‘दम मारो दम’ से बेदम होते युवा


राजएक्सप्रेस, भोपाल। आज विश्व धूम्रपान निषेध दिवस है। तंबाकू नियंत्रण के लिए सख्त तथा कारगर कदम उठाने की आज नितांत आवश्यकता है। सरकार के कानूनी प्रावधान महज चेतावनी बनकर रह गए हैं। सार्वजनिक स्थलों पर धूम्रपान निषेध कानून की अवहेलना हो रही है। सरकार को थोड़े से लाभ को त्याग कर तंबाकू के सेवन को रोकने के लिए बनाए गए कानून तथा नियमों को सख्ती से अमल में लाना होगा।
नशा विनाश की जड़ है और बात जब धूम्रपान की करते हैं तो यह और भी भयावह हो जाता है। केंद्र और राज्य सरकारें धूम्रपान के खिलाफ जागृति अभियान चला रही हैं लेकिन युवा वर्ग अपने आपको इस जहर से बचा नहीं पा रहा है। हालिया वर्षो में जारी आंकड़े डरावने हैं। देश के भविष्य युवा पीढ़ी को धूम्रपान निगल रहा है। धूम्रपान से निजात पाने के लिए स्वविवेक की जरूरत है और स्वविवेक आत्मबल से आता है। समय-समय पर धूम्रपान से बचने के लिए प्रभावी विज्ञापन जारी किए जाते हैं लेकिन पश्चिमी देशों की नकल कर कानून को ठेंगा दिखाता युवा वर्ग ‘दम मारो दम’ की नकल पर अपना पूरा दम निकाल दे रहा है। भारत में तंबाकू की शुरुआत के प्रमाण जहांगीर के शासनकाल से मिलते हैं। इस दौरान हुक्के के जरिये तंबाकू का इस्तेमाल होता था। तब तंबाकू का उत्पादन देश में नहीं होता था बल्कि अन्य देशों से यह भारत पहुंचता था, लेकिन आज न सिर्फ देश में तंबाकू की खेती व्यापक पैमाने पर होती है बल्कि इसके उत्पादों का बड़ा कारोबार भी यहीं है और सेवनकर्ता भी सबसे ज्यादा यहीं हैं।
भारत में तंबाकू की खेती लगभग 4 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में होती है और खेती में लगभग 60 लाख किसान काम करते हैं। तंबाकू से पैदा होने वाली बीमारियों के सबसे ज्यादा रोगी भी इसी देश में हैं। भारत का शायद ही कोई शहर या हिस्सा होगा जहां तंबाकू या इससे बनी चीजों का सेवन नहीं होता। एक मादक द्रव्य के रूप में तंबाकू का सेवन लोग चार सौ से भी अधिक वर्षो से करते आ रहे हैं। चिकित्सा शास्त्रियों व वैज्ञानिकों द्वारा इसके सेवन से स्वास्थ्य तथा पर्यावरण पर पड़ने वाले हानिकारक और गंभीर दुष्प्रभावों की जानकारी दिए जाने के बावजूद इसके इस्तेमाल में निरंतर वृद्धि हो रही है। यह गंभीर चिंता का विषय है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चेतावनी दी है कि यदि तंबाकू की मौजूदा खपत को नहीं रोका गया तो 21वीं सदी के अगले दो दशकों में तंबाकू संबंधी बीमारियों से होने वाली मौतों की संख्या में तेजी से वृद्धि होगी जिसकी जिम्मेदारी भारत पर भी होगी क्योंकि विश्व में चीन के बाद भारत तंबाकू का दूसरा बड़ा उत्पादक और चौथा सबसे बड़ा निर्यातक है।
तंबाकू के इतिहास पर नजर डाली जाए तो पांचवीं शताब्दी में सबसे पहले अमेरिका में इसके चलन की जानकारी मिलती है। पंद्रहवीं सदी में यूरोप में तंबाकू का प्रचलन था। आज अमेरिका और यूरोपीय देशों के लोगों में तंबाकू के प्रति काफी जागरूकता है और वहां इसके सेवनकर्ता काफी कम हैं। इसलिए बीमारियां भी कम हैं। सन् 1954 में अमेरिका के कैंसर से पीड़ित एक व्यक्ति ने तंबाकू इंडस्ट्री के खिलाफ याचिका दायर की थी। जिसे 13 वर्षो बाद खारिज कर दिया गया। इसके बाद साल 1956 में तंबाकू कंपनियों ने सिगरेट के पैकेटों पर चेतावनी देना शुरू की। सन् 1970 से 1995 के बीच विश्व स्वास्थ्य संगठन की पहल पर तंबाकू के उत्पादन एवं खपत पर नियंत्रण हेतु प्रयास शुरू कर दिए गए थे। 1993 में धूम्रपान के कारण गंभीर रोगों से ग्रस्त महिला रॉस किंपलोन ने एक याचिका दायर की थी जिस पर 9 साल तक मुकदमा चला, लेकिन बाद में उसके परिवार ने मुकदमा आगे बढ़ाने की पेशकश नहीं की। 1990 के प्रारंभ में 25 देशों में तंबाकू के उपयोग पर नियंत्रण के लिए कानून बनाए गए। इससे पूर्व सन् 1970 से 1990 के बीच विश्व स्वास्थ्य संगठन की पहल पर तंबाकू के उत्पादन तथा खपत पर नियंत्रण हेतु प्रयास शुरू कर दिए गए थे। इस बारे में एक विश्वस्तरीय संधि भी है जिसमें करीब एक सौ देशों ने हस्ताक्षर किए थे। धूम्रपान करने से कहीं घातक होता है अप्रत्यक्ष धूम्रपान। यानी एक धूम्रपानी तो इससे सीधे ही प्रभावित होता है जबकि उसके आसपास रहने वाला व्यक्तिभी प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता। शोधों से यह स्पष्ट हो गया है कि धूम्रपान से हृदय रोग, ब्रान्काइटिस, तपेदिक, दमा, उच्च रक्तचाप, स्नायु दुर्बलता, मोतियाबिन्द, पेट का अल्सर सहित सभी तरह के कैंसर की संभावना बढ़ जाती है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार देश में 15 करोड़ पुरुष तथा 3.4 करोड़ महिलाएं तंबाकू उत्पादों का सेवन करते हैं। इसके अलावा 11 करोड़ 20 लाख लोग धूम्रपान लत की जकड़ में हैं। देश में तंबाकू की 55 फीसदी खपत बीड़ी और 30 फीसदी खपत गुटके के रूप में हो रही है। चबाने वाली तंबाकू का ही सालाना कारोबार पच्चीस हजार करोड़ रुपये पार कर चुका है। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद की पिछले कुछ वर्षो की रिपोर्टो में धूम्रपान करने वालों की लगातार बढ़ती संख्या पर चिंता जताई गई है। इसके मुताबिक देश में 15 वर्ष से अधिक उम्र के लगभग 16 करोड़ पुरुष और 7.5 करोड़ महिलाएं किशोर अवस्था से ही धूम्रपान शुरू कर देते हैं। चिकित्सकों के अनुसार निकोटिन की लत अन्य मादक पदार्थो की अपेक्षा ज्यादा आसानी से लग जाती है। इसी कारण प्रयोग के तौर पर धूम्रपान करने वाले ज्यादातर भारतीय युवा इसके आदी हो जाते हैं। एक समय विकसित देशों में धूम्रपान की लत ज्यादा थी पर अब धीरे-धीरे यह विकासशील देशों में पहुंच रही है। इस समय विकसित देशों में लगभग 48 प्रतिशत पुरुष और 24 प्रतिशत महिलाएं धूम्रपान करते हैं जबकि विकासशील देशों में ये आंकड़े क्रमश: 45 प्रतिशत और दस प्रतिशत हैं। तंबाकू उत्पादन के मामले में दुनिया में तीसरे नंबर के देश में भारत में धूम्रपान अपना शिकंजा कस चुका है और इसके दुष्प्रभाव भी खतरे का स्तर पार कर चुके हैं।
तंबाकू नियंत्रण के लिए सख्त तथा कारगर कदम उठाने की आज नितांत आवश्यकता है। हालांकि सरकार को तंबाकू से 20 अरब रुपयों की सालाना आय होती है। तंबाकू उत्पादन और निर्यात से देश को जो आमदनी होती है उससे कई गुना ज्यादा तो सरकार नशामुक्तिकार्यक्रमों और योजनाओं पर खर्च कर देती है। नागरिकों की मौत से होने वाली हानि भी एक तरह से राष्ट्र की क्षति है। हालांकि लंबे समय से ऐसे कानून की कमी महसूस की जा रही है, जो नशे की बढ़ती लत पर लगाम कस सके। इस दिशा में सन् 2003 में धूम्रपान निषेध्य के लिए भारत में भी कानून बना था। इस कानून के अनुसार स्कूलों और शिक्षण संस्थाओं के आसपास 100 मीटर के दायरे में सिगरेट और तंबाकू उत्पादों को बेचने पर रोक लगाई गई थी। इसके साथ ही दुकानदार किशोरवय और बच्चों को मांगने पर भी सिगरेट नहीं बेच सकते हैं। यह कानून एक मई 2003 से देशभर में लागू हो चुका है। बच्चों तथा किशोरों को सिगरेट बेचने की पाबंदी तक का प्रावधान है। मगर अब तक इस कानून का असर नहीं दिख रहा है।
युवा वर्ग के अलावा किशोरों तथा लड़कियों को भी तंबाकू के सेवन से बचाना होगा। बड़ों को देखकर बच्चे भी सेवन करते हैं पर वे इसके दुष्प्रभाव से अनभिज्ञ रहते हैं। उनमें तंबाकू के घातक प्रभाव के बारे में जागरूकता पैदा करनी होगी। हमारी आने वाली पीढ़ी को इससे बचाया न गया तो वह तंबाकू के जहर में घुलती जाएगी।

निलय श्रीवास्तव (स्वतंत्र टिप्पणीकार)

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