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Showing posts from April, 2018

इन दंगों पर क्या कहें क्या न कहें

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राजएक्सप्रेस,भोपाल। रामवनमी के जुलूस के बाद बंगाल, बिहार समेत कई राज्यों में हुए दंगे सरकारों की विफलता से ज्यादा स्थानीय लोगों की सोच पर सवाल उठा रहे हैं। किसी जुलूस या आयोजन में दंगा करने वालों की संख्या बेहद कम होती है, फिर भी उनके कृत्यों को बड़ा जनमानस मिल जाता है। हम यह क्यों नहीं सोचते कि कुछ लोगों की कुरूप मानसिकता ने पूरे समाज को किस हद तक गुलाम बना लिया है और हम हर हुक्म बजा रहे हैं। दंगे जब भी होते हैं उसका दुष्परिणाम (Bad Effects of Riots) हमेशा आम आदमी को भुगतना पड़ता है। दंगे जब भी होते हैं उसका दुष्परिणाम हमेशा आम आदमी को भुगतना पड़ता है। दंगे के समय ऐसा उत्तेजक माहौल बन जाता है कि कल तक बिल्कुल निश्चछल दिखने वाला इंसान भी कुछ समय के लिए इंसान नहीं रहता। उसके अंदर ऐसा सांप्रदायिक उन्माद पैदा हो जाता है कि वह क्रूर से क्रूर काम कर बैठता है। दंगे रुकने के बाद भी समुदायों के बीच विभाजन की ऐसी खाई पैदा हो जाती है, जिसको भरना आसान नहीं होता। इस समय बिहार और प. बंगाल में जो कुछ भी हो रहा है उससे हर संवेदनशील भारतीय चिंतित है। दुर्भाग्य से हमारी राजनीति राजनीतिक लाभ के

सीरिया को नर्क से मुक्ति की जरूरत

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राजएक्सप्रेस,भोपाल। सीरिया में विद्रोहियों के कब्जे वाले दौमा शहर में हुए रासायनिक हमले (Syria Chemical Attack)में 180 लोगों की मौत ने दुनिया का ध्यान खींचा है। सीरिया में इससे पहले भी रासायनिक हमला हो चुका है। अत: हर देश की जिम्मेदारी बनती है कि वह सीरिया के लोगों को नर्क से मुक्ति दिलाए। करीब एक दशक से गृहयुद्ध की मार झेल रहे सीरिया में हुए रासायनिक हमले (Syria Chemical Attack) ने सीरिया के लोगों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। महाशक्तियों की महत्वाकांक्षाओं के बीच सैंडविच बना सीरिया इस सदी की सबसे बड़ी मानवीय त्रसदी झेल रहा है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, करीब पचास लाख लोग देश छोड़कर जा चुके हैं और साठ लाख बेघर हुए हैं। ऐसे में सीरिया में विद्रोहियों के कब्जे वाले दौमा शहर में संदिग्ध रासायनिक हमले में करीब 180 लोगों की मौत ने पूरी दुनिया का ध्यान खींचा है। मगर जिस तेजी से इस घटनाक्रम पर अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र से प्रतिक्रिया आई है, उसे देखकर कयास लगाए जा रहे हैं कि अमेरिकी कार्रवाई की भूमिका तैयार हो रही है, जबकि सीरिया सरकार लगातार कहती रही है कि

कब सुरक्षित होगा रेल सफर

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राजएक्सप्रेस,भोपाल। ओडिशा राज्य के बलांगीर जिले के टिटिलागढ़ स्टेशन पर एक ट्रेन के बिना इंजन के 15 किमी तक दौड़ जाना मानवीय भूल नहीं, बल्कि अक्षम्य लापरवाही है। रेल प्रशासन ने अपने कुछ कर्मचारियों को निलंबित कर लोगों के गुस्से को शांत करने का प्रयास किया जरूर है, मगर आए दिन हो रहे हादसे, यात्रा के दौरान यात्रियों की सुरक्षा में चूक लगातार सवाल उठा रहे हैं। इन सवालों का जवाब तभी मिलेगा, जब यात्रियों का सफर भयरहित बनेगा और यह तब होगा जब कर्मचारी सोएंगे नहीं। कब सुरक्षित होगा रेल सफर (Train Travel)? रेलवे विभाग की घोर लापरवाही के चलते एक भयंकर हादसा होते-होते बचा। स्टेशन पर खड़ी बिना इंजन की ट्रेन अपने-आप चलने लगी। ढलान होने के चलते ट्रेन ने कुछ ही मिनटों में तेज गति पकड़ ली। पटरी पर दौड़ती बिना इंजन की ट्रेन को देखकर चारों ओर अफरा-तफरी का माहौल बन गया। लोग हंगामा काटने लगे। साथ ही ट्रेन में सवार सभी यात्री जोर-जोर चिल्लाने लगे। लेकिल पूरे दृश्य को रेल महकमे के अधिकारी असहाय और निष्कर्म बनकर देखते रहे। चलती ट्रेन को कोई रोके भी तो रोके कैसे। मामला ओडिशा राज्य के बलांगीर जिले के टिट

हिंदी विरोध की राजनीति

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राजएक्सप्रेस, भोपाल। Anti Hindi Politics मेघालय विधानसभा में पिछले माह बजट सत्र की शुरुआत करते हुए राज्यपाल द्वारा हिंदी में दिया गया अभिभाषण विवाद की जड़ बन गया है। राज्य में बजट सत्र हालांकि खत्म हो चुका है, मगर असंतोष अब भी बरकरार है। जो भी हो देश के एक राज्य में हिंदी के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार कतई ठीक नहीं है। हिंदी को सर्व स्वीकार्यता दिलाने में यह बड़ी बाधा है। इस बात को राजनीतिक स्तर पर बैठे उन सभी को समझनी होगी, जो अंग्रेजी का मान बढ़ाने में जुटे हैं। राजनीति की आपाधापी के बीच कुछ घटनाएं महत्वपूर्ण होते हुए भी हमारा ध्यान नहीं खींच पातीं। हाल के दिनों में ऐसी ही दो घटनाएं रहीं। जिनकी तरफ कायदे से उन लोगों का तो ध्यान जाना ही चाहिए था, जो अपनी माटी और अपनी भाषा की नींव पर ही राजनीतिक ही नहीं सांस्कृतिक विकास चाहते हैं, लेकिन दुर्भाग्यवश इन दोनों घटनाओं की तरफ ध्यान नहीं दिया गया। जबकि दोनों का रिश्ता राष्ट्रीय अस्मिता के साथ ही भारतीय सोच से जुड़ा हुआ है। पिछले माह 17 मार्च को मेघालय विधानसभा के मौजूदा बजट सत्र की शुरुआत हुई। जैसा कि संसदीय लोकतंत्र क

कुप्रथा हैं ‘बहुविवाह, ‘निकाह हलाला’

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राजएक्सप्रेस, भोपाल। पाकिस्तान, बांग्लादेश, इंडोनेशिया, तुर्की, मिस्र, जॉर्डन, इराक, ईरान, ट्यूनीशिया, मलेशिया और अल्जीरिया जैसे मुस्लिम आबादी बाहुल्य देशों में धर्मनिरपेक्ष पारिवारिक कानून हैं, जो सभी पर अमल में आते हैं, लेकिन भारत में आज भी यह लागू हैं। कई मुसलिम देशों में ‘बहुविवाह’ प्रथा को नियंत्रित किया गया है या बिल्कुल खत्म कर दिया है। तुर्की और ट्यूनीशिया में ‘बहुविवाह’को गैरकानूनी (Polygamy Nikah Halala)करार दिया गया है। मुस्लिम समाज में प्रचलित ‘बहुविवाह’ और ‘निकाह हलाला’ (Polygamy Nikah Halala) की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अब संविधान पीठ विचार करेगी। सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में इस मुद्दे पर सुनवाई के लिए पांच सदस्यीय संविधान पीठ का गठन करने का ऐलान किया है। मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्र की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने समानता के अधिकार का हनन और लैंगिक न्याय समेत कई बिंदुओं पर दायर जनहित याचिकाओं पर विचार करते हुए केंद्र सरकार और विधि आयोग को भी नोटिस जारी कर उनसे इस संबंध में जवाब मांगा है। इससे पहले पिछले साल अगस्त में पांच सदस्यीय संविधान पीठ के

इंजीनियरिंग का कबाड़ा क्यों?

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राजएक्सप्रेस, भोपाल। छात्रों की अरुचि के चलते देशभर के दो सौ से ज्यादा इंजीनियरिंग कॉलेजो ने खुद को बंद करने का आवेदन दिया है (Engineering Colleges Shut Down)। सवाल यह है कि ऐसी नौबत क्यों आई? क्या सिर्फ कॉलेजों को दोष देने से समस्या हल हो जाएगी बिल्कुल नहीं। इसके लिए सिस्टम भी जिम्मेदार है। एक समय था जब इंजीनियरिंग पढ़ने वाले छात्रों की संख्या काफी ज्यादा थी। वहीं अब इंजीनियरिंग में एडमिशन लेने वाले छात्रों की संख्या में कमी आई है। कमी की वजह छात्रों की दिलचस्पी बताई जा रही है, जो धीरे-धीरे खत्म हो रही है, जिसकी वजह से 200 इंजीनियरिंग कॉलेज को बंद करने का फैसला लिया जा रहा है। ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन के अनुसार करीब 200 इंजीनियरिंग कॉलेजों ने बंद करने के लिए आवेदन दिए हैं (Engineering colleges to shut down), जिसके बाद दूसरे और तीसरे दर्जे के ये इंजीनियरिंग कॉलेज अब किसी भी छात्र को एडमिशन नहीं दे सकते। देखा जाए, तो 200 कॉलेज के बंद हो जाने के बाद इंजीनियरिंग की सीटों में भी गिरावट आएगी। इस साल करीब 80 हजार सीटों में गिरावट आ सकती है। अनुमान है औ

नेपाल से सख्ती से पेश आए भारत

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राजएक्सप्रेस, भोपाल। नेपाल (Nepal)के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली (PM Khadga Prasad Sharma Oli)भारत की तीन दिन की यात्रा पर आ चुके हैं। इस दौरान उनके साथ कई अहम बिंदुओं पर बात होगी। इस दौरान चीन का मुद्दा भी उठेगा। नेपाल में वह प्रभाव बढ़ाने की कोशिश में जुटा है, जो भारत के लिए चिंता का सबब है। नेपाल में कम्युनिस्ट शासन के सत्तारूढ़ होने के साथ भारत विरोधी अभियान एक बार फिर तेज हो गया है। इस अभियान की जिम्मेदारी सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी की ईकाई ने ली है। भारत में नेपाल विरोधी अभियान के बीच प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली एक प्रतिनिधिमंडल के साथ भारत आ चुके हैं। पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आए ओली की यह पहली भारत यात्रा है। हालांकि, वे इससे पूर्व अपनी ही सरकार के कार्यकाल में एक बार भारत आ चुके हैं। नेपाल के प्रधानमंत्री ओली की छवि भारत विरोधी है। यह अब छिपी बात नहीं है। सच तो यह है चुनाव के दौरान उन्होंने पहाड़ी क्षेत्रों में खुलकर भारत विरोध का कार्ड खेला और जिसका उन्हें फायदा भी मिला। वहीं नेपाली कांग्रेस को हिंदू राष्ट्र का राग अलापने का खासा नुकसान उठाना पड़ा। भारत परस्त मा

ममता की पैंतरेबाजी से खतरे में कौन?

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राजएक्सप्रेस, भोपाल। रामनवमी के जुलूस के बाद बंगाल में भड़की हिंसा के बीच मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (Mamata Banerjee Strategy) दिल्ली में आकर विपक्ष को मोदी सरकार के खिलाफ गोलबंद करने में जुटी थी। उनकी मंशा अगले साल होने जा रहे लोकसभा चुनाव में मोदी को हराने की ज्यादा है, राज्य की भलाई की कम। विपक्ष की धुरी बनने का प्रयास कर रहीं ममता बनर्जी को दूसरे दलों का साथ कितना मिल पाएगा, यह भविष्य तय करेगा, मगर उन्होंने अपनी महत्वाकांक्षा जरूर स्पष्ट कर दी है। 13 मार्च को कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी के रात्रिभोज में जुटे नेताओं की फोटो उन लोगों के लिए उम्मीदों का सबब बनकर आई थी, जो अगले आम चुनाव में देश में बदलाव की उम्मीद पाले हुए हैं, लेकिन उनके बदलाव का चेहरा राहुल गांधी हैं। ऐसा सोचने वालों की उम्मीदों पर एक पखवाड़े बाद ही ममता बनर्जी  ‘नजर’  लगाती दिखीं। वाम मोर्चे के गढ़ के दिनों में पश्चिम बंगाल की शेरनी कही जाने वालीं ममता बनर्जी ने दिल्ली आकर जिस तरह विपक्षी नेताओं से ताबड़तोड़ मुलाकातें कीं, उससे मोदी विरोध को चाहे जितनी हवा और ताकत मिले, यह तय है कि इससे राहुल गांधी

वन्यजीव कानून को मिली नई ताकत

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राजएक्सप्रेस, भोपाल। काला हिरण शिकार मामले (Black Buck Case) में फिल्म अभिनेता सलमान खान (Salman Khan) को सुनाई गई सजा से स्वाभाविक ही यह संदेश गया है कि कानून से ऊपर कोई नहीं है। हमारे देश में काफी अरसे से यह आम धारणा रही है कि अगर आरोपी धनी और ताकतवर या पहुंच वाले हों, तो वे प्राय: बच निकलते हैं। इसीलिए सलमान खान के प्रशंसकों को ही नहीं, बहुत-से अन्य लोगों को भी लगता था कि वे शायद बरी हो जाएंगे। मगर अब न्याय तंत्र की सख्ती ने रसूखदारों को उनकी हद बता दी है। अतीत के अपराध क्षम्य नहीं होते, फिर चाहे व्यक्ति कितनी ही बड़ी पहुंच का क्यों न हो? इस बात का अहसास अदालत ने अभिनेता सलमान खान को पांच साल की सजा देकर करा दिया है। कुछ साल पहले इंसानी अपराध में तो सलमान खान कोर्ट से बच निकले थे, लेकिन एक जीव के अपराध ने पर्दे के टाइगर को कारागार की हवा खिला दी। अभिनेता सलमान की सजा के गर्भ से दो अच्छे सामाजिक संदेश बाहर निकलकर आए हैं। पहला, वन्यजीवों को नुकसान पहुंचाने वालों में भय पैदा हुआ होगा, तो दूसरा न्याय व्यवस्था में जनमानस की आस्था बढ़ेगी। अब सलमान खान की सजा का डर उन रसूखदार लोग

सस्ते कर्ज की राह फिर हुई कठिन

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राजएक्सप्रेस,भोपाल। (RBI Bi-Monthly Monetary Review) रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया एक बार फिर से आम आदमी को मायूस करते हुए ब्याज दरों में कोई बदलाव नहीं किया है। अब केंद्र सरकार व शीर्ष बैंक दोनों की जिम्मेदारी बनती है कि वे अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाएं, ताकि आम आदमी को राहत मिले। जो अनुमान लगाया गया था, वह सही साबित हुआ। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) ने गुरुवार को एक बार फिर से आम आदमी को मायूस करते हुए ब्याज दरों में कोई बदलाव नहीं किया है। रिजर्व बैंक की बैठक में एक के मुकाबले पांच वोट से ब्याज दरों को यथावत रखने के फैसले को मंजूर कर लिया गया। हालांकि, एक तरफ जहां पूरे देश की इस पर नजर थी, वहीं जानकारों का मानना था कि नीतिगत दरों में बदलाव की गुंजाइश कम है। उर्जित पटेल के नेतृत्व में हुई नए वित्त वर्ष 2018-19 की इस पहली द्विमासिक मौद्रिक समीक्षा बैठक में आरबीआई के इस फैसले के बाद रेपो रेट जहां छह प्रतिशत पर बनी रहेगी, वहीं रिवर्स रेपो रेट 5.75 प्रतिशत पर बनी रहेगी। रिजर्व बैंक ने मौजूदा वित्त वर्ष में महंगाई दर का अनुमान घटाकर 4.7 फीसदी से 5.1 फीसदी कर दिया है। पहले महंगाई दर 5.1 फी

अलगाववादियों की फिक्र न करे सेना

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राजएक्सप्रेस,भोपाल। पिछले दिनों घाटी के अनंतनाग और शोपियां में सुरक्षा बलों (Military Forces) की कार्रवाई में ढेर किए गए 13 आतंकियों की मौत पर अलगाववादी (Separatist) एक बार फिर मातम मनाते नजर आए। उन्होंने घाटी के युवाओं को बरगलाने के साथ ही सेना को भी खूब बुरा-भला कहा। मगर सरकार की प्राथमिकता है कश्मीर को आतंकवाद, और बंदूकों से पूरी तरह मुक्त कराना। इससे अलगाववादी नेताओं को तकलीफ होती है तो होती रहे। यह उनका मसला है। जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा बलों को बड़ी कामयाबी हाथ लगी है। घाटी के अनंतनाग में एक और शोपियां में दो मुठभेड़ों में सुरक्षा बलों ने 13 आतंकवादियों को मार गिराया, जबकि एक को जिंदा गिरफ्तार कर लिया। गिरफ्तार आतंकवादी हिज्बुल मुजाहिदीन गुट का बताया जा रहा है। सुरक्षा बलों को अनंतनाग और शोपियां में आतंकवादियों के छिपे होने की सूचना मिली थी। इसके बाद सेना, सीआरपीएफ और जम्मू-कश्मीर पुलिस ने तलाशी अभियान शुरू किया। शोपियां की कार्रवाई में हिज्बुल का कमांडर जीनत-उल-इस्लाम भी मारा गया है। मारे गए आतंकवादियों के पास से भारी मात्रा में हथियार बरामद किया गया है और पाकिस्तान से

आतंक के विरुद्ध एकजुट होते मुस्लिम

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राजएक्सप्रेस,भोपाल। आतंकवाद को लेकर लगातार बदनाम किए जा रहे मुस्लिम समाज ने अब खुद को साबित करने का उपक्रम शुरू किया है (Muslim Society against Terrorism)। कुछ दिनों पहले हैदराबाद की मक्का मस्जिद में ईरान के राष्ट्रपति के साथ शिया और सुन्नी संप्रदाय के लोगों द्वारा नमाज अदा करने के बाद अब लखनऊ में यह दोहराया गया। शिया और सुन्नी में चल रहे विवाद का फायदा उठाकर ही आतंकी संगठन मुस्लिमों को बांटने का प्रयास करते रहे हैं, पर अब दोनों समुदाय एकजुटता की राह पर चलने को तैयार हैं। इंडोनेशिया तथा पाकिस्तान के बाद भारत पूरी दुनिया में मुस्लिम जनसंख्या वाला तीसरा सबसे बड़ा देश है। दुनिया में आतंकवाद का व्यापार चलाने वाले कई अंतरराष्ट्रीय संगठनों की बुरी नजरें भारत की ओर भी पड़ती रहती हैं। यह शक्तियां कभी छह दिसंबर 1992 के बाबरी मस्जिद विध्वंस की याद दिलाकर, कभी कश्मीर में आतंकवादियों के विरुद्ध हो रही सैन्य कार्रवाई के नाम पर तो कभी साल 2002 के गुजरात दंगों पर आधारित हिंसक वीडियो दिखाकर भारतीय मुसलमानों को बरगलाने की कोशिश में लगी रहती हैं। कभी-कभी ऐसे समाचार भी सुनने को मिलते हैं, कि आत

हिंसा के बीच गुम हो गए असल मुद्दे

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राजएक्सप्रेस,भोपाल। एससी/एसटी एक्ट में बदलाव (Changes in SC/ST Act)के बाद देशभर में हुई हिंसा दलित समुदाय के हित की रक्षा से कहीं ज्यादा पुट सियासी फायदा उठाना भी रहा है। अगले माह कर्नाटक सहित इस साल देश के तीन बड़े राज्यों में चुनाव होना है। भाजपा और कांग्रेस समेत सभी दल दलितों को साधने का उपक्रम करेंगे, मगर दलितों को वोट बैंक बनाकर रखने की मंशा ने उनके असल मुद्दों को हाशिए पर डाल दिया है। यही वजह है कि वे हिंसक हो रहे हैं। माहौल चुनावी हो, उसके ऐन पहले व्यापक समुदाय के मानस पर असर डालने वाली घटना हो जाए तो उसका राजनीतिक फायदा उठाने की कोशिश न हो, मौजूदा हालात में ऐसा संभव नहीं। एससी-एसटी एक्ट में बदलाव को लेकर 16 मार्च को आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ दो अप्रैल के भारत बंद में दलित समुदाय के हित की रक्षा से कहीं ज्यादा पुट सियासी फायदा उठाना भी रहा है। कर्नाटक में 12 मई को विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। राज्य के करीब 23 फीसद वोटर दलित समुदाय से आते हैं। जाहिर है कि उनके एकजुट होने का फायदा उस राजनीतिक दल को मिलेगा, जिसका वे समर्थन करेंगे। फिर उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश औ