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Showing posts from January, 2018

देश व समाज में बेटियों के प्रति हो रहे दोगलेपन को खत्म करना होगा, बेटियों के प्रति सोच बदलें हम

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बजट से पहले पेश होने वाले आर्थिक सर्वेक्षण में पहली बार लड़का और लड़की में भेद करने के सामाजिक पहलू को उजागर किया गया है। सर्वे में कहा गया है कि एक परिवार तब तक संतान पैदा करता रहता है, जब तक उसके यहां बेटा नहीं हो जाता। लेकिन यह सोच देश पर कितनी भारी पड़ रही है, इसका अंदाजा किसी को नहीं है। एक अदद लड़के की चाहत में देश में 2.1 करोड़ ‘अनचाही’ लड़कियां पैदा हुईं। आर्थिक सर्वेक्षण 2017-18 में यह बात कही गई है। सर्वे के अनुसार यह अनुमानित आंकड़ा उन लड़कियों का है, जो बेटे की चाह के बावजूद पैदा हुई हैं या जब अभिभावकों ने अपनी इच्छा के अनुसार बेटों की संख्या होने पर बच्चा पैदा नहीं करना चाहा था। यही नहीं 6.3 करोड़ गायब बेटियों का आंकड़ा भी सर्वे में दिया गया है। कहने का अर्थ यह है कि गर्भ में बेटी होने के कारण 6.3 करोड़ भ्रूणों की हत्या हुई। हर साल लगभग 20 लाख ऐसी बेटियां गायब हो जाती हैं। बेटों की चाह में बेटियों से हो रहा दोगलापन ही देश और समाज को आगे बढ़ाने में बाधक है, जबकि आज बेटियों को प्रोत्साहन देने की जरूरत है। बेटियां आज हर क्षेत्र में बेटों के मुकाबले डटी हैं। सेना हो

बजट सत्र के पहले दिन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने आर्थिक सर्वेक्षण पेश किया, बेहतरी के साथ ही महंगाई की आहट

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अपने चौथे व आखिरी पूर्णकालिक बजट से पहले पेश आर्थिक समीक्षा में केंद्र सरकार ने जीएसटी के असर और कच्चे तेल के दाम में बढ़ोतरी के बाबत महंगाई बढ़ने की तरफ इशारा किया है। सोमवार को वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 2018 का आर्थिक सर्वे संसद में पेश किया। इस आर्थिक सर्वे में जीएसटी के असर से लेकर भारतीयों में लड़के की चाहत से जुड़े 10 नए आर्थिक तथ्यों की ओर ध्यान आकर्षित किया गया है। समीक्षा में सरकार ने माना है कि वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) ने भारतीय अर्थव्यवस्था को एक नया आयाम दिया है। इसके नए आंकड़े उभर कर सामने आए हैं। अप्रत्यक्ष करदाताओं की संख्या में 50 फीसदी का इजाफा हुआ है। नई कर प्रणाली अपनाने से प्रमुख उत्पादक राज्यों के कर संग्रह में कमी आने की आशंका भी निराधार साबित हुई है। ऐसा इसलिए क्योंकि अब राज्यों के बीच जीएसटी आधार के वितरण को उनकी अर्थव्यवस्थाओं के आकार से जोड़ दिया गया है। इसी तरह नवंबर 2016 यानी नोटबंदी से लेकर अब तक व्यक्तिगत आयकर रिटर्न दाखिल करने वालों की संख्या में 18 लाख की वृद्धि दर्ज की गई है। इस समीक्षा रिपोर्ट में नोटबंदी का जिक्र कहीं नहीं है। ऐसे में यह

भारत भले ही10 सबसे असुरक्षित देशों की सूची में शामिल न हो, लेकिन देश में सुरक्षित माहौल बड़ी चुनौती

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ग्लोबल ट्रैवल एंड टूरिज्म ने हाल ही में असुरक्षित देशों की रैंकिंग जारी की है। असुरक्षित देशों की इस सूची में भारत का 13वां स्थान है। हालांकि, भारत असुरक्षित देशों की टॉप-10 सूची में तो शामिल नहीं है, लेकिन 13वां स्थान भी कम डराने वाला नहीं है। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि देश में किस तेजी से अपराध बढ़ रहे हैं और यहां कोई भी सुरक्षित नहीं है। यदि हम बात बच्चों की ही करें, तो पिछले कुछ वर्षो से बच्चों के प्रति अपराधों में बड़ी तेजी से वृद्धि हुई है। बच्चों का अपहरण करने के साथ ही साथ उनके साथ जघन्य अपराध भी किए जा रहे हैं। यूं बच्चों को भगवान की सबसे बड़ी और सबसे प्यारी नेमत माना जाता है। इन मासूम बच्चों को देख हर कोई अपनी आपसी रंजिश और द्वेष को झट से त्याग देता है। बावजूद इसके भारतीय समाज में कुछ सिरफिरे लोग ऐसे भी हैं, जो बच्चों को भी शिकार बना डालते हैं। आजकल देशभर में इन मासूम बच्चों के लगातार गायब होने के बढ़ते मामले भारतीय समाज पर बड़ा सवालिया निशान लगा रहे हैं। आखिरकार देशभर में हर साल इतनी बड़ी संख्या में बच्चे कैसे गायब हो रहे हैं, वह भी चार से 15 वर्ष की उम्र के मा

समाज में अपनों से ही शर्मसार होती मानवता बेहद निराशाजनक

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Human society:  राजधानी दिल्ली में 2017 की आपराधिक गतिविधियों में पुलिस ने इसी माह जारी आंकड़ों में कहा है कि रेप के 97% मामलों में महिलाएं अपनों की ही शिकार होती है। दिल्ली ही नही यह तस्वीर सारे विश्व में देखने को मिलेगी। अपनों से मतलब साफ है कि या तो रिश्तेदार या जान-पहचान वाले या फिर दोस्त। रेप के मामलों में ले देकर यही निकल के आता है कि रेप करने वाला आरोपी और रेप पीड़िता एक दूसरे को जानते हैं। जानपहचान का ही फायदा उठाते हुए यह महिलाओं को अपना आसानी से शिकार बना लेते हैं। यह दूसरी बात है कि गाहे बेगाहे निर्भया जैसे कांड अंजान लोगों द्वारा कर दिए जाते हैं और मीडिया की सुर्खियां बन जाते हैं। निर्भया जैसे कांड होते ही सरकारी, गैरसरकारी संगठन और ना जाने कौन-कौन आगे आकर झकझोरने की कोशिश में जुट जाते हैं। यहां निर्भया जैसे कांड को कमतर देखने की कतई मंशा नहीं है और इस तरह की घटनाओं की जितनी निंदा की जाए वो कम है और यह भी कि इस तरह की घटनाओं की पुनरावृति ना हो इसके लिए कठोर कदम उठाए जाने चाहिए। अखबारों में प्रतिदिन कोई ना कोई खबर रेप या छेड़छाड़ की आती ही है जो अपने आप में गंभीर व मानवत

नया साल काफी उथल-पुथल मचाने वाला होगा, रोचक होगी 2018 की राजनीति

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साल-2017 का अंत जिस राजनीतिक घटनाक्रम से हुआ है उसके असर से साल-2018 की राजनीति कतई अछूती नहीं रह सकती। आखिर 2018 के राजनीतिक घटनाओं की नींव तो वर्ष-2017 ही बनेगा। तो 2017 ने क्या संकेत दिया है? जिन दो प्रमुख राजनीतिक घटनाओं से साल 2017 का अंत हुआ है वे हैं, गुजरात एवं हिमाचल प्रदेश में भाजपा की विजय एवं कांग्रेस की पराजय। 2017 की शुरुआत में भी हमने देखा था कि पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में पंजाब को छोड़ दें तो कांग्रेस को कहीं सफलता नहीं मिली। उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड की जीत ने भाजपा का आत्मविश्वास बढ़ाया वहीं विपक्ष को हताशा में डुबा दिया। कांग्रेस उत्तर प्रदेश में केवल सात सीटों तक सिमट गई। यानी प्रदेश से उसका लगभग सफाया हो गया। प्रदेश की एक बड़ी खिलाड़ी बसपा 19 सीटों पर सिमटी। अपने बहुमत की बदौलत प्रदेश पर राज करने वाली पार्टी की ऐसी दशा वास्तव में उसका सफाया हो जाना ही है। सपा अपनी स्थापना काल से सबसे कम सीटों पर आ गई है। कहने का तात्पर्य यह कि 2017 ने विपक्ष के खेमे में निराशा तथा भाजपा में उम्मीद और उत्साह का ही संचार किया है। यहां तक कि जिस बिहार में भाजपा सत्ता

असम में एनआरसी का पहला ड्राफ्ट जारी हो गया, अब दूर होगी असम की दिक्कत

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नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस (एनआरसी) का पहला ड्राफ्ट सोमवार को जारी कर दिया गया है। इसमें असम के 3.29 करोड़ लोगों में से 1.9 करोड़ लोगों को जगह दी गई है, जिन्हें कानूनी रूप से भारत का नागरिक माना गया है। बाकी नामों का विभिन्न स्तरों पर वेरिफिकेशन कराया जा रहा है। आवेदन की प्रक्रिया मई-2015 में शुरू हुई थी, जिसमें पूरे असम के 68.27 लाख परिवारों से 6.5 करोड़ दस्तावेज आए थे। यह कदम राजनीतिक रूप से भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। दरअसल, यहां सिटिजनशिप और अवैध प्रवासियों का मुद्दा बड़ा राजनीतिक रूप ले चुका है। भाजपा के लिए एनआरसी बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसका इस्तेमाल चुनावी भाषणों के वक्त अवैध प्रवास की वजह से असम की खोने वाली पहचान को सुरक्षित रखने के नाम पर किया गया था। यह एक ऐसा पैंतरा था जो 2016 के चुनाव में जीत हासिल करने में मददगार साबित हुआ था। वहीं, सुप्रीम कोर्ट द्वारा अवैध अप्रवासियों पर रोक लगाने के लिए एनआरसी का आदेश देने पर असम के अल्पसंख्यक नागरिकता जाने के खतरे से घबराए हुए हैं। असम के अल्पसंख्यकों के इस डर की वजह उनके पंचायत प्रमाणपत्र हैं, जिसके बारे में उनकी आशंका