संसद में हंगामे की प्रवृत्ति छोड़ें नेता


राजएक्सप्रेस, भोपाल। संसद में जारी हंगामे (Disorder in Parliament) के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विपक्षी दलों के सांसदों को खूब खरी-खोटी सुनाई। सही भी है लोकतंत्र का मंदिर कही जाने वाली संसद में अब काम की जगह हंगामा हावी हो गया है। यह प्रवृत्ति देश के लिए बेहद घातक बनती जा रही है
संसद में जारी गतिरोध के बीच प्रधानमंत्री मोदी ने विपक्षी सांसदों को जमकर खरी-खोटी सुनाई। राज्यसभा के सांसदों के विदाई भाषण में उन्होंने कहा कि बहुत लोग होंगे जिनकी आखिरी सत्र में इच्छा रही होगी कि वे ऐतिहासिक निर्णयों में शामिल होकर विदाई लें, लेकिन यह सौभाग्य उन्हें नहीं मिला। सालों बाद यह कमी विदा हो रहे सांसदों को सालती रहेगी। मोदी ने जो कहा, उसमें कुछ गलत भी नहीं है। लोकतंत्र का मंदिर कही जाने वाली संसद में आज जो कुछ भी देखने को मिल रहा है वह दुखद और अप्रत्याशित है।
संसद के दोनों ही सदनों लोकसभा और राज्यसभा में आए दिन हंगामा और गतिरोध के चलते कार्यवाही को स्थगित करना पड़ता है। यदि ऐसा एकाध बार हो तो भी ठीक है, लेकिन देखने में यही आता है एक दिन में कई-कई बार ऐसा होता है, जो पहले शायद ही होता था। इसके लिए कौन दोषी अथवा जिम्मेदार है, यह महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि जो बात महत्वपूर्ण है वह यह कि संसद में कामकाज नहीं हो रहा है और आम लोगों के लिए कानून बनाने की सांसदों की जो जिम्मेदारी है उसे नहीं निभाया जा रहा है।
संसद के पिछले दो सत्र राजनीतिक गतिरोध के चलते लगभग ठप ही रहे और कोई खास कामकाज नहीं हो सका। इस क्रम में हमें समझना होगा कि राजनीतिक दोषारोपण और वाद-विवाद एक बात है, लेकिन इसके लिए संसद को बंधक बना देना या कहें निरंतर गतिरोध की स्थिति एक ऐसी समस्या है जिसका समाधान यदि समय रहते नहीं किया जाता है तो यह लोकतांत्रिक व्यवस्था को पंगु बना सकता है। वास्तव में आज यह हमारे लोकतंत्र के लिए एक बड़ा खतरा है। आखिर इसी संसद ने पिछले साल बजट सत्र में कामकाम का शानदार रिकॉर्ड बनाया था।
उस रिकॉर्ड को दोहराने या बेहतर बनाने का संकल्प क्यों नहीं लिया गया? वर्ष 2017 के बजट सत्र में इसी संसद के निचले सदन यानी लोकसभा ने तो कामकाज के मामले में नया रिकॉर्ड कायम किया था। पिछले साल बजट सत्र के दोनों चरणों में हुईं लोकसभा की कुल 29 बैठकों में तय वक्त से भी 19 घंटे ज्यादा समय काम हुआ। फिर आश्चर्य कैसा कि कामकाज भी 113 प्रतिशत ज्यादा हुआ। पिछले बजट सत्र में न सिर्फ बजट पर बाकायदा बहस हुई, बल्कि जीएसटी सरीखा विवादास्पद, मगर महत्वपूर्ण विधेयक भी चर्चा के बाद पारित किया गया।
वहीं इस बार बजट बिना चर्चा के पारित कर दिया गया। संसद में चल रहे हंगामे की वजह से प्रति मिनिट ढाई लाख रुपए का नुकसान हो रहा है। इस तरह से अब तक हंगामे की वजह से जनता का करोड़ों रुपया बर्बाद हो चुका है। दूसरी तरफ राज्यसभा में कम से कम 10 बिल ऐसे लंबित हैं, जिन्हें लोकसभा पारित कर चुका है। अगर राज्यसभा उन्हें मंजूरी दे दे तो ये बिल प्रभावी हो जाएंगे और इनका सीधे जनता को फायदा मिलेगा। संसद की जिस तरह की स्थिति है, उसमें ‘नो वर्क-नो पे’का सिद्धांत प्रासंगिक दिखता है।

Comments

Popular posts from this blog

झंडे की क्षेत्रीय अस्मिता और अखंडता

देश में जलाशयों की स्थिति चिंतनीय, सरकार पानी की बर्बादी रोकने की दिशा में कानून बना रही है

नेपाल PM शेर बहादुर देउबा का भारत आना रिश्तों में नए दौर की शुरुआत