हिंसा समस्या का समाधान नहीं


राजएक्सप्रेस, भोपाल। एससी/एसटी एक्ट में बदलाव (Changes in ST/SC Act) के विरोध में भारत बंद के दौरान हिंसा का जो स्वरूप दिखा है, वह स्वीकारने योग्य नहीं है। हिंसा किसी समस्या का अंतिम विकल्प होती है। यह बात प्रदर्शनकारियों को समझनी चाहिए। सरकारों को भी ऐसे मामलों में तत्परता दिखानी होगी।
एससी/एसटी कानून में बदलाव के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरोध में देशभर में दलित संगठनों का भारत बंद प्रदर्शन हिंसक हो गया। भिंड-मुरैना में हुई झड़प में जहां एक-एक युवक की मौत हो गई है। वहीं, ग्वालियर में दो लोगों के मरने की खबर है। उत्तरप्रदेश के फिरोजाबाद में भी एक शख्स की मौत हो गई, जबकि मेरठ में प्रदर्शनकारियों ने जमकर काफी उत्पात मचाया है। राजस्थान के बाड़मेर और मध्य प्रदेश के भिंड में दो गुटों में हुई झड़प में करीब 30 लोग जख्मी हुए। बाड़मेर में कई वाहनों में आग लगाई गई है।
पंजाब, बिहार और ओडिशा में भी बंद का व्यापक असर है। यहां प्रदर्शनकारियों ने न सिर्फ ट्रेनें रोकीं, बल्कि सड़क जाम कर परिवहन व्यवस्था को भी नुकसान पहुंचाया। देश भर के कई जगहों पर कर्फ्यू लगा दिया गया है। दलित संगठनों के इस हिंसक प्रदर्शन के लिए जितने कार्यकर्ता दोषी है, उतनी ही सरकारें भी। दलितों के भारत बंद की जानकारी हर किसी को थी। सुबह से ही दलितों ने अपनी मंशा जाहिर कर दी थी, फिर किसी राज्य ने तत्परता दिखाते हुए आंदोलन के स्वरूप को कमजोर करने की कोशिश नहीं की।
एक के बाद एक राज्य हिंसा की चपेट में आते गए। एक समय तो सड़कों पर सिर्फ प्रदर्शनकारियों का राज था। पूरी सरकारी मशीनरी फेल हो गई थी। सवाल यह भी है कि ऐसा हुआ, तो क्यों? जाहिर है कोई चुप्पी नहीं तोड़ेगा। ऐसा हर बार होता है। किसी भी आंदोलन को समय रहते काबू में करने की नीयत सरकारों में नहीं दिखती। इसी साल की शुरुआत में पुणे की भीमा-कारेगांव की हिंसा हो या फिर मुंबई पहुंचा किसानों का मोर्चा, इन दोनों घटनाओं को समय रहते रोका जा सकता था, मगर सरकार ने समय रहते कदम नहीं उठाए।
ताजा हिंसा के लिए सिर्फ सरकार दोषी है, ऐसा मानना भी गलत होगा। दलित संगठन भी इस हिंसा के लिए बराबर के दोषी हैं। उन्हें अपनी मांग पूरी कराने के लिए हिंसा का रास्ता अख्तियार करने की कोई जरूरत नहीं थी। केंद्र सरकार दलितों की मांग पर पुनर्विचार याचिका दाखिल करने की बात कह चुकी थी। लिहाजा, उन्हें थोड़ा समय लेना चाहिए था। अगर वे बहुत ज्यादा नाराज थे, तो भी उन्हें शांतिपूर्ण ढंग से अपनी बात कहनी चाहिए थी। हिंसा किसी भी समस्या का अंतिम विकल्प होती है। अभी उनके सामने कई विकल्प खुले थे।
अगर उन्हें केंद्र सरकार पर भरोसा नहीं था, तो वे खुद भी कोर्ट में अपील कर सकते थे। मगर ऐसा नहीं किया, क्योंकि हिंसा आसान उपाय बन चुकी है। बहरहाल, अब जबकि हिंसा का तांडव पूरा देश देख चुका है, तो इस मामले में जरा सी भी नरमी प्रदर्शनकारियों के प्रति नहीं दिखानी चाहिए। इस हिंसा में जो लोग मारे गए हैं या जो भी नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई भी संगठनों से करनी चाहिए, ताकि भविष्य में दूसरे संगठनों को नसीहत मिले। साथ ही सरकारों को अपनी कार्यप्रणाली में सुधार करते हुए तत्काल कदम उठाने की आदत डालनी चाहिए।

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