पिता के कर्मो का फल भोग रहे कार्ति, संभव है कि भविष्य में वे भी जांच एजेंसियों के शिकंजे में हों



पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम और उनके बेटे कार्ति चिदबंरम की गिरफ्तारी ने सियासी गलियारों में भूचाल ला दिया है। वैसे, जिस मामले में कार्ति पकड़े गए हैं, उसमें खुद को पाक-साफ साबित करना काफी टेढ़ी खीर साबित होगा। चिदंबरम के लिए मुसीबत यह है कि उनके बेटे पर जिस वक्त आरोप लगे, उस वक्त वे केंद्र में मंत्री थे। कार्ति पर लगे आरोपों में पी चिदंबरम का कितना रोल है, अभी इसकी पड़ताल हो रही है। संभव है कि भविष्य में वे भी जांच एजेंसियों के शिकंजे में हों।
कहते हैं कि कर्मो का फल भुगतना ही पड़ता है। पूर्व केंद्रीय मंत्री पी. चिदंबरम और उनके बेटे कार्ति चिदबंरम के मामले में यह बात एक बार फिर सच साबित हुई है। बुधवार को उनके बेटे कार्ति को सीबीआई ने आईएनएक्स मीडिया केस से जुड़े मामले में गिरफ्तार कर लिया। इस बात की पूरी संभावना है कि कांग्रेसी नेता चिदंबरम अपने बेटे की करनी का फल भोग रहे हैं और मामला सिर्फ मौजूदा आईएनएक्स केस तक ही सीमित नहीं है। इसके अलावा भी कई ऐसे मामले हैं जो दोनों को मुश्किलों में डाल सकते हैं। जिस मामले में कार्ति की गिरफ्तारी हुई वह आईएनएक्स मीडिया कंपनी से जुड़ा हुआ है। आरोप है कि चिदंबरम जिस वक्त यूपीए सरकार में वित्त मंत्री थे उस वक्त कार्ति ने आईएनएक्स मीडिया को कई रियायतें दिलवाईं। आरोप है कि आईएनएक्स मीडिया को क्लियरेंस दिलाने के बदले कार्ति ने दलाली खाई।
हालांकि, यह पहला मामला नहीं है, जब जांच एजेंसियों ने चिदंबरम या परिवार के खिलाफ कार्रवाई की है। मीडिया में आई रिपोर्ट के मुताबिक पिछले साल अप्रैल में ही प्रवर्तन निदेशालय ने कार्ति और एक कंपनी को नोटिस जारी किया था। उन पर विदेशी मुद्रा अधिनियम के खिलाफ जाकर 45 करोड़ रुपए की धांधली का आरोप था। इस मामले की लगभग तीन सालों से जांच चल रही थी, जिसमें चेन्नई की एक कंपनी वासन हेल्थकेयर पर विदेशी मुद्रा अधिनियम के तहत 2262 करोड़ की हेराफेरी का आरोप है। चिदंबरम और बेटे पर सिर्फ आईएनएक्स मीडिया का मामला नहीं है। कार्ति के खिलाफ एयरसेल-मैक्सिस के बीच समझौते में भी अपनी कंपनियों के जरिए काफी फायदा कमाने का आरोप है। कार्ति की कंपनी का नाम एडवांटेज स्ट्रैटेजिक कंसल्टिंग प्राइवेट लिमिटेड है।
जब यह जांच आगे बढ़ेगी तो एयरसेल-मैक्सिस और विदेशी मुद्रा अधिनियम के उल्लंघन के मामले चिदंबरम के लिए बड़ा झटका साबित हो सकते हैं। चिदंबरम के लिए मुसीबत यह है कि उनके बेटे पर जिस वक्त आरोप लगे, उस वक्त वे केंद्र में मंत्री थे। कार्ति पर लगे आरोपों में पी. चिदंबरम का कितना रोल है, अभी इसकी पड़ताल हो रही है। 2016-जुलाई में जब प्रवर्तन निदेशालय ने कार्ति चिदंबरम को पूछताछ के लिए तलब किया था, तो कहा गया था कि चिदंबरम और उनके बेटे की मुश्किलें आने वाले वक्त में और बढ़ सकती हैं। चिदंबरम और उनके बेटे के लिए बड़ी चुनौती एयरसेल-मैक्सिस डील है। यह पूरा मामला साल 2006 का है, जब एयरसेल कंपनी को उसके मालिक सी शिवशंकरन ने मैक्सिस को औने-पौने दाम पर बेच दिया। कहा जाता है कि शिवशंकरन ने ऐसा पूर्व केंद्रीय संचार मंत्री दयानिधि मारन के दबाव में किया था।
इसके बदले में मैक्सिस ने दयानिधि मारन के भाई कलानिधि मारन की कंपनी सन ग्रुप में 47 करोड़ का निवेश किया। कार्ति पर आरोप यह लगा है कि उन्होंने अपनी कंपनी एडवांस कंसल्टिंग के जरिए सौदा कराया था। इस दौरान रिश्वत का भी लेन-देन हुआ। इस मामले में कार्ति के पास खुद के बचाव के लिए कुछ ठोस तर्क हैं, ऐसा लगता नहीं है। न्यू इंडियन एक्सप्रेस ने खास सीरीज के जरिए इस राज पर से पर्दा उठाया था। अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक, कार्ति को यह बात साबित करनी होगी कि दुनिया भर में फैले उनके कारोबार को उन्होंने वाजिब जरिए से जमाया। कार्ति को अपनी कमाई और मुनाफे का ठोस जरिया और सबूत देना होगा। इसके साथ ही उन्हें तमाम बेनामी संपत्तियों में अपनी हिस्सेदारी को भी जायज साबित करना होगा।
फिर जब पुराने मामले सामने आने शुरू होंगे तो बात फिर एयरसेल-मैक्सिस केस तक सीमित नहीं रहेगी। जांच के जरिए चिदंबरम परिवार की बेपनाह बेनामी संपत्ति के बारे में पता लगाया जा रहा है। इस बारे में चिदंबरम और उनके बेटे को ठोस सफाई तैयार करके रखनी होगी। कार्ति ने होल्डिंग कंपनी ऑसब्रिज के जरिए एडवांटेज कंपनी में मालिकाना हक हासिल किया था, लेकिन खुद एडवांटेज कंपनी का मालिकाना हक बेनामी दिखाया गया था। इस बेनामी मालिक ने बाद में वसीयत के जरिए कंपनी को कार्ति की बेटी के नाम कर दिया। जब इनकम टैक्स विभाग और प्रवर्तन निदेशालय ने कार्ति के घर की तलाशी ली थी, तो ये वसीयत कार्ति के पास ही मिली थी। कार्ति का कारोबारी साम्राज्य कई देशों में फैला है। जैसे एडवांटेज की सिंगापुर इकाई एडवांटेज सिंगापुर ने पंद्रह देशों में रियल एस्टेट में निवेश कर रखा है।
हालांकि, प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्डरिंग एक्ट के तहत प्रवर्तन निदेशालय इन सब निवेशों की जांच भी कर सकता है। इसमें वह दूसरे देशों की जांच एजेंसियों की भी मदद ले सकता है। हालांकि, जब भी कार्ति और उनके दोस्तों के खिलाफ जांच होती है तो पी चिदंबरम इसे मौजूदा भाजपा सरकार की बदले की राजनीति करार देते हैं। पूर्व वित्त मंत्री चिदंबरम ने कहा था कि अगर सरकार मुझे निशाना बनाना चाहती है तो उसे सीधे मेरे ऊपर वार करना चाहिए, न कि मेरे बेटे और उसके दोस्तों को परेशान करना चाहिए। वे लोग तो अपना कारोबार करते हैं, उनका राजनीति से कोई वास्ता नहीं, लेकिन मामले का राजनीतिकरण करने का पी. चिदंबरम का दांव शायद ही चले क्योंकि उनकी पार्टी भी इस मामले की गंभीरता को देखते हुए उनका बचाव करने से परहेज करेगी। हालांकि, अभी तो वह चिदंबरम के साथ खड़ी रहने की बात कह रही है।
उधर, मोदी सरकार पर भी दबाव है कि वह भ्रष्टाचार, खास तौर से नामचीन लोगों पर लगे आरोपों की जांच में कोई कोताही न करे। अपने तीन साल के राज में मोदी सरकार ने भ्रष्टाचारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई के लिए शोहरत कमाई है। सरकार इस मामले में भी अपनी इस छवि को नुकसान नहीं पहुंचने देना चाहेगी। सरकार ने चिदंबरम और उनके बेटे के खिलाफ पहले ही जांच एजेंसियों को खुली छूट दे रखी है। इसमें एयरसेल-मैक्सिस की डील हो या दूसरे मामले। एक बार कार्ति ने मजाक में कहा था कि उनका एयरसेल-मैक्सिस मामले से सिर्फ इतना ताल्लुक है कि उनके पास एयरसेल का सिम कार्ड है। हालांकि, उनके इस मजाक को किसी ने गंभीरता से लिया हो, ऐसा लगता नहीं। दूसरे मामलों में भी चिदंबरम और उनके बेटे की मिलीभगत के आरोप को लोग हल्के में नहीं लेते।
चिदंबरम नेता भी हैं और वकील भी। उन्हें अपने बेटे की करनी से पीछा छुड़ाने और अपना सियासी कद बचाने के लिए काफी दांव-पेंच चलने होंगे। कार्ति चिदंबरम की गिरफ्तारी को लेकर सियासत तेज हो गई है। कार्ति की गिरफ्तारी का सीधा असर दिल्ली की सियासत में दिख रहा है। ऐसा होना लाजिमी भी है, क्योंकि इस मुद्दे को भाजपा की तरफ से पिछली सरकार के कार्यकाल के दौरान भ्रष्टाचार में शामिल होने के पक्के सबूत के तौर पर फिर से रखा जाएगा। अब देखना यह है कि यह मामला आने वाले दिनों में क्या राजनीतिक रंग दिखाता है। वैसे, जब बजट सत्र शुरू होगा, तब यह मामला नीरव मोदी के मामले के साथ खूब गुंजायमान होगा। केंद्र सरकार इन मामलों का सामना कैसे करेगी, यह देखना भी बेहद दिलचस्प होगा।

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