युवाओं में बढ़ रही है तंबाकू की लत, जो देश और समाज दोनों के लिए घातक




अभी चार फरवरी को ही पूरी दुनिया ने विश्व कैंसर दिवस मनाया, भारत ने भी। इस दिन लोगों को कैंसर के प्रति जागरूकता का रटा-रटाया पाठ पढ़ाया गया। स्वस्थ जीवनशैली और बेहतर खानपान के प्रति सजग किया गया और तंबाकू के उत्पादों से दूर रहने की नसीहतें दी गईं। इस तरह की कवायदें हर साल की जाती हैं, लेकिन फर्क आज तक नहीं दिखा। अभी कुछ दिन पहले देश में किए गए एक सर्वे में कहा गया कि युवाओं में सिगरेट पीने की लत में कमी आई है और सिगरेट की बिक्री कम हुई है। यह सर्वे वाकई देश और समाज के लिए बेहतर संदेश था, मगर सिगरेट के बाद दूसरे अन्य तंबाकू उत्पादों के बढ़ावे की तरफ किसी का ध्यान नहीं गया। अब तो हालत यह है कि तंबाकू की तरफ युवा तेजी से बढ़ रहे हैं। जब तक हम तंबाकू पर पूरी तरह रोक नहीं लगा पाते, तब तक कैंसर दिवस की औपचारिकता को पूरी नहीं कर पाएंगे, क्योंकि तंबाकू के सेवन से न सिर्फ कैंसर बल्कि दूसरी बीमारियों से देश का युवा बीमार हो रहा है। देखा जाए, तो तंबाकू की लत बहुत पुरानी है, लेकिन कुछ सालों पहले तक यह बुजुर्गो अथवा बड़ी उम्र के पुरुषों तक ही सीमित थी, मगर चिंताजनक तथ्य सामने आया है कि अब तंबाकू उम्र नहीं देख रही है और युवा भी उसके दुष्परिणामों को जानते हुए भी अनजान हैं।
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद् यानी आईसीएमआर द्वारा कराए गए शोध में यह बात सामने आई कि तंबाकू का सेवन युवाओं के दिल का सबसे बड़ा दुश्मन बनता जा रहा है। तकरीबन 40 फीसदी युवाओं में हार्ट संबंधी परेशानियों का बड़ा कारण तंबाकू का सेवन ही बताया गया है। देश में हर साल करीब 30 लाख लोग हार्ट अटैक से पीड़ित होते हैं। एम्स के कार्डियोलॉजी विभाग के प्रो. डॉ. अंबुज रॉय के अनुसार पश्चिमी देशों की तुलना में भारत के लोग 10 साल पहले दिल की बीमारियों से पीड़ित हो जाते हैं। पहले पश्चिमी देशों में भी हालत बदतर थे मगर बीमारियों की रोकथाम के उपायों तथा चिकित्सा सेवाओं को बेहतर कर हार्ट अटैक के मामलों में कमी लाने में सफलता पाई गई है। गौरतलब है तंबाकू सेवन से देशभर में 28 सौ लोगों की मौत रोज हो रही है। वहीं दुनिया में हर छह सेकंड में एक व्यक्ति की मौत तंबाकू से होती है। इसे विडंबना ही कहिए कि देश में हर साल कैंसर के 11 लाख नए मरीज पैदा हो रहे हैं। इसमें अकेले ढाई से तीन लाख मुंह और गले के कैंसर से पीड़ित होते हैं। वॉयस ऑफ टोबैको विक्टिम्स की राजस्थान यूनिट तथा सवाई मानसिंह अस्पताल के डॉक्टरों द्वारा किए गए शोध में यह बात सामने आई कि सिगरेट तथा बीड़ी में चार हजार तरह के कैमिकल होते हैं इनमें 60 कैमिकल ऐसे होते हैं जो सीधे कैंसर जैसी बीमारियों को बढ़ावा देते हैं। कहा तो यहां तक जाता है कि 2015 में भारत में 8.8 बिलियन सिगरेट बेची गई। विश्व बैंक के मुताबिक, हर जगह सिगरेट का खुदरा मूल्य 65 फीसदी से 80 फीसदी के बीच है जबकि भारत में सिगरेट पर 38 फीसदी टैक्स लगाया गया है तथा बीड़ी के खुदरा मूल्य पर करीब नौ फीसदी तक का टैक्स है। दुनियाभर में तंबाकू के इन उत्पादों पर ज्यादा टैक्स होने के कारण इसके उपयोग में कमी देखी गई। चिंता की बात यह भी है कि एक सिगरेट जीवन के पांच मिनट कम कर करती है।
यह बात हर कोई जानता है कि धूम्रपान और तंबाकू से कई तरह के कैंसर होते हैं, लेकिन यह बात भी सही है कि धूम्रपान आपके शरीर के हर अंग में कोई न कोई समस्या पैदा करता है। टीबी, डायबिटीज, हृदय रोग, गठिया, यौन अनिच्छा, बांझपन, मानसिक आघात, अंधेपन से जुड़ी समस्याएं, दांतों तथा मुंह के रोगों का कारण तंबाकू की भी लत है। भारत में 15 साल और उससे अधिक उम्र की करीब सात करोड़ महिलाएं तंबाकू चबाती हैं। कहा जाता है कि इसकी एक अहम वजह मेहनत करने वाले काम के दौरान भूख को दबाने की इच्छा है। एक अनुमान के अनुसार, हर साल पुरुषों में करीब 85 हजार मामले सामने आते हैं, जिसमें 90 फीसदी मामलों में किसी न किसी रूप में तंबाकू का इस्तेमाल है। तंबाकू सेवन का प्रभाव सिर्फ सेवन करने वाले तक सीमित नहीं होता। वलेंटरी हेल्थ एसोसिएशन ऑफ इंडिया नामक संस्था की एक रिपोर्ट बताती है कि किसान, बीड़ी बनाने वाले मजदूर, तेंदूपत्ता तोड़ने वाले गरीब लोग अनजाने में ही बीमारियों से घिर जाते हैं। तंबाकू के पौधे को छूने से किसान तथा उनके परिवार लगातार निकोटिन के संपर्क में रहते हैं। तंबाकू उत्पाद बनाने वाले ज्यादातर मजदूर औरतें और बच्चे ही होते हैं जो तंबाकू के पत्तों से बनी धूल से भरे कारखानों में काम करने की वजह से गंभीर सांस की बीमारियों से ग्रसित हो जाते हैं।
ज्यादातर लोग तंबाकू के पाउच, डिब्बे, सिगरेट के बड्स कहीं भी फेंक देते हैं, जिससे बड़ी मात्र में धरती और भूजल प्रदूषित हो रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने कार्यक्रम ‘मन की बात’ में युवाओं से अपील की थी कि नशा समाज और अवाम दोनों के लिए एक अभिशाप है। इससे विनाश के सिवा कुछ नहीं मिलता। हर अभिभावक का यह कर्तव्य है कि वे अपने बच्चों को संवारने के लिए उनकी गतिविधियों पर पूरी तरह से नजर रखें। बच्चों में किसी भी बदलाव को नजरअंदाज नहीं करें। दिनों दिन तंबाकू का सेवन करने वाले युवाओं की संख्या बढ़ती जा रही है और उसका सबसे बड़ा कारण है अपने हम उम्र दोस्तों के बीच अपना प्रभाव बनाने की चाहत। कई बार इस आदत के शिकार लोगों का मानना होता है कि उनके पूर्वजों ने भी लंबा जीवन व्यतीत किया, जबकि वे सिगरेट के आदी थे। कुछ का मानना होता है कि समाज में अधिकांश लोग ऐसा करते हैं और फिर यही चलन भी है। जाहिर है ऐसी सोच लोगों को इन बुरी लतों को बनाए रखने के लिए भी प्रेरित करती है। भारत में लगभग हर शहर में दर्जनों नशामुक्ति एवं पुनर्वास केंद्र हैं, जहां हर तरह के मादक पदार्थो की लत से मुक्ति दिलाकर समाज में पीड़ित लोगों को सम्मानजनक जिंदगी जीने के लायक बनाने का प्रयास किया जाता है। कई सप्ताह के इलाज एवं मनोचिकित्सा के बाद पीड़ित लोग इस उम्मीद के साथ घर लौटते हैं कि यह लत उन्हें दोबारा नहीं लगेगी।
एक रिसर्च के मुताबिक, अमेरिका में नशे की लत का इलाज जरूरतमंद लोगों में से 10.3 फीसदी को ही मिल पाता है। किर्गिस्तान शहर का एक डॉक्टर नशा छुड़ाने के लिए एक इंजेक्शन लगाता है, जिससे मरीज कई घंटों के लिए कोमा जैसी अवस्था में चला जाता है। ऐसा कहा जाता है कि जब वे दोबारा जागते हैं तो नशे की लत छूट चुकी होती है। कई विशेषज्ञ इसे खतरनाक तकनीक बताते हैं। चीन में नशेड़ियों का जेल में इलाज होता है। अफगानिस्तान में नशेड़ियों को जंजीरों से बांधकर रखा जाता है तथा खाने में पानी, रोटी एवं काली मिर्च दी जाती है। रियो वेजनेरो में आध्यात्मिक तरीकों से लत छुड़ाई जाती है। केंद्र के बाहर नशेड़ी सुबह ही प्रार्थना के लिए इकट्ठा होते हैं। चर्च के पास ही रहने की व्यवस्था भी रहती है। नशे की लत से छुटकारा पाने के इच्छुक लोग बौद्ध भिक्षुओं के बीच रहते हैं। वे सीखते हैं कि शरीर को हानिकारक तत्वों से कैसे मुक्त किया जाए।
वैसे, इस तरह के उपाय भारत में भी किए जा रहे हैं, लेकिन जब तक खुद में इच्छाशक्ति नहीं होगी, तब तक कोई भी उपाय कारगर नहीं हो सकता। भारत जैसे देश में तंबाकू की लत से युवाओं को दूर रखने के लिए सरकार काम कर रही है, समाज भी अपनी जिम्मेदारी समझे।

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