हाफिज पर पाक को फिर फटकार


राजएक्सप्रेस,भोपाल। अमेरिका ने मुंबई हमले के मास्टर माइंड और जमात-उद-दावा सरगना हाफिज सईद (Hafiz Saeed) को बड़ा झटका दिया है। उसने इस अंतरराष्ट्रीय गुनहगार का राजनीतिक चेहरा बनाने जा रही पार्टी मिल्ली मुस्लिम लीग (Milli Muslim League) और सात नेताओं को आतंकवादी घोषित करते हुए प्रतिबंधित कर दिया है। अमेरिका का यह कदम ऐसे वक्त में आया है, जब पाकिस्तान में चुनावी सुगबुगाहट के बीच कई नए राजनीतिक दल पंजीकरण की फिराक में हैं। मगर सवाल यह है कि क्या पाकिस्तान इससे सीख लेगा।
पाकिस्तान में आम चुनाव से पहले अमेरिका ने बड़ी कार्रवाई करते हुए मुंबई हमलों के मास्टरमाइंड हाफिज सईद (Hafiz Saeed) की राजनीतिक पार्टी मिल्ली मुस्लिम लीग (एमएमएल) को आतंकी संगठन घोषित कर दिया है। इतना ही नहीं अमेरिका ने एमएमएल के सात सदस्यों को भी आतंकी घोषित किया है। अमेरिका ने तहरीक-ए-आजादी-ए-कश्मीर को भी आतंकी संगठनों की सूची में डाला है। तहरीक को लश्कर-ए-तैयबा का फ्रंट माना जाता है, जो अमेरिका के मुताबिक पाकिस्तान में बिना रोक-टोक संचालित होता है।
इससे एक दिन पहले ही पाकिस्तान चुनाव आयोग ने एमएमएल को राजनीतिक पार्टी के तौर पर पंजीकृत करने के लिए गृह मंत्रालय द्वारा दिया गया क्लीयरेंस सर्टिफिकेट पेश करने को कहा था। पाकिस्तान चुनाव आयोग ने पहले एमएमएल को राजनीतिक पार्टी के तौर पर पंजीकृत करने से मना कर दिया था, क्योंकि गृह मंत्रालय ने इसके प्रतिबंधित संगठनों से संबंध होने को लेकर आपत्ति जताई थी। अमेरिकी विदेश विभाग ने कहा कि इस कदम का मकसद लश्कर-ए-तैयबा को उन संसाधनों तक पहुंचने से रोकना है जिससे वह अन्य आतंकी हमलों को अंजाम दे सके। भारत ने अमेरिका की कार्रवाई का स्वागत किया है।
विदेश विभाग का कहना है कि मिल्ली मुस्लिम लीग लश्कर-ए-तैयबा का ही दूसरा नाम है। यह लीग आतंकी संगठन के लिए काम कर रही थी। अमेरिका की कार्रवाई भारत के दावे को पुख्ता करती है कि पाकिस्तान ने आतंकी संगठनों के खिलाफ प्रभावी कार्रवाई नहीं की है। अमेरिका की इस कार्रवाई के बाद पाकिस्तान चुनाव आयोग अपने उस कदम से पीछे हटेगा, जिस पर वह उस दिन से आपत्ति जता रहा है, जब हाफिज ने राजनीतिक पार्टी बनाने का ऐलान किया था। आठ मार्च को इस्लामाबाद हाईकोर्ट के आदेश के बाद चुनाव आयोग पर आतंकी हाफिज की पार्टी को पंजीकृत करने का दबाव बढ़ गया था।
पाकिस्तानी चुनाव आयोग (ईसीपी) ने पिछले साल अक्टूबर में हाफिज सईद के प्रतिबंधित आतंकी संगठन जमात उद-दावा से जुड़े मिल्ली मुस्लिम लीग को राजनीतिक दल के रूप में पंजीकृत करने संबंधी आवेदन को निरस्त कर दिया था। एमएमएल राजनीतिक दल के रूप अपनी मान्यता चाहता था, जिससे उसके देश में चुनाव में भाग लेने का रास्ता साफ हो सके। तब गृह मंत्रालय ने चुनाव आयोग को पत्र लिखकर कई प्रतिबंधित आतंकी संगठनों के साथ एमएमएल की नजदीकियों के चलते उसे पंजीकृत नहीं करने का निर्देश दिया था।
पाकिस्तान के आंतरिक मंत्रालय के लगातार विरोध के बावजूद कुख्यात आतंकी और जमात-उद-दावा (जेयूडी) के हाफिज सईद ने पिछले साल दिसंबर में नवाज शरीफ के संसदीय क्षेत्र में अपना राजनीतिक ऑफिस तक खोल दिया था। अमेरिका ने 26 दिसंबर 2001 में ही लश्कर-ए-तैयबा को आतंकी संगठन घोषित किया था। इसके बाद संगठन के सरगना हाफिज को भी अमेरिका ने आतंकियों की सूची में डाला था। अमेरिकी विदेश विभान ने आरोप लगाया कि प्रतिबंधों से बचने के लिए लश्कर सालों से अपना नाम बदलता आ रहा है। लश्कर-ए-तैयबा का गठन 1980 के दशक में हुआ था। वह 2008 में मुंबई में हुए आतंकी हमलों के लिए जिम्मेदार है।
इन हमलों में 166 लोगों की मौत हो गई थी। वैसे, यह पहली बार नहीं है, जब पाकिस्तान को हाफिज सईद के बहाने अमेरिका से डांट सुननी पड़ी हो। उसकी नजरबंदी खत्म करने और रिहा करने के बाद भी अमेरिका ने जमकर फटकार लगाई थी। पाकिस्तान हमेशा कहता है कि आतंक फैलाने के लिए जिम्मेदार नॉन स्टेट एक्टर्स के खिलाफ वह कार्रवाई कर रहा है। यह बात अलग है कि जमीन पर पाकिस्तान की कार्रवाई दिखती नहीं है। सच्चाई तो यह है कि पाकिस्तान की राजनीतिक पार्टियों की हाफिज सईद के बिना रोटी हजम नहीं होती। राजनीतिक दलों के नेता आतंकी सरगनाओं के साथ गुफ्तगू करते अक्सर दिखाई दे जाते हैं।
राजनीतिक संगठनों का इस आतंकी के साथ गहरा याराना है। समय-समय पर राजनीतिक संगठनों के बड़े चेहरे हाफिज सईद के साथ मंच साझा करते हुए दिखाई दिए हैं। इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ से खैबर पखतूनख्वां के मुख्यमंत्री परवेज खट्टक हाफिज सईद के साथ मंच साझा करते हुए दिखाई दिए। कुछ दिन पहले फिलीस्तीन के राजदूत ने भी हाफिज सईद के साथ रावलपिंडी में मंच साझा किया था। भारत के कड़े ऐतराज के बाद फिलीस्तीन ने अपने राजदूत को वापस बुला लिया। भारत के सख्त तेवर के बाद हाफिज सईद ने धमकी भरे अंदाज में कहा था कि वह भारत को सुपरपावर नहीं बनने देगा।
इससे पहले भी हाफिज भारत को बर्बाद करने की धमकी देता रहा है। लेकिन हकीकत में हाफिज की निराशा उसके चेहरे पर तो झलकती ही है साथ ही में उसकी जुबां से कड़वे बोल बाहर आते रहते हैं। पास पर आतंकवाद के खिलाफ अपनी विश्वसनीयता साबित करने का चौतरफा दबाव है, जिसके चलते उसे संयुक्त राष्ट्र द्वारा नामजद आतंकी संगठनों के खिलाफ सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों के अनुरूप कार्रवाई करनी है। अभी जब आतंकी संगठनों द्वारा टीवी और एफएम रेडियो पर सामाजिक कार्यो की आड़ में चंदा एकत्र करने के लिए दिए जाने वाले विज्ञापनों पर भी रोक लगाई गई थी, तब भी पाक ने हाफिज पर कोई रोक नहीं लगाई थी।
पाकिस्तान में हाफिज सईद को जो दर्जा प्राप्त है, उससे समझा जा सकता है कि यह आदेश कितना कागजी था। इस आदेश को जारी हुए हफ्ते भर भी नहीं बीते थे कि पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ ने हाफिज सईद और मुंबई बम कांड के एक और साजिशकर्ता जकीउर रहमान लखवी की तारीफ में कसीदे पढ़े। मुशर्रफ ने स्वीकार किया था कि सईद व लखवी को भारत के खिलाफ कश्मीर में आतंकी गतिविधियां भड़काने के लिए पाक की सरकारें मदद करती रही हैं। आतंकवाद के मामले में पाकिस्तान की भूमिका हमेशा संदिग्ध रही है, इसका सबसे बड़ा सबूत तो यही था कि अल कायदा के सरगना ओसामा बिन लादेन ने वहीं पनाह ले रखी थी।
9/11 के हमले के बाद अमेरिका के नेतृत्व में अफगानिस्तान में अल कायदा और तालिबान पर किए गए हमले के बाद से पाकिस्तान ने आतंकवाद के खिलाफ हमेशा दोहरे रुख का परिचय दिया है। खुद अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने नवाज शरीफ को चेताया है कि उन्हें आतंकवाद में फर्क नहीं करना चाहिए। वास्तव में जब तक पाकिस्तान हाफिज सईद, जकीउर रहमान लखवी और दाऊद जैसे आतंकियों के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं करता, उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता। हाफिज की जिस पार्टी को अमेरिका ने आतंकी सूची में डाला है, उसे पंजीकृत कराने के लिए पाकिस्तान में जिस तरह का ड्रामा जारी था, उसे सब ने देखा।

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