काला के संदेश को समझें हम
राजएक्सप्रेस, भोपाल। हर फिल्म की बनावट पर अपने समय, काल और परिस्थितियों की छाप जरूर होती है लेकिन हाल ही में आई रजनीकांत की फिल्म ‘काला’ (Rajinikanth Film Kaala) इससे आगे बढ़कर अपना सांस्कृतिक प्रतिरोध दर्ज कराती है, यह अपनी बुनावट में सदियों से अपना वर्चस्व जमाये बैठे ब्राह्मणवादी संस्कृति की जगह दलित बहुजन संस्कृति को पेश करती है और पहली बार मुख्यधारा की कोई फिल्म बहुजनों के आत्मा की बात करती है। यह फिल्म जो संदेश देना चाह रही है, उसे आत्मसात करना ही होगा। ‘पुरोहितों ने पुराणों की प्रशंसा लिखी है। कम्युनिस्टों और विवेकवादी कई लेखकों ने इन पुराणों की टीकायें लिखी हैं, लेकिन किसी ने भी यह नहीं सोचा कि हमारी भी कोई आत्मा है जिसके बारे में बात करने की जरूरत है।’ (कांचा इलैया की किताब “मैं हिन्दू क्यों नहीं हूं से) फिल्में मुख्य रूप से मनोरंजन के लिए बनायी जाती हैं लेकिन सांस्कृतिक वर्चस्व को बनाए रखने में फिल्मों की भी भूमिका से इनकार नही किया जा सकता है। हर फिल्म की बनावट पर अपने समय, काल और परिस्थितियों की छाप जरूर होती है लेकिन हाल ही में आई रजनीकांत की फिल्म ‘काला’ इससे आगे बढ