भाजपा की चुनौती कांग्रेस को मिले जैकपॉट से निपटना




पटियाला हाउस कोर्ट के फैसले से पूरा देश हैरान है। 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन को देश का सबसे बड़ा घोटाला बताया गया था, लेकिन सभी आरोपी बच गए। राजनीतिक तौर पर खलबली मचाने वाले इस मामले में कॉरपोरेट व राजनेता सभी आरोपियों को सीबीआई अदालत ने बरी कर दिया। दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट की स्पेशल सीबीआई अदालत ने इस घोटाले से जुड़े सभी मामलों में फैसला सुनाया। इनमें से दो मामलों में जांच सीबीआई ने और तीसरे मामले की जांच प्रवर्तन निदेशालय ने की। इस मामले में मुख्य आरोपी पूर्व दूरसंचार मंत्री ए राजा और डीएमके सांसद कनिमोझी थे। सीबीआई कोर्ट ने सभी आरोपियों को बरी करते हुए कहा कि सरकारी पक्ष आरोपियों पर दोष सिद्ध करने में नाकाम रहा। इस फैसले के बाद कांग्रेस के हाथ भाजपा और प्रधानमंत्री को घेरने के साथ ही आगामी लोकसभा चुनावों के लिए एक मनचाहा जैकपॉट हाथ लग गया है।
यह फैसला भाजपा के लिए सिर मुड़ाते ही ओले पड़ने जैसा है, क्योंकि गुजरात में 99 के फेर में पड़ने के बाद अभी वह संभल भी नहीं पाई है कि कांग्रेस को हमलावर होने का हथियार मिल गया है। अदालत के फैसले का असर आगामी दिनों में होने वाले चुनाव पर पड़ सकता है, क्योंकि 2014 के चुनाव में 2जी घोटाला भाजपा का मुख्य हथियार था। खैर अदालत के इस फैसले का राजनीतिक प्रभाव जब पड़ेगा, तब देखा जाएगा, लेकिन अभी तो भारत के महालेखाकार और नियंत्रक यानी कैग और सीबीआई कटघरे में हैं। अब यह सवाल उठने लगा है कि क्या यह घोटाला हुआ था? अगर हां तो सीबीआई को सबूत क्यों नहीं मिले?
ज्ञातव्य है कि ये घोटाला पहली बार साल 2010 में सामने आया जब कैग ने अपनी रिपोर्ट में साल 2008 में किए गए टेलीकॉम स्पेक्ट्रम आवंटन पर सवाल खड़े किए। आवंटन में टेलीकॉम कंपनियों को नीलामी की बजाय ‘पहले आओ और पहले पाओ’ की नीति पर लाइसेंस दिए गए थे। सीएजी का दावा था कि नियमों की अनदेखी कर हुए इस आवंटन की वजह से खजाने को एक लाख 76 हजार करोड़ रुपए का नुकसान हुआ था। इस रिपोर्ट ने तत्कालीन यूपीए सरकार व देश को हिलाकर रख दिया था। सीएजी की रिपोर्ट में दिए गए 1.76 लाख करोड़ रुपए के आंकड़े पर विवाद भी खूब हुआ लेकिन तब तक घोटाला राजनीतिक विवाद की शक्ल ले चुका था और सुप्रीम कोर्ट तक में याचिका दायर कर दी गई थी। इसके बाद फरवरी 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने सभी 122 लाइसेंस रद्द कर दिए थे जो आठ टेलीकॉम कंपनियों को दिए गए थे। अब आइडिया को छोड़कर सभी टेलीकॉम कंपनियां कारोबार समेट चुकी हैं। जिस यूपीए सरकार को टूजी घोटाले की वजह से देशभर में फजीहत झेलनी पड़ी, आज अदालत का फैसला आने के साथ ही कांग्रेस संसद से लेकर सड़क तक भाजपा पर हमलावर हो गई है।
फैसले के बाद पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि यह घोटाला नहीं था। यूपीए सरकार के खिलाफ प्रोपेगंडा किया गया था। ये वही मनमोहन सिंह हैं, जिन्होंने एक बार कहा था गठबंधन की मजबूरी के तहत विभागीय मंत्री यानी ए राजा को दूरसंचार विभाग देना पड़ा था। शिकायत मिलने के बाद भी स्पेक्ट्रम डील में वे सीधे हस्तक्षेप नहीं कर पाए। फिर सवाल उठता है कि अब कांग्रेस किस मुंह से अपना बचाव करेगी और भाजपा पर इसका दोष मढ़ेगी। उधर, 2जी केस में सभी 17 आरोपियों को बरी किए जाने के बाद पूर्व सीएजी विनोद राय एक बार फिर से चर्चा में हैं। कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने उन पर गंभीर आरोप लगाए हैं। कपिल सिब्बल का कहना है कि विनोद राय ने फर्जी रिपोर्ट के आधार पर 2जी केस को आगे बढ़ाया। अब उन्हें देश से माफी मांगनी चाहिए।
ज्ञातव्य है कि विनोद राय 7 जनवरी 2008 से 22 मई 2013 तक भारत के सीएजी रह चुके हैं। इसी दौरान 2जी मामला सामने आया। यूपीए सरकार के दौरान चर्चा में आए इस घोटाले को उजागर करने के पीछे विनोद राय का नाम सामने आता है। विनोद राय 2जी के साथ ही यूपीए सरकार के कोयला घोटाले को भी सामने लेकर आए थे। इन दोनों घोटालों ने यूपीए सरकार को बदनामी का बड़ा दाग लगाया था। बाद में जब भी इन घोटालों की चर्चा हुई विनोद राय का नाम जरूर उठा। यूपीए राज के दौरान जब 2जी और कोयला घोटाले को लेकर राय चर्चा में आए तो उस वक्त पीएमओ के राज्यमंत्री वी नारायणसामी ने सार्वजनिक रूप से उनकी आलोचना की थी। नारायणसामी ने कहा था कि सीएजी को सरकारी स्कीमों में हो रहे घोटालों पर अपनी टिप्पणी देने का कोई अधिकार ही नहीं है, इससे सीएजी के काम करने के तरीके को लेकर सवाल उठता है।
विनोद राय ने इसके बाद जवाब भी दिया था। उन्होंने कहा था कि सीएजी का यह मूलभूत और नैतिक दायित्व है कि वह सरकार के कामकाज में दखल न देते हुए भी आर्थिक मामलों में पाई गई सभी अनियमितताओं के बारे में बताए ताकि संविधान द्वारा मिले उसके अधिकारों की रक्षा की जा सके और सरकार पर नियंत्रण बना रहे। अगर ऐसा नहीं होता है तो यह जनता के साथ विश्वासघात होगा। लेकिन अदालत के फैसले के बाद अब कैग भी कटघरे में है। यही नहीं आज एक बार फिर से 2जी घोटाले की जांच करने वाली ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमेटी की रिपोर्ट चर्चा में आ गई है। 2014 के लोकसभा चुनाव की राजनीतिक तैयारियां जब जोरों पर थीं, तब अगर किसी चीज की सबसे अधिक चर्चा थी तो वह था- 2जी घोटाला।
सीएजी की रिपोर्ट के बाद इस मामले में 2जी घोटाले की जांच करने वाली ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमेटी की रिपोर्ट भी आ चुकी थी। इस कमेटी के प्रमुख और केरल से कांग्रेस सांसद पीसी चाको ने 500 पन्नों की अपनी रिपोर्ट संसद में पेश कर दी थी। इस रिपोर्ट में समिति ने 2जी स्कैम को स्कैम ही नहीं माना गया था। बता दें कि पार्लियामेंट्री कमेटी की रिपोर्ट उतनी ही अहम मानी जाती है, जितनी संसदीय रिपोर्ट। चाको ने संसद के पटल पर रिपोर्ट सौंपने के बाद तत्कालीन मुख्य विपक्षी भाजपा समेत सभी दलों से इस पर चर्चा करने के लिए कहा था, लेकिन चाको का दावा था कि विपक्ष इस रिपोर्ट पर चर्चा के लिए तैयार ही नहीं हुआ, क्योंकि रिपोर्ट में घोटाले जैसा कोई मामला बन ही नहीं रहा था और अगर रिपोर्ट पर चर्चा होती तो संभव था कि मनमोहन सिंह सरकार के खिलाफ विपक्ष के चुनाव अभियान का जो आधार था, यानी 2जी स्कैम, उसकी कलई खुल जाती।
बहरहाल, अब जबकि कोर्ट का फैसला आ गया है, तो कांग्रेस 4जी की स्पीड से भाजपा पर बिफर गई है। कांग्रेस ने यहां तक कहा कि भाजपा देश के सामने झूठ बोलकर सत्ता हथियाने में कामयाब हुई है। भाजपा भी पीछे नहीं है। हाथ से जाती बाजी को बचाने के लिए ही सही, वह कांग्रेस को बड़ी बड़ी नसीहत देने में जुटी है। यह तो तय है कि कोर्ट के फैसले के बाद पूरे देश का राजनीतिक माहौल जैसा बना है, वह आने वाले दिनों में हमें कई करतबों के दर्शन कराएगा। क्योंकि देश में होने वाले अगले चुनाव में यह मुद्दा एक बार फिर से जोर पकड़ेगा। देखना यह है कि बाजी कौन मारेगा।
विनोद कुमार उपाध्याय (वरिष्ठ पत्रकार)

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