भारत भले ही10 सबसे असुरक्षित देशों की सूची में शामिल न हो, लेकिन देश में सुरक्षित माहौल बड़ी चुनौती



ग्लोबल ट्रैवल एंड टूरिज्म ने हाल ही में असुरक्षित देशों की रैंकिंग जारी की है। असुरक्षित देशों की इस सूची में भारत का 13वां स्थान है। हालांकि, भारत असुरक्षित देशों की टॉप-10 सूची में तो शामिल नहीं है, लेकिन 13वां स्थान भी कम डराने वाला नहीं है। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि देश में किस तेजी से अपराध बढ़ रहे हैं और यहां कोई भी सुरक्षित नहीं है। यदि हम बात बच्चों की ही करें, तो पिछले कुछ वर्षो से बच्चों के प्रति अपराधों में बड़ी तेजी से वृद्धि हुई है। बच्चों का अपहरण करने के साथ ही साथ उनके साथ जघन्य अपराध भी किए जा रहे हैं। यूं बच्चों को भगवान की सबसे बड़ी और सबसे प्यारी नेमत माना जाता है। इन मासूम बच्चों को देख हर कोई अपनी आपसी रंजिश और द्वेष को झट से त्याग देता है। बावजूद इसके भारतीय समाज में कुछ सिरफिरे लोग ऐसे भी हैं, जो बच्चों को भी शिकार बना डालते हैं।
आजकल देशभर में इन मासूम बच्चों के लगातार गायब होने के बढ़ते मामले भारतीय समाज पर बड़ा सवालिया निशान लगा रहे हैं। आखिरकार देशभर में हर साल इतनी बड़ी संख्या में बच्चे कैसे गायब हो रहे हैं, वह भी चार से 15 वर्ष की उम्र के मासूम, जो अभी तक समाज और दुनिया से अपरिचित हैं? क्या किसी ने यह जानने की कोशिश की है कि इन बच्चों के गायब होने के पीछे कौन है? आखिर कौन इन्हें अंधकार में धकेल रहा है। शहरों की सड़कों पर, चौराहों पर व रेड लाइट पर आपको पांच से दस साल के बच्चे भीख मांगते हुए दिख जाएंगे। इनके पीछे कौन सा खूंखार माफिया है? क्या किसी ने यह जानने का प्रयास किया कि जिस संतान को पाने के लिए लोग मंदिरों, चर्चो, गुरुद्वारों और दरगाहों पर जाकर माथा टेकते हैं, उनके लाड़लों को जब कोई उठा ले जाता है तो उन्हें कितना दर्द होता होगा? पिछले कुछ समय से लगातार बच्चों को अगवा किए जाने की ऐसी ही घटनाओं ने दिल दहला दिया है।
मध्यप्रदेश के भोपाल शहर में पिछले साल जनवरी से 27 सितंबर तक 548 बच्चे मिले। इनमें से 292 बच्चों को तो मिलने के थोड़े समय बाद ही उनके परिजनों को सौंप दिया गया। बाद में 100 बच्चों को बाल कल्याण समिति ने परिजनों को सौंपा। बचे 156 बच्चों के परिजनों को चाइल्ड लाइन अब भी ढूंढ रही है। ये सभी बच्चे चार से 14 साल के हैं। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने भी बालगृहों में रह रहे बच्चों की फोटो लगी लिस्ट मांगी है, जिससे वह दूसरे राज्यों के गुमशुदा बच्चों की फोटो से मिलान कर सके और उन एजेंटों पर भी सख्त कार्रवाई कर सके, जो बच्चों को भीख मांगने के काम में लगाते हैं। आपको यह सुनकर हैरानी होगी कि गायब होने वालों बच्चों में 70 फीसदी लड़कियां होती हैं, जिन्हें दलालों द्वारा सेक्स रैकेट में धकेल दिया जाता है। इनमें उत्तरप्रदेश, छत्तीसगढ़ झारखंड, चंडीगढ़, बिहार, नार्थ ईस्ट, पश्चिम बंगाल और उड़ीसा से लाई गई लड़कियों की संख्या अधिक होती है।
कहा जाता है कि पहले इन बच्चों को ऊंट दौड़ में इस्तेमाल करने के लिए खाड़ी के देशों में भेजा जाता था, इसीलिए उन्हें अगवा किया जाता था। पर आजादी के इतने वर्षो बाद भी हमारे कानून अपने आपको इतना व्यवस्थित और विश्वसनीय नहीं बना पाए हैं और न ही हमारी सरकारों का ध्यान इस तरफ जा पाया कि बच्चों की खरीद-फरोख्त और उन्हें गलत कामों में लगाने पर रोक लगाई जा सके। नेशनल सेंटर फॉर मिसिंग चिल्ड्रन की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में प्रतिवर्ष करीब 10 लाख बच्चे अपने घरों से बिछड़ जाते हैं। यानी हर 30 सेकंड में एक बच्चा गायब होता है। अकेले दिल्ली में ही प्रतिवर्ष करीब 844 बच्चे गायब हो जाते हैं। इन गायब बच्चों में से करीब 20 प्रतिशत बच्चे माता-पिता की डांट और पिटाई के कारण घर छोड़ देते हैं व 10 प्रतिशत बच्चे हीरो बनने की लालसा में मुंबई भाग जाते हैं। वहीं कुछ बच्चों को अगवा कर लिया जाता है।
सवाल उठता है कि इतने बच्चे जाते कहां हैं? इन्हें चुराने वाले इन्हें दूसरों के हाथ कुछ हजार रुपयों में बेच देते हैं और खरीदने वाला इन्हें चाय की दुकानों, होटलों में बर्तन साफ करने के काम में लगाकर इनके जरिए कमाई करता है। जो बच्चे कहीं सेट नहीं हो पाते, उनका चेहरा-मोहरा बनाकर व हाथ-पैर तोड़कर उन्हें भीख मांगने के धंधे में उतार दिया जाता है। हद तो यह है कि इनमें महिलाएं भी शामिल हैं, जो खुद बच्चों वाली हैं, पर वे दूसरों के बच्चों का दर्द नहीं समझतीं। ऐसे में सरकार, समाज व बच्चों के हित में काम करने वाली संस्थाओं को आगे आना होगा। वरना, असुरक्षित देशों की सूची में अभी हम जो 13वें स्थान पर हैं, यदि भविष्य में उसमें और वृद्धि हो जाए, तो आश्चर्य नहीं। देश में सुरक्षा का माहौल बनाने के प्रयास होने ही चाहिए।
आम तौर पर माना जाता है कि बच्चों के अपहरण फिरौती के लिए किए जाते हैं। कुछ मामलों में पारिवारिक रंजिश या बदले की भावना भी होती है। कुछ मामले हवस बुझाने के भी होते हैं। ये सभी मामले बहुत त्रसद हैं, पर इनसे अलग वे मामले भी हैं, जहां बच्चों को गलत कामों के लिए अगवा किया जाता है। अगर केवल मीडिया में आए मामलों पर विचार करें, तो भारत और इसके पड़ोसी देशों में बच्चों के कम से कम तीन तरह के दुरुपयोग के मामले सामने आए हैं। पहली में वे मामले हैं, जहां बच्चों से कई तरह की बंधक मजदूरी करवाई जाती है या भीख मंगवाई जाती है। दूसरी सेक्स इंडस्ट्री के लिए अपहरण होते हैं। तीसरी में अंग व्यापार के लिए होने वाले अपहरण आते हैं। इन तीनों ही मामलों में बड़े और ताकतवर गिरोह सक्रिय हैं, जिससे अपहरण खुद एक कारोबार बन गया है।
नेशनल ह्यूमन राइट्स कमीशन की 2004 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, हर साल 45 हजार बच्चे गायब होते हैं। अलबत्ता दूसरे सूत्रों का कहना है कि असली तादाद इससे कई गुना ज्यादा होगी, क्योंकि ज्यादातर मामले पुलिस में दर्ज ही नहीं होते। पुलिस इन मामलों को संजीदगी से नहीं लेती, इसलिए बच्चों को खोजा नहीं जाता, जैसा कि नोएडा के केस में भी हुआ। गुमशुदगी की सबसे ज्यादा घटनाएं झारखंड, छत्तीसगढ़, बिहार, आंध्र प्रदेश और उड़ीसा में होती हैं और आम तौर पर गरीब परिवार इसके शिकार होते हैं। इस कारोबार में लगे गिरोहों के बारे में कोई बहुत प्रामाणिक अध्ययन नहीं है। छिटपुट रिपोर्टो के आधार पर ही इनकी गतिविधियों के बारे में कुछ जानकारी मिलती है। ये रिपोर्टे मुख्य रूप से उन बच्चों, किशोरों और युवाओं के बयानों पर आधारित हैं, जो किसी तरह इन गिरोहों के चंगुल से बचकर भाग सके। कुछ बयान उन निष्ठावान पुलिस कर्मियों व जागरूक नागरिकों के भी हैं, जिन्होंने बच्चों की मदद की। लेकिन दूसरी ओर ऐसे भी मामले हैं, जिनमें पुलिस की भूमिका संदिग्ध रही।
1960 के दशक में अपहरण करने वाले गिरोहों के अपराधों में राष्ट्रीय स्तर पर काफी बढ़ोतरी देखी गई थी। तब कानून में बदलाव हुए थे और राज्य सरकारों को चौकस रहने को कहा गया। सामाजिक सुरक्षा पर गठित वर्किग ग्रुप ने बच्चों से भीख मंगवाने वाले गिरोहों के फैलाव का जिक्र किया था और प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इस पर संसद में चिंता प्रकट की थी, लेकिन बाद में इस मुद्दे की काफी अनदेखी हुई है। इस मुद्दे पर संतुलन बरतना बहुत जरूरी है। हमारे देश में ऐसे बच्चों और किशोरों की तादाद लाखों में है, उन्हें बचाना होगा।

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