PM नरेंद्र मोदी की फिलिस्तीन, यूएई और ओमान की यात्रा असरकारक रही



तीन देशों के दौरे पर गए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत वापस लौट आए हैं। फिलिस्तीन, संयुक्त अरब अमीरात और ओमान की यह यात्रा भारत के लिए काफी अहमियत रखती है। तीन देशों की यात्रा पर निकलने से पहले पीएम ने कहा भी था कि भारत के लिए खाड़ी और पश्चिम एशियाई देश काफी मायने रखते हैं। उनकी इस यात्रा का मकसद इन देशों के साथ संबंधों को मजबूत बनाना है। खाड़ी देशों में शामिल यूएई व ओमान कई लिहाज से भारत के लिए खास हैं। इसके अलावा जहां तक फिलिस्तीन की बात है यहां से भारत का व्यापारिक से कहीं ज्यादा दोस्ताना संबंध है। कूटनीतिक लिहाज से मोदी की इस यात्रा को बहुत अहमियत वाला माना जा रहा है। भारत और यूएई के बीच होने वाले व्यापार को 2020 तक 100 बिलियन डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य है। हाल के दिनों में जिस तरह से भारत और इजरायल के रिश्तों में गर्माहट देखी गई है, उसके मद्देनजर भारत अपने इन पारंपरिक व कूटनीतिक लिहाज से महत्वपूर्ण देशों के बीच कोई गलत संकेत नहीं देना चाहता। यही वजह है कि नरेंद्र मोदी की इस यात्रा से पहले विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने सऊदी अरब का दौरा किया था।
जहां तक यूएई की बात है तो बता दें कि पीएम मोदी ने अपनी यात्रा में वहां के निवेशकों को भारत में निवेश करने की सलाह दी है। यहां पर यह भी बता देना जरूरी होगा कि हाल के दिनों में यूएई की तरफ से भारत में होने वाला निवेश तेजी से बढ़ रहा है। पिछले चार वर्षो में यूएई की तरफ से भारत में चार अरब डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश और छह अरब डॉलर का पोर्टफोलियो निवेश हुआ है। वहीं यूएई ने भारत में 25 अरब डॉलर के नए निवेश की बात कही है। इसके अलावा ओमान की तरफ से भी लगातार निवेश बढ़ रहा है। तीन वर्षो में पीएम की यूएई की दूसरी यात्रा यह बताती है कि हमारे संबंध किस तेजी के साथ सुधर रहे हैं। यह यात्रा देशों की क्षेत्रीय राजनीति के लिहाज से भी काफी मायने रखती है। मिडिल ईस्ट की यदि हम बात करते हैं तो वहां पर बसे लाखों भारतीय हर वर्ष विदेशी मुद्रा भारत भेजते हैं। इस बार यह यात्रा इस लिहाज से भी काफी खास रही, क्योंकि यूएई में मोदी ने मंदिर की आधारशिला रखी।
गौरतलब है कि कुछ समय के बाद ईरान के राष्ट्रपति भी भारत आने वाले हैं। यहां पर यह समझना बेहद जरूरी है कि हाल के कुछ समय में इस क्षेत्र में शिया-सुन्नी का मामला काफी बढ़ गया है। लिहाजा भारत की कोशिश यह होगी कि वह इस बाबत तटस्थ रहते हुए इन सभी देशों को यह समझा पाए कि वह किसी एक देश के साथ नहीं है। जहां तक फिलिस्तीन की बात है, तो यरुशलम के मुद्दे पर भारत ने इजरायल के खिलाफ जाकर वोट दिया था। इसके बाद भी इजरायल के राष्ट्राध्यक्ष भारत आए। यह सब बताता है कि भारत के संबंध दूसरे मुल्कों के साथ किस तरह से प्रगाढ़ हुए हैं। भारत को इन संबंधों का भरपूर लाभ उठाना चाहिए।

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