असम में एनआरसी का पहला ड्राफ्ट जारी हो गया, अब दूर होगी असम की दिक्कत



नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस (एनआरसी) का पहला ड्राफ्ट सोमवार को जारी कर दिया गया है। इसमें असम के 3.29 करोड़ लोगों में से 1.9 करोड़ लोगों को जगह दी गई है, जिन्हें कानूनी रूप से भारत का नागरिक माना गया है। बाकी नामों का विभिन्न स्तरों पर वेरिफिकेशन कराया जा रहा है। आवेदन की प्रक्रिया मई-2015 में शुरू हुई थी, जिसमें पूरे असम के 68.27 लाख परिवारों से 6.5 करोड़ दस्तावेज आए थे। यह कदम राजनीतिक रूप से भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। दरअसल, यहां सिटिजनशिप और अवैध प्रवासियों का मुद्दा बड़ा राजनीतिक रूप ले चुका है। भाजपा के लिए एनआरसी बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसका इस्तेमाल चुनावी भाषणों के वक्त अवैध प्रवास की वजह से असम की खोने वाली पहचान को सुरक्षित रखने के नाम पर किया गया था। यह एक ऐसा पैंतरा था जो 2016 के चुनाव में जीत हासिल करने में मददगार साबित हुआ था। वहीं, सुप्रीम कोर्ट द्वारा अवैध अप्रवासियों पर रोक लगाने के लिए एनआरसी का आदेश देने पर असम के अल्पसंख्यक नागरिकता जाने के खतरे से घबराए हुए हैं।
असम के अल्पसंख्यकों के इस डर की वजह उनके पंचायत प्रमाणपत्र हैं, जिसके बारे में उनकी आशंका है कि शायद इन प्रमाणपत्रों को अवैध माना जाएगा। असम में अवैध अप्रवासियों की बढ़ती भीड़ के बाद सुप्रीम कोर्ट को एनआरसी का आदेश तक जारी करना पड़ा, जिसे जनवरी तक तैयार भी कर दिया जाना था, लेकिन बाद में इसकी अवधि बढ़ाकर 31 दिसंबर कर दी गई। असम में आखिरी बार एनआरसी का पंजीकरण 1951 में हुआ था। अप्रवासियों की सही संख्या जानने के लिए कराई जा रही यह कवायद भाजपा के लिए काफी अहमियत रखती है। असम की सत्ता में आने के पहले से ही पार्टी इस मुद्दे को जोरशोर से उठाती रही है। इसलिए अब सरकार पर यह दबाव बढ़ गया था कि वह अप्रवासियों की पहचान करे और उन्हें राज्य से बाहर करे, ताकि मूल निवासियों की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके। ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन और असम गण परिषद जैसे संगठनों की भी लंबे वक्त से यही मांग रही है।
एनआरसी के जरिए असम के वास्तविक नागरिकों की पहचान तय हो सकेगी। साथ ही यह तय हो सकेगा कि राज्य की विभिन्न योजनाओं के लिए कौन पात्र है और मतदान कर सकता है। दरअसल, 1971 के बाद बांग्लादेशी लोग यहां आ गए थे, ऐसे में अवैध प्रवासियों की असम में पहचान भाजपा के लिए प्रमुख मुद्दा बना, जिसके आधार पर भाजपा ने चुनाव भी लड़ा। एनआरसी ड्राफ्ट असम में स्थानीय लोगों के रूप में भारतीय नागरिकों को स्थापित करेगा और असम के स्थायी नागरिकों को सरकारी फायदे मिल सकेंगे। लेकिन असम की सोनोवाल सरकार की यह जिम्मेदारी भी है कि वह एनआरसी के चलते भय में जी रहे लोगों को राहत दे। अन्यथा यह विवाद एक बार फिर हिंसा का कारण बन सकता है।

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