कॉलेजों में भ्रष्टाचार खत्म करने की तैयारी,केंद्र सरकार



केंद्र सरकार ने देश के सभी विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षा संस्थानों को आने वाले सत्रों से किसी भी प्रकार का लेनदेन कैश में न करने की हिदायत दी है। मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से कहा है कि वह सभी उच्च शिक्षण संस्थानों को जरूरी परामर्श भेजे कि सभी वित्तीय लेनदेन अब डिजिटल भुगतान तरीके से किए जाएं। केंद्र सरकार ने यह फैसला कॉलेजों में कालेधन के बढ़ रहे मामलों को रोकने के संदर्भ में ही लिया है। काफी समय से इस बात की शिकायत सरकार के पास पहुंच रही थी कि कॉलेजों में फीस के नाम पर भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया जा रहा है। इसी तरह की शिकायतें प्रवेश के समय लिए जाने वाले डोनेशन को लेकर भी की गई थीं। भ्रष्टाचार के साथ-साथ सरकार की यह पहल डिजिटल लेनदेन को बढ़ावा देने के लिए भी की गई है।

पिछले वर्ष नोटबंदी के बाद से ही सरकार द्वारा डिजिटल लेन-देन को लेकर लोगों को जागरूक किया जा रहा है। विश्वविद्यालय के प्रमुखों को भेजे गए निर्देश के अनुसार, विद्यार्थियों की फीस, परीक्षा फीस, वेंडर का भुगतान और वेतन-मजदूरी आदि सभी प्रकार का भुगतान सहित संस्थान के कामकाज से जुड़ा सारा लेन-देन सिर्फ ऑनलाइन या डिजिटल तरीके से ही किया जाना चाहिए। छात्रवासों में भी सभी विद्यार्थी सेवाओं के लिए तमाम लेनदेन हेतु डिटिजल भुगतान का ही प्रयोग किया जाए। परिसर में स्थित सभी कैंटीन और व्यावसायिक संस्थानों में भी डिजिटल भुगतान को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। वे अपने बैंक खातों को आधार से लिंक करके भीम एप के जरिए लेनदेन कर सकते हैं। सरकार ने यह भी साफ कर दिया है कि आदेश न मानने वाले कॉलेजों पर कार्रवाई होगी।
केंद्र सरकार का यह आदेश ऐसे समय आया है, जब कॉलेजों में नया सत्र आरंभ होने वाला है। नए सेशन में फीस और दूसरे खर्चो को जोड़कर छात्रों से बड़े पैमाने पर कैश वसूला जाता है। निजी कॉलेजों में इसे लेकर अच्छा खासा गोरखधंधा होता है, जिससे बड़ी मात्र में ब्लैकमनी जेनरेट होती है। मोदी सरकार ने इस पर अंकुश लगाने का मन बना लिया है। यह कदम ब्लैकमनी से लेकर डिजिटल इंडिया को ध्यान में रखकर लिया गया है। इसीलिए मानव संसाधन विकास मंत्रलय की ओर से सभी विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षा संस्थानों को चेतावनी दी गई है। सरकार की मंशा से साफ है कि अब शिक्षा क्षेत्र में बढ़ते जा रहे भ्रष्टाचार को खत्म करना उसका अगला लक्ष्य है। सरकार की यह पहल इस नजरिए से भी सही है कि कॉलेजों की फीस में बड़ा हिस्सा कालेधन का होता है। वहीं प्रवेश के समय लिया जाने वाला डोनेशन भी टैक्स के दायरे से बाहर हो जाता है, क्योंकि फीस के अतिरिक्त ली जाने वाली रकम को कॉलेज सरकार से छिपा लेते हैं, जिससे टैक्स देने से बच जाते हैं।
शिक्षा क्षेत्र में भ्रष्टाचार को लेकर कई बार सरकार को इस बात के लिए आगाह किया गया था कि विश्वविद्यालय और कॉलेजों की कार्यप्रणाली संदेह के घेरे में आती जा रही है। हालांकि, इस दायरे में सभी कॉलेज नहीं हैं, मगर जो हैं, वे साख तो गिरा ही रहे हैं। जब यूपीए सरकार थी, तब भी उच्च शिक्षा की गिरती हालत को सुधारने के लिए जितनी भी रिपोर्ट सौंपी गई, सभी में इस समस्या का जिक्र किया गया था। लेकिन तब इस पर ध्यान नहीं दिया। कॉलेजों ने अपनी मनमानी जारी रखी और सरकार की आंखों में धूल झोंेकते रहे। अब स्थिति यह हो गई कि धनकुबेर अपनी काली कमाई कॉलेजों में फीस के नाम पर खपाने लगे हैं।
कॉलेजों में भ्रष्टाचार के तंत्र को रोकने के लिए ही केंद्र सरकार ने इस आशय का आदेश जारी किया है कि अब कोई भी विश्वविद्यालय और कॉलेज छात्रों से कैश में कोई भी रकम नहीं लेगा। इस आदेश के बाद माना जा सकता है कि भ्रष्टाचार के एक और स्रोत पर लगाम लगेगी, जो जरूरी भी था।

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