झंडे की क्षेत्रीय अस्मिता और अखंडता


पिछले कई दिनों से केंद्र सरकार व कर्नाटक सरकार के बीच झंडे को लेकर बहस छिड़ी है। कन्नड़ अस्मिता के नाम पर कर्नाटक ने फिर से नए झंडे को मान्यता दी है और केंद्र सरकार से अनुमति देने की मांग की है। अब जब कर्नाटक सरकार ने अपना अलग झंडा लाने की मनमानी कर ली है तो देश के सामने एक अहम सवाल यह खड़ा हो गया कि क्या राज्यों का अलग झंडा होना चाहिए..या नहीं। उम्मीद है कि हम शांतिपूर्वक निकलेगा।
लोककल्याणकारी राज्य की स्थापना के लिए विख्यात यूनाइटेड किंगडम के इंग्लैंड, वेल्स, उत्तरी आयरलैंड या फिर स्कॉटलैंड में आप चले जाइए, वहां क्षेत्रीय संप्रभुता और अलग झंडे की पहचान के साथ उन्हें अपनी संवैधानिक राजशाही और एकात्मता पर गर्व है। दुनिया की अग्रणी महाशक्तियों में शुमार यह देश एक विकसित राष्ट्र के रूप में स्थापित है। लोकतंत्र सुचलित है अर्थात् लोकतांत्रिक प्रतिनिधि शासन का संचालन करते हैं, पिछड़े देशों की तरह वहां सत्ता पर छा जाने का प्रयास नहीं होता है। सत्ता के संचालन के ऐसे कुछ नीतिगत अंतर विकासशील और पिछड़े देशों को विकसित राष्ट्रों से अलग करते हैं। इसी कारण आर्थिक और सामाजिक आधार पर पिछड़े देश गृहयुद्ध और क्षेत्रीयता से जूझ रहे हैं, जबकि विकसित देश उदार होकर शक्तियों को विकेंद्रीकृत करके उनका हस्तांतरण भी कर रहे हैं और उनकी संप्रभुता सुरक्षित भी है। यूनाइटेड किंगडम की रीतियां और नीतियां अपनाने वाला भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र अवश्य है,
लेकिन इस देश में लोकतांत्रिक प्रक्रिया से चुने जाने वाले प्रतिनिधि सत्ता के प्रतिनिधि न होकर स्वयंभू की तरह व्यवहार करते हैं। राज्य और केंद्रीय सत्ता में रहने वाले अधिकांश राजनेता विचारधारा को एजेंडे के रूप में लागू करने को प्रतिबद्ध नजर आते हैं और यहीं इस देश का सबसे बड़ा संकट है। हाल ही में कर्नाटक राज्य ने अपनी क्षेत्रीय पहचान के प्रतीक स्वरूप अलग झंडे का प्रस्ताव रखा है। क्षेत्रीयतावाद, जातीयता व भाषाई आधार पर बंटे इस देश में अलग झंडे की मांग पर बवाल होना लाजिमी था और इसे लेकर राजनीतिक घमासान भी मच गया है। संविधान में हमारे राष्ट्रीय ध्वज के सम्मान और गरिमा को सुनिश्चित रखने की बात तो की गई है, लेकिन क्षेत्रीय ध्वज को लेकर कोई वर्णन नहीं किया गया है। कर्नाटक के मुख्यमंत्री ने कहा कि संविधान में यह नहीं कहा गया है कि राज्य का अपना झंडा नहीं हो सकता, इसलिए हमें विश्वास है कि केंद्र इसे मंजूरी दे देगा।
यहां यह भी साफ है कि भारत में राज्यों को अलग गान की तरह अपने अलग ध्वज रखने पर कोई वैधानिक रोक नहीं है और संविधान में इस बारे में कुछ भी स्पष्ट नहीं कहा गया है। दरअसल, आने वाले समय में कर्नाटक में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। झंडे को कन्नड़ अस्मिता से जोड़ दिया गया है और इस पर राज्य की कांग्रेस सरकार अपने को फ्रंट पर खड़ा करने को आमादा है। वहीं एक राष्ट्र-एक ध्वज की बात करने वाली केंद्र सरकार में सत्तारूढ़ भाजपा असमंजस में है। इस समूचे मामलें में क्षेत्रीय इच्छाओं और आकांक्षाओं को कन्नड़ अस्मिता और देश की सर्वोच्चता के बीच अंतर्द्वद या विरोधाभास की तरह प्रस्तुत किया जा रहा है। भारत की पूर्व सरकारें भी क्षेत्रीय विषमताओं व विभिन्नताओं पर आशंकित रही थीं, जिसके दूरगामी परिणाम आत्मघाती ही रहे हैं। स्वतंत्र भारत का संविधान बनाने वाली समिति में भी सांस्कृतिक विभिन्नता का समावेश था।
जाहिर है उस दौर में भी भारत की सांस्कृतिक विरासत को संजोए रखने पर जोर था और इसके बाद भी देश की एकता और अखंडता की श्रेष्ठता को बनाए रखने को प्राथमिकता दी गई थी। इसीलिए भारत संघात्मक शासन व्यवस्था वाला देश है, जिसके अंतर्गत शक्ति एक स्थान पर केंद्रित न होकर केंद्र और राज्य सरकारों में विभाजित हो जाती है। दोनों ही अपने अपने क्षेत्रों में स्वतंत्र होते हैं। देश की एकता और अखंडता बनाए रखने के लिए संविधान कृत संकल्पित है। देश का एक ही संविधान है जो लिखित, बहुत सीमा तक कठोर और सर्वोच्च स्थिति प्राप्त है। इसके अतिरिक्त भारतीय संविधान में कुछ ऐसे तत्व हैं, जिससें इसका झुकाव एकात्मकता की और जाता है। इकहरी नागरिकता, इकहरी न्याय पालिका, अखिल भारतीय सेवाएं, राष्ट्रपति द्वारा राज्यों में राज्यपालों की नियुक्ति, संसद द्वारा राज्यों के नाम, क्षेत्र तथा सीमाओं में परिवर्तन आदि प्रावधान देश की एकता और अखंडता की स्थिति मजबूत करते हैं।
संविधान विज्ञ राष्ट्रीय ध्वज पर एकमत रहे लेकिन उन्होंने राष्ट्रीय ध्वज के अलावा कोई झंडा फहराए जाने के लिए संविधान के तहत कोई निषेध नहीं किया है। संविधान के अनुच्छेद 51 में निर्देश दिया गया है कि प्रत्येक नागरिक संविधान का पालन करेगा, राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान का सम्मान करेगा। क्षेत्रीय प्रभावों को समझने वाली हमारी संविधान समिति इस तथ्य से अनभिज्ञ नहीं रही होगी कि क्षेत्रीय ध्वज भी अस्तित्व में हो सकता है। इससे साफ हो जाता है कि किसी क्षेत्रीय ध्वज को महत्व देने का अर्थ यह नहीं है कि राष्ट्रीय ध्वज की गरिमा कम हो गई है और कर्नाटक ने भी कहा है कि उसके इस कदम का राष्ट्रीय ध्वज की महत्ता पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा। गौरतलब है कि राष्ट्र और राज्य के अलग अलग झंडे हो सकते है। अमेरिका, जर्मनी तथा आस्ट्रेलिया जैसे संघीय व्यवस्था वाले अनेक देशों में राज्यों को अलग क्षेत्रीय पहचान बनाए रखने की छूट दी गई है।
देश में अभी तक संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को ही यह विशेष दर्जा हासिल है कि उसके पास खुद का ध्वज है। इसे लेकर भी देश में असंतोष की स्थिति देखी जाती है। अगर कर्नाटक के झंडे को केंद्र से मंजूरी मिल गई तो अलग राज्य वाला कर्नाटक देश का दूसरा राज्य बन जाएगा। कर्नाटक के अलावा नागालैंड ने संविधान की 371 धारा के तहत अपने राज्य का झंडा हासिल करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। वहीं सिक्किम भी अलग झंडा चाहता है। भारत एक बहुत बड़ा देश है और इसके विभिन्न क्षेत्रों में अत्यधिक विभिन्नताओं के दर्शन होते है। भाषायी, जातीय और सांस्कृतिक रूप से अलग होने के कारण भारत में राज्य समरूप नहीं हो पाते। खानपान, जीने के तरीके, भौगोलिकपरिवेश, त्योहार, विवाह परंपराएं भारत के विभिन्न स्थानों पर रहने वाले लोगों की अस्मिता का प्रश्न रही हैं, लेकिन वह भारत की अखंडता के लिए कभी चुनौतीपूर्ण नहीं बनीं।
केंद्र को यह समझ लेना चाहिए कि एकता और अखंडता के नाम पर राजनीति और दृढ़ नीति क्षेत्रवाद की समस्याओं को बढ़ाती रही है। भारत में राज्यों के ध्वज और भाषा जैसी क्षेत्रीय आकांक्षा स्वाभाविक है, इनका सम्मान किया जाना चाहिए। भारत की सांस्कृतिक और भाषाई विभिन्नता राष्ट्र की शक्ति है। अनादि काल से ही क्षेत्रीय अस्मिता प्रभावी रही है लेकिन भारतवर्ष की पहचान पर वह कभी हावी नहीं रही। ऐसे मामलों में केंद्र द्वारा उदारता का परिचय क्षेत्रीय राजनीति और अवसरवाद को हतोत्साहित ही करेगा, लोगों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा और अंतत: इससे राष्ट्रीयता को बल मिलेगा। क्षेत्रीय अस्मिता पर राष्ट्रीय आशंकाएं निमरूल हैं, इस पर सकारात्मक कदम समय की मांग है। बहरहाल, कर्नाटक सरकार ने अलग झंडे का जो प्रस्ताव केंद्र सरकार के पास भेजा है, उस पर सरकार को बहुत सोच-विचार के बाद ही कोई फैसला देना चाहिए।
वैसे, कर्नाटक के पास अनौपचारिक तौर पर 1960 के दशक से झंडा है। 2012 में भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने इस झंडे को कानूनी मान्यता दे दी थी, लेकिन एक कानूनी लड़ाई में सरकार को अपने कदम वापस खींचने पड़े। कर्नाटक के स्थापना दिवस पर हर साल एक नवंबर को राज्य के कोने-कोने में अभी जो झंडा फहराया जाता है, वह मोटे तौर पर लाल एवं पीले रंग का कन्नड़ झंडा है। इस झंडे का डिजाइन 1960 के दशक में वीरा सेनानी एम ए रामामूर्ति ने तैयार किया था। अब कर्नाटक सरकार ने अपने राज्य के लिए अलग झंडा बनाने की कवायद शुरू कर दी है। पिछले कई दिनों से केंद्र सरकार और राज्य सरकार के बीच झंडे को लेकर बहस छिड़ी है। अब जब कर्नाटक सरकार ने अपना अलग झंडा लाने की मनमानी कर ली है तो देश के सामने एक सवाल खड़ा हो गया कि क्या राज्यों का अलग झंडा होना चाहिए..या नहीं।

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