अलगाववादियों की फिक्र न करे सेना


राजएक्सप्रेस,भोपाल। पिछले दिनों घाटी के अनंतनाग और शोपियां में सुरक्षा बलों (Military Forces) की कार्रवाई में ढेर किए गए 13 आतंकियों की मौत पर अलगाववादी (Separatist) एक बार फिर मातम मनाते नजर आए। उन्होंने घाटी के युवाओं को बरगलाने के साथ ही सेना को भी खूब बुरा-भला कहा। मगर सरकार की प्राथमिकता है कश्मीर को आतंकवाद, और बंदूकों से पूरी तरह मुक्त कराना। इससे अलगाववादी नेताओं को तकलीफ होती है तो होती रहे। यह उनका मसला है।

जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा बलों को बड़ी कामयाबी हाथ लगी है। घाटी के अनंतनाग में एक और शोपियां में दो मुठभेड़ों में सुरक्षा बलों ने 13 आतंकवादियों को मार गिराया, जबकि एक को जिंदा गिरफ्तार कर लिया। गिरफ्तार आतंकवादी हिज्बुल मुजाहिदीन गुट का बताया जा रहा है। सुरक्षा बलों को अनंतनाग और शोपियां में आतंकवादियों के छिपे होने की सूचना मिली थी। इसके बाद सेना, सीआरपीएफ और जम्मू-कश्मीर पुलिस ने तलाशी अभियान शुरू किया। शोपियां की कार्रवाई में हिज्बुल का कमांडर जीनत-उल-इस्लाम भी मारा गया है। मारे गए आतंकवादियों के पास से भारी मात्रा में हथियार बरामद किया गया है और पाकिस्तान से जुड़ी चीजें भी पाई गई हैं।
सेना की इस शानदार कार्रवाई के बाद पाकिस्तान एक बार फिर बेपर्दा हो गया है। यह छिपी बात नहीं है कि पाकिस्तानी सेना ने नियंत्रण रेखा पर ढेर सारे आतंकी शिविर बना रखे हैं। 50 से ऊपर प्रशिक्षण शिविर भी चल रहे हैं। पाकिस्तानी सेना भारतीय सैनिकों का ध्यान बंटाकर और गांव वालों पर दबाव बना कर आतंकियों को भारतीय सीमा में प्रवेश कराने का प्रयास करती है। अगर भारतीय सेना इन शिविरों को ध्वस्त करने में कामयाबी हासिल करती है, तो काफी हद तक सीमा पार से होने वाली आतंकी घुसपैठ पर लगाम कसी जा सकती है। यह सफलता इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि मारे गए आतंकियों में लेफ्टिनेंट उमर फैयाज के हत्यारे भी शामिल हैं।
मुठभेड़ों की खबर लगने के बाद अलगाववादियों की शह पर शोपियां, अनंतनाग, कुलगाम और पुलवामा में लोग सेना के खिलाफ सड़कों पर भी उतर आए। इन्हें खदेड़ने के लिए आंसू गैस के गोले और पैलेट गन तक चलानी पड़ी। अलगाववादियों का यह विरोध बेवजह था, क्योंकि अनंतनाग में जब आतंकी सेना के निशाने पर आ गए, तब उनके परिजनों को बुलाकर समर्पण कर देने की कोशिशें भी की गईं। जब आतंकी नहीं माने, तब सेना ने उन्हें मार गिराया। यह बात कई मौकों पर साफ हो चुकी है कि आतंकवादियों के जरिए पाकिस्तान भारत में एक अघोषित युद्ध लड़ रहा है। पठानकोट हमले के बाद से ही भारत उसे अलग-थलग करने का प्रयास कर रहा है।
अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान के इरादे जाहिर हो चुके हैं, कई देश उसे चेतावनी भी दे चुके हैं कि वह आतंकवाद को रोकने में मदद करे, मगर वह अपनी करतूतों से बाज नहीं आ रहा। अपनी इन्हीं हरकतों की वजह से कुछ दिन पहले पाकिस्तान अपने प्रधानमंत्री की अमेरिका में सरेआम बेइज्जती देख चुका है। ऐसे में भारत के महज सबक सिखाने की चेतावनी देने या नियंत्रण रेखा पर छिटपुट कार्रवाई कर यह जाहिर करने से काम नहीं चलेगा कि वह कठोर कदम भी उठा सकता है। आज की स्थितियों में युद्ध किसी के भी हित में नहीं हो सकता, पर आतंकी गतिविधियों पर रोक लगाने के लिए उसे व्यावहारिक रणनीति अपनाने की जरूरत है।
उसे पाक अधिकृत कश्मीर में नियंत्रण रेखा पर चल रहे तीन सौ से ऊपर आतंकी शिविरों को ध्वस्त करने और पाकिस्तान के मंसूबों पर चोट करने के लिए व्यावहारिक कदम उठाने ही चाहिए। भारत सरकार हर आतंकी घटना के बाद पाकिस्तान को सबक सिखाने का दम भरती है, कुछ वादे किए और इरादे जताए जाते हैं। मगर कोई संतोषजनक नतीजा नहीं निकल पाता। दोनों देशों के बीच शांति प्रयासों पर विराम लगा हुआ है। किसी मसले पर कोई बातचीत नहीं हो पाती। भारत की शर्त है कि पाकिस्तान पहले अपने यहां आतंकवाद पर लगाम लगाए और पाकिस्तान शर्त रखता है कि भारत पहले कश्मीर मसले को हल करे फिर बाकी मुद्दों पर बातचीत हो।
इस तनातनी का असर नियंत्रण रेखा पर दोनों देशों की सेनाओं के बीच दिखाई देता है। पाकिस्तान को लगता है कि वह कश्मीर घाटी में तनाव बनाए रख कर भारत को परेशान कर सकता है। इसके लिए वह अलगाववादी नेताओं को उकसाता और अपने यहां प्रशिक्षण पाए आतंकियों को सीमा पार भेजने की कोशिश करता है। इस पर लगाम लगाने का भारत के पास कोई उपाय नहीं है। कश्मीर में शांति के लिए जो प्रयास होने चाहिए, वे भी रुके हुए हैं। पाकिस्तानी हुक्मरान वहां की सेना, कट्टरपंथी ताकतों और खुफिया एजेंसी के दबाव के चलते कोई व्यावहारिक फैसला नहीं कर पाते।
फिर यह भी कि गरीबी, अशिक्षा और विकास कार्यो की तरफ से अवाम का ध्यान हटाने के लिए उसे भारत के साथ तनाव का माहौल बनाए रखना ज्यादा मुफीद नजर आता है। भारत अनेक बार वहां चल रहे आतंकी प्रशिक्षण शिविरों, पनाह पाए कुख्यात आतंकियों और भारत में हुए आतंकी हमलों में उनके हाथ होने के पुख्ता सबूत सौंप चुका है, पर वह उन्हें खारिज करता रहा है। बीते साल कश्मीर में 200 से भी ज्यादा आतंकवादी मारे जा चुके हैं। बावजूद हुर्रियत के अलगाववादी नेता जिहाद के नाम पर कश्मीरी युवाओं को आतंक के लिए प्रेरित करने की भूल कर रहे हैं, जबकि यह रास्ता कश्मीर और उसकी अवाम को बर्बादी के रास्ते पर ले जा रहा है।
इन आतंकियों के मारे जाने के बाद अलगाववादी तत्व कश्मीर में तत्काल हड़ताल का ऐलान तो कर देते हैं, लेकिन कश्मीर की ही संतान उमर फैयाज और अयूब पंडित की शहादत पर मौन रहते हैं। अपने युवाओं को खो रही कश्मीरी जनता को अलगाववादियों से पूछना चाहिए कि क्या उमर फैयाज और अयूब पंडित कश्मीरी नहीं थे? कश्मीर बदल रहा है। लेकिन, ये बात यहां के अलगाववादी नेताओं को रास नहीं आ रही है। घाटी के अलगाववादी नेता उस वक्त जश्न मनाते हैं जब कोई पत्थरबाज किसी सिपाही को जख्मी कर देता है या फिर कोई आतंकवादी सुरक्षाबल के किसी जवान को शहीद कर देता है।
लेकिन आज ये लोग मातम मना रहे हैं। वो भी आतंकियों की मौत का। अलगाववादियों से यह सवाल जरूर पूछा जाना चाहिए कि जिन 13 आतंकियों की मौत पर वे हड़ताल का आह्वान कर रहे हैं, क्या वे कश्मीर की भलाई के लिए काम कर रहे थे। सवाल यह भी पूछा जाना चाहिए कि इन आतंकियों से उनके क्या रिश्ते थे? जो आज वे घड़ियाली आंसू बहा रहे हैं। हाल की मुठभेड़ के बाद जहां पूरा देश सेना की वाहवाही कर रहा है वहीं घाटी के अलगाववादी नेता इस पर विरोध जता रहे हैं। आतंकियों के एनकाउंटर को सामूहिक नरसंहार करार दिया जा रहा है। यहां तक कि पाकिस्तानी सेना को भी हिलाकर रख दिया है।
पाकिस्तान में बैठे आतंकियों के सरकारी आकाओं को भी खूब मिर्ची लग रही है। लेकिन, यकीन मानिए पाकिस्तान और अलगाववादी नेताओं को लगनी वाली मिर्ची या फिर होने वाली जलन से न तो भारतीय सेना की सेहत पर कोई फर्क पड़ता है और न ही सरकार की सेहत पर। कश्मीर के अलगाववादी नेता आतंकियों के एनकाउंटर का लाख विरोध कर लें, लाख बार बंद का आह्वान कर लें, लेकिन सेना का ऑपरेशन ऑलआउट रुकने वाला नहीं है। एनकाउंटर की वजह से अगर कश्मीर के हालात बदल रहे हैं तो सौ फीसदी इस तरह के एनकाउंटर जारी रहेंगे।
आतंकियों की घुसपैठ होगी तो उन्हें मारा जाता रहेगा। सरकार की प्राथमिकता है कश्मीर को आतंकवाद, ड्रग्स और बंदूकों से मुक्त कराना जिसके लिए सरकार काम करती रहेगी। इससे अलगाववादी नेताओं को तकलीफ होती है तो होती रहे। सीमा पर आतंकियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई का ही असर है कि देश में आतंकी वारदातों में कमी आई है। अब अलगाववादियों को यह सब हजम नहीं हो रहा है, तो सरकार और सेना को उनकी खातिरदारी भी सही तरीके से करनी ही होगी।


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