200 का नोट बढ़ाएगा नकदी का प्रवाह, बैंकों की दिक्कतें भी काफी हद तक दूर



आठ अगस्त को नोटबंदी के नौ माह पूरे हो गए। आज बड़े मूल्य वर्ग के चलन से बाहर की गईं मुद्राओं के बदले छापी गई नई मुद्राएं 84 प्रतिशत ही चलन में है, जबकि नोटबंदी के पहले बड़े मूल्य वर्ग यथा एक हजार और 500 की मुद्राएं 86 प्रतिशत चलन में थीं। फिलवक्त, चलन में मुद्राओं का सिर्फ 5.4 प्रतिशत ही बैंकों के पास उपलब्ध है, जबकि नवंबर-2016 में बैंकों के पास 23.2 प्रतिशत तक मुद्राएं उपलब्ध थीं। नोटबंदी के बाद बैंकों में नकदी की उपलब्धता उसकी निकासी पर बंदिश होने के कारण अधिक थी, लेकिन धीरे-धीरे इसके स्तर में कमी आई। 25 नवंबर-2016 को बैंकों के पास नकदी की उपलब्धता 23.19 प्रतिशत थी, जो 23 जून-2017 को घटकर 5.4 प्रतिशत रह गई, जो यह बताता है कि अब आम आदमी छोटे मूल्य वर्ग की नकदी का संग्रह ज्यादा कर रहा है। मार्च-2016 में आई रिजर्व बैंक की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, 500 मूल्य वर्ग की मुद्राओं की संख्या 16 अरब थी और एक हजार मूल्य वर्ग की मुद्राओं की संख्या छह अरब। यह कुल मुद्राओं की संख्या का क्रमश: 48 और 38 प्रतिशत था, जबकि 100 मूल्य वर्ग की मुद्राओं की संख्या 16 अरब थी, जो कुल मुद्राओं के मूल्य का 10 प्रतिशत था। बचा हुआ चार प्रतिशत 50 मूल्यवर्ग की मुद्राओं का था, जिनकी संख्या 53 अरब थी।
रिजर्व बैंक की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, रिजर्व बैंक ने वित्त वर्ष 2017 के लिए 24.55 अरब विविध मूल्य वर्ग की मुद्राओं की छपाई हेतु मांग पत्र जारी किया था, जिसमें एक हजार मूल्यवर्ग की मुद्राओं की संख्या 2.2 अरब, 500 मूल्य वर्ग की मुद्राओं की संख्या 5.175 अरब, 100 मूल्य वर्ग की मुद्राओं की संख्या 5.5 अरब, 50 मूल्य वर्ग की मुद्राओं की संख्या 2.125 अरब, 20 मूल्य वर्ग की मुद्राओं की संख्या छह अरब और 10 मूल्यवर्ग की मुद्राओं की संख्या तीन अरब थी। ऐसा लगता है कि नोट छापने वाले प्रिंटिंग प्रेस ने इस मांग की आपूर्ति कर दी थी। साथ ही छोटे मूल्य वर्ग की मुद्राओं की बढ़ी हुई मांग की भी आपूर्ति कर दी थी। इसलिए, मौजूदा समय में वृद्धिशील 37 अरब छोटे मूल्य वर्ग की मुद्रा, जो कुल मुद्रा का 28 प्रतिशत है, चलन में है, जो कि पूर्व में 14 प्रतिशत था। बची हुई मुद्राओं को 500 और दो हजार के मूल्य वर्ग में बांटा जा सकता है, जो 72 प्रतिशत है। यदि देखा जाए, तो नोटबंदी के बाद छोटे मूल्य वर्ग की मुद्राओं के जरिए आमजन की जरूरतों को पूरा किया जा रहा है, जिसका फायदा नकदी विहीन लेनदेन की संकल्पना को मिल रहा है।
हालांकि, इस संबंध में दो कारणों से समस्याएं आ रही हैं। पहला, छोटे मूल्य वर्ग की मुद्राओं की संख्या बढ़ने के बावजूद भी 500 मूल्य वर्ग के बाद सीधा दो हजार मूल्य वर्ग की मुद्रा होने के कारण मुद्राओं की अदला-बदली में काफी मुश्किलें आ रही हैं। दूसरा, दो हजार मूल्य वर्ग की मुद्रा से अदला-बदली में होने वाली परेशानी के कारण लोग छोटे मूल्य वर्ग की मुद्राओं का संग्रह कर रहे हैं, जिसके कारण 200 मूल्य वर्ग की मुद्रा छापने का मांग पत्र नोट प्रिंटिंग प्रेस को दिया गया है। एटीएम मशीन से एक समय में 10 हजार मुद्राएं निकालने की क्षमता होती है। यदि एटीएम में सिर्फ 100 मूल्य वर्ग की मुद्रा को रखा जाए, तो एटीएम में मुद्रा भरने की लागत भी बढ़ जाएगी। फिलहाल, अदला-बदली में होने वाली परेशानी के कारण एटीएम से दो हजार मूल्य वर्ग की मुद्रा की निकासी से लोग परहेज कर रहे हैं, जबकि छोटे मूल्य वर्ग की मुद्राओं की कम उपलब्धता के कारण बैंक इसे एटीएम में नहीं डाल पा रहे हैं। परिपाटी के अनुसार, चलन में नकदी का 3.8 प्रतिशत ही बैंक के पास रहता है, जबकि अभी यह 5.4 प्रतिशत है। इसका यह अर्थ हुआ कि 1.6 प्रतिशत की अतिरिक्त राशि या 25 हजार करोड़ रुपए एटीएम में बेकार पड़े हैं। नोटबंदी से मुद्रा की रफ्तार धीमी पड़ गई है। वित्त वर्ष 1960 में मुद्रा की रफ्तार 8.8 थी, जो वित्त वर्ष 2000 तक दो अंकों में बनी रही, लेकिन उसके बाद यह लगातार एक अंक में बनी रही। अगर इसे मासिक आय की रफ्तार से जोड़कर देखा जाए, तो वित्त वर्ष 2017 की पहली छमाही में यह एक अंक में थी, लेकिन वित्त वर्ष 2017 की तीसरी तिमाही, जो कि नोटबंदी का दौर था, में यह दो अंकों में चली गई। इसका सीधा अर्थ हुआ कि बैंकिंग प्रणाली में नकदी की उपलब्धता बनी हुई है। नोटबंदी की अवधि में बैंकों में अभूतपूर्व तरीके से नकदी जमा हुई, जो वर्तमान में सरकारी प्रतिभूतियों के रूप में रखी हुई है।
नकदी के इस्तेमाल में कमी आने से विविध वस्तुओं की मांग में कमी आई है। महंगाई भी रिजर्व बैंक के लक्ष्य से कम है। बहरहाल, बैंकिंग प्रणाली में मौजूद सस्ती पूंजी को स्थायी माना जा सकता है, जिससे कर्ज दर में कटौती की जा सकती है। लोन के सस्ता होने से कोपरेरेट्स कर्ज लेंगे, जिससे औद्योगिक कार्यकलापों में इजाफा, रोजगार सृजन, विविध उत्पादों की मांग में तेजी, विकास को गति मिलना संभव हो सकेगा। छोटे मूल्यवर्ग की मुद्राओं की किल्लत की वजह से फिलहाल कुछ समस्याएं हैं, लेकिन 200 मूल्य वर्ग की मुद्रा के बाजार में आने के बाद इनका भी समाधान हो जाएगा।

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