आतंक के खिलाफ शिया-सुन्नी एकता


आतंकवाद के लिए इस्लाम को जिम्मेदार ठहराने वाली दुनिया की विचारधारा को जवाब देने के लिए शिया और सुन्नी एकता को बढ़ाने पर जोर दिया जाने लगा है। इस एकता की पहल पिछले माह देखने को मिली है। जब ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी ने हैदराबाद की ऐतिहासिक मक्का मस्जिद में नमाज-ए-जुमा अदा की है। इस मौके पर शिया-सुन्नी दोनों समुदाय के लोग मौजूद थे। जानकारों का कहना है कि अगर यह एकता कायम हो गई है। तो आतंकवाद स्वत: खत्म हो जाएगा। विश्व की राजनीति इस समय एक बेहद खतरनाक दौर से गुजर रही है। कहा जा रहा है कि दुनिया इस समय बारूद के एक बड़े ढेर पर बैठी हुई है। कुछ विश्लेषक तो तीसरे विश्व युद्ध की आहट का अंदाजा भी लगा रहे हैं। अमेरिका, उत्तर कोरिया, ईरान, सऊदी अरब, इजरायल, फिलिस्तीन, सीरिया, यमन, इराक, लेबनान, रूस जैसे कई देश वर्तमान घमासान के केंद्र में हैं।

सभी देशों के अपने अलग-अलग राजनीतिक, वैचारिक, सामाजिक व धार्मिक विचार हैं। इनमें सबसे प्रमुख ध्रुव के रूप में ईरान व सऊदी अरब को देखा जा रहा है। इन दोनों देशों के मध्य बढ़ता तनाव निश्चित रूप से वैश्विक स्तर पर शिया-सुन्नी मतभेदों को हवा देने का काम कर रहा है। यह भी जगजाहिर है कि सऊदी अरब को अमेरिका दूरगामी रणनीति के तहत गत कई दशकों से अपना संरक्षण देता आ रहा है। साथ ही साथ यह बात भी किसी से छिपी नहीं है कि ओसामा बिन लादेन से लेकर हाफिज सईद तक सऊदी अरब के वैचारिक शिक्षण संस्थानों की ही देन कर रहे हैं। दुनिया समझ सकती है कि इस्लाम के नाम पर पूरे विश्व में फैले आतंक की पुश्तपनाही करने वाले सऊदी अरब से गहरी दोस्ती निभाने वाले अमेरिका का आतंक के विरुद्ध युद्ध छेड़ने का नारा कितना सच भी हो सकता है और कितना ढोंग हैं।

दूसरी तरफ यमन व सीरिया जैसे आतंरिक युद्धग्रस्त देशों में भी ईरान व सऊदी अरब अलग-अलग धड़ों को अपनी सुविधा व राजनीतिक लाभ के मद्देनजर सहयोग दे रहे हैं। कमोबेश इन देशों का यह सहयोग अथवा विरोध भी शिया-सुन्नी पर ही आधारित है। इस समय लगभग समूचे गैर मुस्लिम जगत का कमोबेश यही प्रयास है कि पूरे इस्लाम धर्म को व मुस्लिम जगत को आतंकवादी विचारधारा की परवरिश करने वाला धर्म प्रमाणित कर दिया जाए। समय-समय पर विभिन्न दिशाओं से की जाने वाली कुरान शरीफकी आलोचनाएं तथा इस्लामी आतंकवाद, इस्लामी जेहाद एवं जेहादी आतंकवाद जैसे शब्दों का प्रचलन इसी साजिश का हिस्सा है। ऐसे में निश्चित रूप से मुस्लिम जगत के जिम्मेदार नेताओं का कर्तव्य है कि वे बिना समय गंवाए हुए आगे आएं आतंकवाद विरोधी विचारधारा को खूब प्रचारित-प्रसारित करें और इस मिशन को आगे बढ़ाने के लिए इस्लाम से संबंधित उन सभी विचारधाराओं का एकजुट होना जरूरी है

जो कुरान शरीफ तथा पैगंबर हजरत मोहम्मद द्वारा शांति, प्रेम, सद्भाव, आपसी भाईचारा का संदेश देते है तथा बेगुनाहों की हत्या व जुल्म के विरुद्ध सख्त संदेश देते है। यह कुरान का ही कथन है कि यदि तुमने एक बेगुनाह का कत्ल कर दिया है तो गोया तुमने पूरी मानवता का कत्ल कर दिया है। निश्चित रूप से कुरान शरीफ एवं इस्लाम के इस बुनियादी उसूल का तो इतना प्रचार-प्रसार नहीं हो रहा है। परंतु हदीसों व इस्लामी इतिहास से संबंधित विवादित घटनाओं को लेकर विभिन्न मुस्लिम समुदायों में तलवारें खिंची जरूर दिखाई देती हैं। ईरानी नेतृत्व तथा वहां के उलेमा गत कई दशकों से इस बात के लिए अपनी कोशिशें जारी रखे हुए हैं कि किसी तरह पूरे विश्व में शिया-सुन्नी एकता कायम हो सके है। ईरान में आई इस्लामी क्रांति के फौरन बाद ही ईरानी धर्मगुरु आयतुल्ला खुमैनी के समय से ही यह प्रयास शुरू हो गए थे।

आज तक ईरानी नेतृत्व पूरी गंभीरता के साथ शिया-सुन्नी एकता के लिए वैश्विक प्रयासों में जुटा है। गत 16 
फरवरी को भारत के दौरे पर आए ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी ने हैदराबाद की सुन्नी जमाअत से संबंधित ऐतिहासिक मक्का मस्जिद में नमाज-ए-जुमा अदा की। इस मस्जिद की बुनियाद 1616 ईस्वी के अंत में कुतुबशाही वंश के शासक सुल्तान मोहम्मद ने रखी थी तथा वर्ष 1694 में औरंगजेब के शासनकाल में यह मस्जिद बनकर तैयार हुई। यहां राष्ट्रपति रूहानी के साथ सैकड़ों शिया तथा सुन्नी नेताओं ने सामूहिक रूप से नमाज अदा कर शिया-सुन्नी एकता का विश्वव्यापी संदेश दिया। इसके अतिरिक्त जब-जब भारत के प्रमुख शिया धर्मगुरु ईरान के दौरे पर जाते तथा ईरानी धार्मिक नेतृत्व से मिलते रहे हैं तब-तब ईरानी नेतृत्व द्वारा उन्हें बार-बार यह हिदायत दी जाती रही है कि वे सुन्नी जमाअत के लोगों को अपनी आत्मा की तरह समझें। भारत में शिया धर्मगुरु मौलाना हैं।

भारत में शिया धर्मगुरु मौलाना कल्बे सादिक तथा और भी कई धर्मगुरु सुन्नी मस्जिदों में जाकर नमाज अदा करते रहे हैं। भारत ही नहीं बल्कि अरब के और भी कई देश इन दिनों शिया-सुन्नी एकता का प्रदर्शन करने के लिए एक-दूसरे समुदाय से जुड़ी मस्जिदों में नमाज अदा कर रहे हैं। जाहिर है ऐसे प्रयासों को प्रतीकात्मक नहीं धरातलीय स्तर पर इसे प्रयोगात्मक रूप दिया जाना चाहिए और ऐसा वातावरण तैयार करना चाहिए कि देश व दुनिया की मस्जिदों को केवल अगाह की मस्जिद ही कहा जाए न कि शिया मस्जिद, सुन्नी मस्जिद, बरेवली, अहमदिया या खोजा मस्जिद। दूसरी ओर जो ताकतें इस्लाम में फूट डालने तथा मुस्लिम जगत को विभाजित करने वालों के हाथों में खेल रही हैं वे इस बात से पूरी तरह भयभीत हैं कि यदि वैश्विक स्तर पर शिया-सुन्नी एकता के प्रयास परवान चढ़ने लगे हैं तो निश्चित रूप से आतंकवाद का पोषण करने वाली हैं।

तथा इस्लाम पर आतंकवाद जैसा कलंक लगाने वाली विचारधारा बेनकाब हो जाएगी। यह विचारधारा अपने आकाओं के इशारे पर शिया-सुन्नी एकता के प्रयासों को किसी भी कीमत पर सफल नहीं होने देना चाहती है। उदाहरण के तौर पर शिया धर्मगुरु मौलाना कल्बे जव्वाद के प्रयासों से 24 मार्च को लखनऊ में आतंकवाद के विरुद्ध शिया-सुन्नी संयुक्त सम्मेलन आयोजित होना प्रस्तावित है। इस सम्मेलन से पहले ही शिया-सुन्नी एकता को नापसंद करने वाली विचारधारा से संबंधित किसी अज्ञात व्यक्ति ने मौलाना को फोन कर उन्हें आतंकवादी घटना अंजाम दिए जाने की धमकी दी है। धमकी देने वाले ने कहा है कि यदि इस सम्मेलन में प्रमुख इस्लामी विचारधारा के विरुद्ध कुछ भी बोला गया है तो आतंकी घटना को लखनऊ में ही अंजाम दिया जाएगा। इसी संदर्भ में एक और बेहद अहम सवाल यह उठता है कि जिस प्रकार ईरान गत तीन दशकों से शिया-सुन्नी एकता की कोशिश कर रहा है।

तथा विश्व के शिया उलेमाओं को यह संदेश दे रहा है कि वे अपने-अपने देशों में शिया-सुन्नी एकता हेतु पूरी सक्रियता से काम करें उसी प्रकार सऊदी अरब का नेतृत्व ऐसे प्रयास क्यों नहीं करता? बजाए इसके सऊदी अरब को जहां-जहां ईरान की उपस्थिति नजर आती है वहां-वहां वह अमेरिका के इशारे पर ईरान के विरुद्ध अपना परचम लेकर खड़ा हो जाता है। इतना ही नहीं बल्कि गत पांच वर्षो में सऊदी अरब में शिया धर्मगुरुओं तथा शिया समुदाय के सऊदी नागरिकों को विरुद्ध जुल्म की घटनाओं में भी तेजी से बढ़ोतरी हुई है। हां इस विषय में शिया धर्मगुरुओं को एक बात पर जरूर ध्यान दिए जाने की जरूरत है कि वे अपनी ओर से इतिहास अथवा हदीस से संबंधित ऐसी विवादित घटनाओं का जिक्र करने से बाज आएं जो दूसरे समुदाय के लोगों की भावनाओं को आहत करने वाली हों।
 
तनवीर जाफरी (वरिष्ठ पत्रकार)

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