अरविंद केजरीवाल की राजनीतिक शैली को पूरे देश का समर्थन मिला, उम्मीद है कि वे यह समझेंगे



दिल्ली में आम आदमी पार्टी के विधायकों और मुख्य सचिव के बीच हुई मारपीट का मुद्दा अब राष्ट्रीय बहस का विषय बन चुका है। कौन सच बोल रहा है और कौन झूठ, यह पता लगाना कठिन है, मगर यह घटनाक्रम बेहद आसानी से अरविंद केजरीवाल पर सवाल उठा सकता है। अरविंद केजरीवाल की राजनीतिक शैली को पूरे देश का समर्थन मिला है। उसे वे इस तरह बेजा तरीके से खत्म नहीं कर सकते। उम्मीद है कि वे यह समझेंगे।
राजधानी दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार फिर देशव्यापी चर्चा में है। वस्तुत: यह आजाद भारत के इतिहास में पहली बार है जब किसी प्रदेश के मुख्य सचिव ने अपने ही मुख्यमंत्री के सामने उसके आवास पर सत्तारूढ़ पार्टी के विधायकों द्वारा पिटाई करने का आरोप लगाया है। दिल्ली के मुख्य सचिव अंशु प्रकाश ने पुलिस में दर्ज प्राथमिकी में आरोप लगाया है कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के सामने उनके विधायकों ने उन पर हमला किया। अगर मेडिकल रिपोर्ट को देखें तो उनके शरीर पर चोट के निशान पाए गए हैं। उनके चेहरे पर कट का निशान और कंधे पर चोट के साथ उनके चेहरे और आसपास की जगहों पर सूजन होने की पुष्टि हुई है।
सच क्या है यह तो वहां उपस्थित लोग ही बता सकते हैं, पर मुख्यमंत्री आवास पर देर रात हुई बैठक में कुछ तो हुआ है और जो भी हुआ उसकी उम्मीद किसी मंत्री और विधायक से नहीं की जा सकती है। अगर कुछ हुआ नहीं होता तो मुख्य सचिव इस तरह की प्राथमिकी दर्ज नहीं कराते। अब आम आदमी पार्टी का आरोप है कि मुख्य सचिव झूठ बोल रहे हैं तथा केंद्र सरकार के इशारे पर दिल्ली पुलिस उनके विधायकों के खिलाफ कठोर कार्रवाई कर रही है। वस्तुत: दिल्ली पुलिस ने प्राथमिकी पर कार्रवाई करते हुए आम आदमी पार्टी के दो विधायकों अमानतुल्ला खान और प्रकाश जरवाल को गिरफ्तार कर लिया है, बाकी से पूछताछ की तैयारी है। इस समय दिल्ली में एक ओर भाजपा केजरीवाल व आम आदमी पार्टी के खिलाफ प्रदर्शन कर रही है,
तो आम आदमी पार्टी के विधायक और नेता केंद्र सरकार विशेषकर गृहमंत्री राजनाथ सिंह के खिलाफ। दिल्ली पुलिस केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन ही कार्य करती है। तीसरी ओर कांग्रेस है, जिसके तेवर भाजपा जैसे तीखे भले न हों, लेकिन वह भी केजरीवाल व उनकी सरकार की आलोचना कर रही है। इन सबसे अलग चूंकि मामला एक आईएएस अधिकारी के साथ मारपीट का है इसलिए उनके संगठन भी सामने आ गए हैं। हालांकि, अधिकारियों ने आरंभ में जिस तरह राजघाट से मोमबत्ती जुलूस निकाला तथा काम न करने की घोषणा की थी उससे लगा था कि राजधानी की समस्याएं बढ़ने वाली हैं, लेकिन बाद में इन्होंने हड़ताल पर न जाने का फैसला किया।
उन्होंने इतना अवश्य कहा है कि जब तक मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल घटना को लेकर माफी नहीं मांगेंगे तब तक वे केजरीवाल और उनके मंत्रिमंडलीय सहयोगियों द्वारा बुलाई जाने वाली बैठकों का बहिष्कार करेंगे। अब अधिकारियों के तीन संघों आईएएस (इंडियन एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विस), डीएएनआईसीएस (दिल्ली-अंडमान एंड निकोबार आईलैंड्स सिविल सर्विस) तथा डीएसएसएस (दिल्ली सबऑर्डिनेट सर्विसेज सलेक्शन बोर्ड) ने प्रस्ताव पारित किया जिसमें कहा गया है कि वे आम आदमी पार्टी के मंत्रियों के साथ लिखित में संवाद बनाए रखेंगे, ताकि लोक सेवा आपूर्ति में कोई व्यवधान न हो।
संभागीय आयुक्त व आईएएस ऑफिसर्स एसोसिएशन की महासचिव मनीषा सक्सेना ने कहा तीनों एसोसिएशनों ने मुख्यमंत्री के आवास में मुख्य सचिव पर विधायकों के हमले के विरोध में दिल्ली के सभी मंत्रियों की बैठकों का बहिष्कार करने का फैसला किया है। गृहमंत्री ने दिल्ली के उपराज्यपाल से रिपोर्ट मांगी और रिपोर्ट दे भी दी गई। यह घटना क्या मोड़ लेगी कहना कठिन है। किंतु विचार करने वाली बात है कि आखिर ऐसा क्यों हुआ? हम आम आदमी पार्टी के इस आरोप को स्वीकार कर लें कि दिल्ली पुलिस उनके खिलाफ है तो भी यह सवाल पैदा होता है कि आखिर इसकी नौबत आती ही क्यों है? यह बात सच है कि जितनी तेजी से पुलिस ने इस मामले में कार्रवाई की उतनी ही तेजी से उसने दिल्ली के पर्यावरण मंत्री इमरान हुसैन की शिकायत पर कार्रवाई नहीं की।
दिल्ली सचिवालय में उनके प्रवेश करते समय सचिवालय के अधिकारियों-कर्मचारियों को उनके साथ असभ्य व्यवहार करते देखा जा सकता है। लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि हम आम आदमी पार्टी के नेताओं, मंत्रियों और विधायकों को निदरेष मान लें। आखिर यह कैसी सरकार है और कैसी पार्टी है जो सबके साथ बैरभाव ही मोल ले लेती है? प्रदेश के अधिकारियों-कर्मचारियों के साथ इनका तनाव बना हुआ है, उप राज्यपाल से इनकी बनती नहीं और केंद्र सरकार को ये अपने खिलाफ घोषित करते ही रहते हैं। देश में और भी राज्य और केंद्र शासित प्रदेश हैं। उनमें कई भाजपा विरोधी हैं, लेकिन उनके यहां तो ऐसी घटनाएं नहीं होतीं। ग्यारह बजे रात को मुख्य सचिव को मुख्यमंत्री आवास पर किसी आपात स्थिति में ही बुलाया जाना चाहिए।
यदि किसी समस्या पर बातचीत करनी हो तो वह कार्यालय अवधि में हो सकती है। दोनों तरफ से दो प्रकार की बातें हो रही हैं। मुख्य सचिव ने अपनी शिकायत में कहा है कि मुख्यमंत्री के सलाहकार वीके जैन ने फोन कर रात 11 बजे बैठक के लिए बुलाया। बताया गया कि मुख्यमंत्री प्रचार के मामले में आ रही परेशानियों पर चर्चा करना चाहते हैं। मैं पहुंचा तो मुख्यमंत्री ने मुझे निर्देश दिया कि मैं टेलीविजन विज्ञापन जारी होने में देरी का कारण विधायकों से स्पष्ट करूं। मैंने समझाया कि अधिकारी उच्चतम न्यायालय के दिशानिर्देश से बंधे हुए हैं। इस पर विधायक चिल्लाने लगे। तभी एक विधायक ने हमला कर दिया। विधायकों ने कहा कि प्रचार मुहिम को मंजूरी दो अन्यथा जाने नहीं देंगे।
दूसरी ओर आप के प्रवक्ताओं का कहना है कि राशन के मुद्दे पर विधायक मुख्य सचिव से जवाब चाह रहे थे। दिल्ली में आधार कार्ड और अन्य कई कारणों से लोगों को राशन मिलने में दिक्कत हो रही है। आप का कहना है कि इस बाबत पूछने पर मुख्य सचिव ने कहा कि उनकी जवाबदेही विधायकों के प्रति नहीं बल्कि उपराज्यपाल के प्रति है। इसके बाद ही बैठक में मौजूद विधायकों ने नाराजगी जताई। उनके साथ मारपीट का आरोप गलत है। नौकरशाहों का काम करने का जो तरीका है उसमें समस्याएं आती हैं, पर राजनीतिक नेतृव का बुद्धि कौशल इसी में है कि आप उनसे अपने अनुसार काम करा लें। आम आदमी पार्टी के मंत्री, विधायक व नेता जिस तेवर में रहते हैं उसमें उनका टकराव लगातार होता रहता है।
यह निश्चित मानिए कि इन लोगों ने अंशु प्रकाश के साथ गलत तरीके से बात की होगी और जवाब में उन्होंने ऐसा कहा होगा कि हम आपके मातहत नहीं उप राज्यपाल के अधीन काम करते हैं। इसके बाद बात बिगड़ गई होगी। हो सकता है अंशु प्रकाश गुस्से में जितना हुआ, उससे ज्यादा बता रहे हों, पर जो भी हुआ अरविंद केजरीवाल एवं मनीष सिसोदिया को बीच में पड़कर मामला शांत करना चाहिए था जो उन्होंने नहीं किया। यह वही केजरीवाल हैं जिन्हें एक ऑटो चालक ने थप्पड़ मार दिया था तो वे मनीष सिसोदिया के साथ उसके घर चले गए थे और उसे माफ कर दिया था। ऐसी और कई घटनाएं हैं जब उन्हें थप्पड़ मारने वालों या कालिख पोतने वालों या चेहरे पर स्याही फेंकने वालों को उन्होंने क्षमादान दिया था। तब केजरीवाल अहिंसा के पुजारी थे।
किंतु आज वही केजरीवाल हैं जिनके विधायक और नेता उनके सामने हिंसा करते हैं और वे चुपचाप देखते हैं। चुपचाप देखने का अर्थ होता है उस कृत्य का समर्थन। केजरीवाल की राजनीति करने की शैली को पूरे देश का समर्थन मिला है। केजरीवाल में लोगों ने नेता के जिस रूप को देखा है, उसे वे इस तरह बेजा तरीके से खत्म नहीं कर सकते।

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