परमार्थ के बिना स्वर्ग असंभव


बात काफी पुरानी है। एक साधु किसी नदी के तट पर बैठकर माला जप रहा था। कुछ दूरी पर खड़ा एक ब्राह्मण काफी देर से साधु को माला जपते हुए देख रहा था। वह साधु के करीब आकर बैठ गया। जब साधु ने माला जपना बंद कर दिया, तो ब्राह्मण ने उससे पूछा- बाबा, इस तरह माला जपने से क्या होता है? साधु ने जवाब दिया-इससे स्वर्ग में स्थान सुनिश्चित हो जाता है। यह सुनकर ब्राह्मण पहले तो हंसा और फिर मन ही मन कुछ सोचने लगा। फिर वह बैठे-बैठे तट से रेत उठाकर नदी में डालने लगा। ऐसे करते हुए उसको काफी देर हो चुकी थी।
ब्राह्मण को लगातार नदी में रेत डालते देख साधु से रहा न गया और उसने उससे पूछ लिया-अरे भाई, तुम लगातार नदी में रेत क्यों डाल रहे हो? तब ब्राह्मण ने जवाब दिया-मैं नदी में एक पुल बना रहा हूं। जब पुल बनकर तैयार हो जाएगा, तो उस पर से मैं इस नदी को पार कर लूंगा। ब्राह्मण  की यह बात सुनकर साधु पहले तो हंसा और फिर बोला- -अरे भाई, इस तरह से नदी में पुल नहीं बनता। उसके लिए तुम्हें इंजीनियर चाहिए, हजारों मजदूर चाहिए और मशीनें चाहिए, तब जाकर पुल बन कर तैयार होगा। मात्र रेत डालने भर से पुल कैसे बनेगा? तब ब्राह्मण  ने साधु को बड़ा तार्किक व सटीक जवाब दिया-माला जपने से तुम्हें भी कैसे स्वर्ग मिलेगा।
उसके लिए तो ज्ञान, संयम, परमार्थ और पुण्य करने पड़ते हैं, जो कि तुम नहीं कर रहे हो। यदि मेरे नदी में रेत डालने से पुल नहीं बनेगा, तो यह भी तय है कि तुम्हारे इस तरह माला जपने से तुम्हें स्वर्ग भी नहीं मिलेगा। वाकई, माला जपने से स्वर्ग की प्राप्ति नहीं होती। स्वर्ग की प्राप्ति तो तब ही संभव है, जब व्यक्ति परमार्थी बने और दीन-हीनों की सेवा करने का पुण्य कार्य करे।

सतबीर सिंह

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