देश पर बोझ है दो जगहों से चुनाव


राजएक्सप्रेस,भोपाल। चुनाव आयोग (Election Commission) ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर एक प्रत्याशी के एक सीट पर ही चुनाव लड़ने की याचिका का समर्थन किया है। यह प्रावधान अब बनना ही चाहिए, क्योंकि नेता सरकारी खजाने को चपत लगाने के साथ अपना हित भी साधते जा रहे हैं।
चुनाव आयोग (Election Commission) ने बुधवार को उच्चतम न्यायालय में हलफनामा दाखिल कर एक प्रत्याशी के एक सीट पर ही चुनाव लड़ने की याचिका का समर्थन किया है। चुनाव आयोग ने कहा है कि एक प्रत्याशी जब दो जगहों से जीतता है तो एक सीट से इस्तीफा देता है। ऐसे में इस सीट पर दोबारा चुनाव होते हैं और अतिरिक्त खर्च होता है। वकील और भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय ने ‘वन कैंडिडेट वन सीट’ का फॉर्मूला लागू करने लिए याचिका डाल रखी है।
इस याचिका के तहत लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 33(7) को चुनौती दी गई है। साथ ही मांग की गई है कि संसद और विधानसभा समेत सभी स्तरों पर एक उम्मीदवार के दो सीटों पर चुनाव लड़ने पर रोक लगाई जाए। चुनाव आयोग भी याचिकाकर्ता की इस मांग से सहमत है। चुनाव आयोग इससे पहले भी इस फॉमरूला को अपना समर्थन दे चुका है। उपाध्याय ने याचिका में कहा है कि लोकतंत्र का यही तकाजा है कि एक प्रत्याशी एक जगह से चुनाव लड़े।
दो जगह से चुनाव जीतने के बाद एक सीट खाली करनी होती है। ऐसा होने पर उपचुनाव कराना पड़ता है और खजाने पर बोझ पड़ता है। मौजूदा कानून के मुताबिक कोई भी प्रत्याशी एक से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ सकता है। प्रत्याशी बेशक दो सीटों पर चुनाव जीत जाए लेकिन चुनाव के बाद उसे सिर्फ एक ही सीट रखनी होती है, दूसरी सीट से इस्तीफा देना होता है। खाली हुई सीट पर चुनाव आयोग छह महीने के भीतर उपचुनाव कराता है।
एक प्रत्याशी-एक सीट के प्रावधान पर बहस काफी दिनों से चल रही है। अक्सर यह सुनने को मिलता है कि जब मतदाता दो जगहों पर वोट नहीं दे सकता तो नेताओं को दो जगह से चुनाव लड़ने का अवसर क्यों दिया गया है। दो जगहों से चुनाव लड़ने के लिए इस तर्क का सहारा लिया जाता है कि राष्ट्रीय स्तर का कोई नेता अपनी सर्व स्वीकार्यता साबित करने के लिए दो जगहों से चुनाव लड़ सकता है, लेकिन क्या वाकई यह तर्क कोई प्रासंगिकता रखता है?
इस तर्क का सहारा लेकर राष्ट्रीय राजनीति के धुरंधर ही नहीं, ढेरों क्षेत्रीय क्षत्रप भी न सिर्फ चुनाव लड़ सकते हैं बल्कि जीत कर भी दिखा सकते हैं, लेकिन इस तरह तो कितनी ही सीटें चुनाव के बाद खाली होकर फिर उपचुनाव का मुंह देखेंगी। सवाल यह भी है क्या इस छूट का कोई गहन विश्लेषण भी किया गया था, कि इसका कितना उपयोग होगा और कितना दुरुपयोग, क्योंकि आज के दौर में नेता या तो असुरक्षा के डर से दो जगह से चुनाव लड़ता है या फिर समीकरण साधने वाले दूसरे कारकों से।
लेकिन सही मायने में यह दो जगह से चुनाव लड़ना सीधे-सीधे पूरी चुनावी प्रक्रिया से धोखा करने जैसा है। कुछ लोग इसे सिर्फ उपचुनाव के अतिरिक्त खर्च के रूप में एकमात्र नुकसान का कारण ही समझते हैं। एक प्रत्याशी-एक सीट का प्रावधान चुनाव सुधार की दिशा में बेहद अहम है। अत: सभी राजनीतिक दलों का यह कर्तव्य है कि वे इस प्रावधान को लागू करने में अपनी भूमिका निभाएं।

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