पानी को लेकर गंभीर हों हम


राजएक्सप्रेस, भोपाल। पिछले दिनों आई नीति आयोग की एक रिपोर्ट कहती है कि भारत में करीब साठ करोड़ लोग पानी की घोर कमी (Heavy Water Crisis)का सामना कर रहे हैं। 2030 तक देश में पानी की मांग उपलब्ध आपूर्ति से दोगुना होने का अनुमान है। अंदाजा लगाया जा सकता है कि दस-बारह साल बाद क्या होगा।
इसरो के पूर्व अध्यक्ष के.कस्तूरीरंगन का कहना है कि भारत के जल(water) उपयोग में कृषि-कार्यो में होने वाले इसके इस्तेमाल को पचास फीसद से नीचे लाने की जरूरत है। साथ ही, जल की एक-एक बूंद को बचाने और उसके प्रबंधन की कोशिश की जानी चाहिए। कस्तूरीरंगन का यह आग्रह दरअसल वक्त का तकाजा है। भारत में जल संकट दिनोंदिन और गहराता जा रहा है। पिछले दिनों आई नीति आयोग की एक रिपोर्ट कहती है कि भारत में करीब साठ करोड़ लोग पानी की घोर कमी का सामना कर रहे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2030 तक देश में पानी की मांग उपलब्ध आपूर्ति से दोगुना होने का अनुमान है। ऐसे में, अंदाजा लगाया जा सकता है कि अगले दस-बारह साल बाद कैसे भयावह हालात होंगे। अगला विश्वयुद्ध पानी के लिए होने की कथित भविष्यवाणी सही हो या नहीं, यह अभी से दिख रहा है कि सामाजिक असंतोष और कानून-व्यवस्था की बड़ी समस्या खड़ी हो सकती है। लिहाजा, पानी को बचाने और सहेजने के जतन सभी को करने होंगे। दरअसल, ऐसे प्रयास युद्धस्तर पर चलाए जाने चाहिए।
पानी की सबसे ज्यादा खपत सिंचाई में होती है। फिर, औद्योगिक व घरेलू उपयोग में। भारत में कुल जल-उपयोग का 70 फीसद कृषि-कार्यो में होता है। खेती तो बंद नहीं की जा सकती, क्योंकि यह हमारे पोषण का आधार है, लेकिन खेती में पानी की खपत जरूर घटाई जा सकती है। असल में, खेती में पानी की बेतहाशा खपत का दौर हरित क्रांति के समय शुरू हुआ। हरित क्रांति ने एक समय पैदावार बढ़ाने में बहुत अहम भूमिका निभाई, पर उसने रासायनिक खादों, कीटनाशकों पर अत्यधिक निर्भरता और पानी की बेतहाशा खपत वाली जिस कृषि प्रणाली का प्रसार किया वह पर्यावरणीय संकट की वजह बन गई है। इसलिए अब ऐसी कृषि प्रणाली की जरूरत दिनोंदिन अधिक शिद्दत से महसूस की जा रही है जो रासायनिक खादों व कीटनाशकों पर निर्भरता घटाती जाए और पानी की कम खपत से संभव हो सके। इस सिलसिले में बूंद-बूंद सिंचाई और टपक सिंचाई की विधि को अधिक से अधिक अपनाने की जरूरत है। इजराइल इसमें दुनिया में अग्रणी है और हम इस मामले में उससे बहुत कुछ सीख सकते हैं।
तालाबों को पाटते जाने और नदियों के सिकुड़ते जाने के कारण भी सिंचाई के लिए भूजल का दोहन तेज हुआ और इसके फलस्वरूप धरती के नीचे का जल भंडार छीजता जा रहा है। भूजल के अंधाधुंध दोहन के कारण, एक समय हरित क्रांति का अगुआ रहे पंजाब की यह हालत हो गई है कि वहां के कई इलाके ‘डार्क जोन’ की श्रेणी में आ गए हैं, यानी वहां अब भूजल निकालना संभव नहीं रह गया है। अगर हम जल संकट से समय रहते निपटना चाहते हैं तो हमें एक तरफ भूजल का दोहन सीमित करना होगा, पानी को प्रदूषित होने से बचाना होगा और वर्षाजल संचयन के तरीके अपनाना होगा। 

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