ईरान ने अपनी ओर से खबर को छिपाने की कोशिश की,संयम का दामन न छोड़े ईरान
ईरान ने अपनी ओर से खबर को छिपाने की उतनी ही कोशिश की, जितनी वह करता है, मगर यह वास्तविकता है कि वहां की संसद पर आतंकवादी हमला हुआ है। दूसरा आतंकी हमला मरहूम पूर्व धर्मगुरु और ईरान के क्रांतिकारी नेता अयातुल्लाह खुमैनी की मजार पर भी हुआ। अंतरराष्ट्रीय मीडिया के अनुसार, इस्लामिक स्टेट ने इस हमले की जिम्मेदारी तक ले ली है। बहरहाल, हमारा देश तो आतंकवाद की बीमारी के दुष्परिणाम 1988-89 से भोग रहा है, उससे पहले भी हमने पंजाब का आतंकवाद देखा था, पर दुनिया का इस बीमारी से सीधा सामना तब हुआ, जब पहले तो तालिबान एवं अलकायदा ने अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया और फिर 11 सितंबर-2001 को अमेरिका में भीषण आतंकवादी हमला कराया। उसके बाद से वक्त की धारा में बहुत कुछ बह चुका है। दुनिया का कोई देश आतंकवाद से महफूज नहीं रहा, न लौह रक्षाकवच में घिरा अमेरिका और यूरोप के देश, न आतंकवाद का पालन-पोषण करने वाला पाकिस्तान। दुनिया के किसी न किसी देश में हर दिन कोई न कोई आतंकी हमला अब होता ही है।
लेकिन ईरान में जो हमला हुआ है, वह देखने में भले ही भारत, ब्रिटेन या फ्रांस में होते रहे हमलों जैसा लगे। सतही तौर पर देखने में इस और दुनिया के दूसरे देशों में हुए हमलों में कोई फर्क भी नजर नहीं आएगा, पर इनके बीच बहुत फर्क है। ईरान में भले ही पहली बार हमला हुआ है, पर इससे शिया और सुन्नियों के बीच की खाई और भी चौड़ी हो जाएगी। जिन देशों में यह दोनों समुदाय रहते हैं, वहां भी इनके बीच दूरियां बढ़ेंगी। सच तो यही है कि आतंकवादियों का कोई मजहब नहीं होता। पर यह बात सिर्फ मानवता में भरोसा रखने वाले ही मानते हैं। आतंकवादी, जिनका इंसानियत में कोई भरोसा नहीं, वे स्वयं को एक मजहब विशेष के एक खास वर्ग का रहनुमा मानकर चलते हैं। यह बात कभी किसी आतंकवादी ने नहीं कही कि वह जो कर रहा है, उसका मजहब से कोई लेना-देना नहीं है, बल्कि वे तो यही कहते हैं कि वे जो कर रहे हैं, वह उनका मजहबी कार्य है। दुनिया उनके इस दावे पर भरोसा नहीं करती। जिसकी रहनुमाई का दावा आतंकी करते हैं, खुद वह तबका भी उन्हें अपना रहनुमा नहीं मानता। पर ईरान की प्रतिक्रिया अलग है।
समाचारों के अनुसार, ईरान के आंतरिक सुरक्षा मंत्री फाजली रहमानी ने कहा है कि दुनिया में एक ही देश है, जो आतंकवाद को बढ़ावा दे रहा है और उससे निपटा जाएगा। उनका इशारा सऊदी अरब की ओर है। यदि ऐसे ही तीखे तेवर ईरान के सर्वोच्च नेता व धर्मगुरु अयातुल्लाह खामेनेई ने भी दिखाए तो उससे युद्ध की आहट आने लगेगी। यह सही है कि अयातुल्लाह खामेनेई बहुत दूरदर्शी इंसान माने जाते हैं। ईरान के राष्ट्रपति हसन रुहानी भी नरम मिजाज व सुलझे हुए नेता हैं। लेकिन हमला मरहूम अयातुल्लाह खुमैनी की मजार पर भी हुआ है। अत: ईरान कितना संयम बरतता है, अभी कहा नहीं जा सकता। कारण यही है कि यह हमला दुनिया में हुए दूसरे हमलों से अलग है। यह युद्ध का कारण भी बन सकता है।
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