में स्थित हैं और ये देश चाबहार पोर्ट से सड़क मार्ग से जुड़ जाएंगे। अफगानिस्तान में कोई बंदरगाह नहीं होने से वह पूर्ण रूप से पाकिस्तान के बंदरगाहों पर निर्भर रहता था और अब जबकि उसे ईरान के बंदरगाह की वैकल्पिक सुविधा मिल जाएगी, तो वह पाकिस्तान पर आश्रित नहीं रहेगा।
सामरिक उपयोगिता की दृष्टि से देखें तो इस पोर्ट का सामरिक उपयोग करने की बात भी भारत के रणनीतिकारों के दिमाग में होगी। जब से ग्वादर पोर्ट चीन के नियंत्रण में आया है तब से गुजरात और मुंबई के नौसैनिक अड्डे चीन की रेंज में आ गए हैं और अरब सागर में होने वाली सैन्य हलचलों पर उसकी पैनी नजर रहती है। चीन की मंशा निश्चित ही ग्वादर बंदरगाह को अपनी नौसेना के लिए एक सामरिक ठिया बनाने की रहेगी। ऐसे में चाबहार पोर्ट पर भारत की उपस्थिति चीन की हरकतों पर नजर रखने के लिए उपयोगी रहेगी। फिर भारत और जापान के वर्तमान रिश्तों को देखते हुए अगर दोनों देश चाबहार पोर्ट का आधुनिकीकरण करते हैं तो निश्चित ही यह सहयोग एक ऐसी उपलब्धि होगी, जो मध्य एशिया में चीन के बढ़ते प्रभाव को भी संतुलित करेगी।

Comments

Popular posts from this blog

झंडे की क्षेत्रीय अस्मिता और अखंडता

नेपाल PM शेर बहादुर देउबा का भारत आना रिश्तों में नए दौर की शुरुआत

देश में जलाशयों की स्थिति चिंतनीय, सरकार पानी की बर्बादी रोकने की दिशा में कानून बना रही है