गुजरात चुनाव के दौर में विपक्षी पार्टियां, किस करवट बैठेगा ऊंट
गुजरात चुनाव वैसे तो पिछले 15 वर्षो से देश की गहरी अभिरुचि का कारण रहा है। 2002 से जब भी गुजरात चुनाव का ऐलान हुआ ऐसा लगा जैसे कोई युद्ध हो रहा हो। इस बार भी लगभग वैसी ही स्थिति है। अंतर केवल इतना है कि तब नरेंद्र मोदी मुख्यमंत्री के तौर पर विरोधियों के निशाने पर होते थे और अब वे प्रधानमंत्री के रूप में हैं। हालांकि, वहां भाजपा के अलावा सिर्फ कांग्रेस का जनाधार रहा है और अब भी वही स्थिति है। इसलिए दूसरी पार्टियों के लिए वहां करने के लिए कुछ नहीं है। बावजूद इसके ज्यादातर विरोधी पार्टियां इस समय गुजरात चुनाव में अभिरुचि ले रही है। गुजरात के बाहर भी ऐसा वातावरण बनाने की कोशिश है, जिससे संदेश यह जाए कि भाजपा की हालत खराब है और वह चुनाव हारने जा रही है। विपक्ष के नाते इस रणनीति के अपने मायने हैं। वास्तव में लोकसभा चुनाव 2019 को ध्यान में रखकर जो विपक्ष भाजपा विरोधी एकजुटता पर काम कर रहा है उसे लगता है कि अगर मोदी को उनके घर में परास्त कर दिया जाए तो फिर यह माहौल बनाने में मदद मिलेगी कि जनता मोदी सरकार के कामों से असंतुष्ट है। उससे विपक्ष के एकजुट होने की संभावना और ज्यादा बलवती ह