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Showing posts from August, 2017

मुंबई की आपदा हमारी विफलता, प्रशासन की बड़ी लापरवाही

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देश में बारिश का कहर बिहार, गुजरात, उत्तरप्रदेश से अब मुंबई तक जा पहुंचा है। सभी राज्यों में जनता बेहाल है। सरकार आपदा के सारे प्रबंध कर रही है, मगर अब तक राहत की खबर किसी राज्य से नहीं आई है। आज जो भी राज्य भारी बारिश के बाद बाढ़ के संकट से जूझ रहे हैं, वहां पहले भी इसी तरह की आपदा आ चुकी है, मगर उससे सबक सीखे बिना सरकार और प्रशासन आगे बढ़ जाते हैं। बिहार, गुजरात व उत्तरप्रदेश में बारिश के दिनों में अपना सब कुछ पानी में बहते देखना लोगों की नियति बन चुकी है। यह हालत प्राय: ग्रामीण क्षेत्रों की रहती है, मगर अब तो महानगर भी इससे बचे नहीं रह सके हैं। कभी बेंगलुरु, तो कभी चेन्नई की सड़कों को हम पानी में डूबा देख चुके हैं। अब 12 वर्षो बाद मुंबई में फिर हुई मूसलाधार बारिश ने लोगों को संकट में डाला है। जुलाई-2005 में हुई 24 घंटे से भी ज्यादा समय की मूसलाधार बारिश ने मुंबई को डुबो दिया था। अब 2017 में एक बार फिर वैसे ही हालात बने हैं। मुंबई में आया संकट भले ही प्राकृतिक आपदा हो, पर प्रशासनिक लापरवाही को खारिज करना सही नहीं होगा। सबसे अमीर महानगरपालिका बीएमसी ने यदि पिछली आपदा से सबक स

नेपाल PM शेर बहादुर देउबा का भारत आना रिश्तों में नए दौर की शुरुआत

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पड़ोसी मुल्क नेपाल में चीन की बढ़ती दखलंदाजी के बीच प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा का भारत आना रिश्तों में नए दौर की शुरुआत है। इस दौरे में दोनों तरफ से जिस तरह की गर्मजोशी दिखाई गई है, वह बताती है कि अब पुराने विवाद पीछे छूटने वाले हैं। नेपाल में नया संविधान बनने के बाद तराई क्षेत्र में सुलगते मधेशी आंदोलन के बाद नेपाल के साथ भारत के रिश्तों में काफी खटास आई थी, जिसका चीन ने खूब फायदा उठाया। उसने न सिर्फ नेपाल के साथ अपने आर्थिक संबंध बढ़ाए, बल्कि वहां की भौगोलिक परिस्थितियों में भी दखल बढ़ाने के सपने देखने लगा, जैसा उसने पाक अधिकृत कश्मीर यानी पीओके में किया है। मगर, चीन के सपनों को धता बताते हुए देउबा पीएम का पदभार ग्रहण करने के बाद पहले विदेश दौरे के तहत चार दिनी भारत यात्रा पर धर्मपत्नी सहित लगभग पूरी कैबिनेट के साथ दिल्ली आए। यह दौरा ऐसे समय पर हुआ है, जब नेपाल पर भारत की जासूसी करने का आरोप लगने लगा था। उम्मीद है कि यह दौरा दोनों देशों के वर्षो पुराने सांस्कृतिक रिश्ते को फिर से जीवित करने का प्रयास करेगा, जैसा कुछ वर्षो पहले तक होता आया है। भारत के पड़ोसी देशों में नेपा

राजनीतिक दलों ने विश्वविद्यालय में गोशाला का बेजा विरोध

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माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के बिशनखेड़ी में बनने वाले नए परिसर में गोशाला खुलने का प्रस्ताव जैसे ही सामने आया, राजनीतिक दलों समेत एक विशेष समूह ने विरोध शुरू कर दिया। मीडिया ने भी इस मसले को पूरी तरजीह दी है, लेकिन कुछेक बड़े समाचार चैनलों और अखबारों ने तथ्यों के साथ न केवल छेड़छाड़ की है, बल्कि समूचे प्रकरण को अलग रंग देने की कोशिश भी की है। इस विवाद की पृष्ठभूमि पर नजर डालें, तो उसने तब तूल पकड़ा जब संस्थान के नए परिसर में बची भूमि पर गोशाला खोलने के लिए विज्ञापन दिया गया, जिसमें कई संस्थाओं को आमंत्रित किया गया है। विश्वविद्यालय प्रशासन का यह कहना है कि नए परिसर में बची पांच एकड़ जमीन में से दो एकड़ में गोशाला खोले जाने की योजना है। गोशाला के लिए विश्वविद्यालय अपना धन व्यय नहीं करेगा, बल्कि इसे आउटसोर्सिग के जरिए चलाया जाएगा। इससे साफ हो जाता है कि इस मामले को लेकर जबरन विश्वविद्यालय को बदनाम करने की साजिश रची जा रही है। माखनलाल ऐसा पहला विश्वविद्यालय नहीं है, जिसमें गोशाला खोलने का फैसला लिया गया हो। देश के कई संस्थानों में पहले से ही गो

200 का नोट बढ़ाएगा नकदी का प्रवाह, बैंकों की दिक्कतें भी काफी हद तक दूर

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आठ अगस्त को नोटबंदी के नौ माह पूरे हो गए। आज बड़े मूल्य वर्ग के चलन से बाहर की गईं मुद्राओं के बदले छापी गई नई मुद्राएं 84 प्रतिशत ही चलन में है, जबकि नोटबंदी के पहले बड़े मूल्य वर्ग यथा एक हजार और 500 की मुद्राएं 86 प्रतिशत चलन में थीं। फिलवक्त, चलन में मुद्राओं का सिर्फ 5.4 प्रतिशत ही बैंकों के पास उपलब्ध है, जबकि नवंबर-2016 में बैंकों के पास 23.2 प्रतिशत तक मुद्राएं उपलब्ध थीं। नोटबंदी के बाद बैंकों में नकदी की उपलब्धता उसकी निकासी पर बंदिश होने के कारण अधिक थी, लेकिन धीरे-धीरे इसके स्तर में कमी आई। 25 नवंबर-2016 को बैंकों के पास नकदी की उपलब्धता 23.19 प्रतिशत थी, जो 23 जून-2017 को घटकर 5.4 प्रतिशत रह गई, जो यह बताता है कि अब आम आदमी छोटे मूल्य वर्ग की नकदी का संग्रह ज्यादा कर रहा है। मार्च-2016 में आई रिजर्व बैंक की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, 500 मूल्य वर्ग की मुद्राओं की संख्या 16 अरब थी और एक हजार मूल्य वर्ग की मुद्राओं की संख्या छह अरब। यह कुल मुद्राओं की संख्या का क्रमश: 48 और 38 प्रतिशत था, जबकि 100 मूल्य वर्ग की मुद्राओं की संख्या 16 अरब थी, जो कुल मुद्राओं के मूल्य का

चीन पर दबाव हमारी सफलता, भारत की कूटनीतिक जीत

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डोकलाम मुद्दे पर चीन और भारत के बीच जारी गतिरोध की कूटनीतिक लड़ाई में चीन पिछड़ने लगा है। अमेरिका, ब्रिटेन और आस्ट्रेलिया के खुलकर भारत के पक्ष में आने के बाद चीन पहले से ही सकते में था। रही-सही कसर जापान ने पूरी कर दी। भारत के साथ जापान को खड़ा देख एक समय आंखें दिखाने वाला चीन अब बचने के रास्ते तलाशने लगा है। चारों तरफ से घिर रहा चीन अब कह रहा है कि डोकलाम विवाद की परिणति अगर युद्ध के तौर पर होती है तो उसे कुछ हासिल नहीं होगा। विशेषज्ञ तो यहां तक कहते हैं कि युद्ध की स्थिति में चीन को भारी नुकसान उठाना पड़ जाएगा। ऐसे में, चीन द्वारा लगातार की जा रही बयानबाजी के बावजूद दोनों देशों के बीच बचे हुए कूटनीतिक संबंध भी खतरे में पड़ जाएंगे। विशेषज्ञों ने यह भी माना कि डोकलाम में भारत, चीन से कहीं ज्यादा बेहतर स्थिति में है। चीन के बदले इस रुख का श्रेय डोकलाम में मुस्तेदी से डटे भारतीय जवानों के साथ ही मोदी सरकार की कूटनीति को भी दिया जाना चाहिए। भारत और चीन के बीच सिक्किम से लगी भूटान सीमा पर पिछले डेढ़ माह से भी ज्यादा समय से तनाव बरकरार है। इस दौरान कई बार चीन ने भारत को युद्ध की

Infosys के CEO विशाल सिक्का का जाना शुभ संकेत नहीं

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देश की दिग्गज आईटी कंपनी इंफोसिस के सीईओ और मैनेजिंग डायरेक्टर विशाल सिक्का ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। उन्हें तीन वर्ष पहले ही कंपनी के सीईओ पद पर नियुक्त किया गया था। सिक्का की जगह यूबी प्रवीण राव को कंपनी का अंतरिम प्रबंध निदेशक नियुक्त किया गया है। सिक्का अब कंपनी में एक्जिक्यूटिव वाइस चेयरमैन की भूमिका निभाएंगे। सिक्का ने इस्तीफे के पीछे का मुख्य कारण बीते कुछ महीनों से उन पर हो रहे व्यक्तिगत हमलों को बताया है। इंफोसिस के फाउंडर्स और कंपनी के बोर्ड के बीच यह विवाद इस साल फरवरी में सामने आया था। फाउंडर्स ने इस पर सवाल उठाया था कि जब वेरिएबल पे 80 फीसद तक दिया जाता है तो कंपनी छोड़ने वाले कुछ चुनिंदा लोगों को अगले दो वर्षो के लिए 100 फीसद वेरिएबल क्यों दिया जा रहा है। यह सवाल दो सहसंस्थापकों नंदन निलेकणि और एस गोपालकृष्णन ने उठाया था। मतभेद पर नारायणमूर्ति ने कहा था कि उन्हें सिक्का से कोई परेशानी नहीं है। मगर गवर्नेस की कुछ चीजों को बेहतर किया जा सकता था। बहरहाल, इंफोसिस से सिक्का का इस्तीफा हर लिहाज से बड़ी खबर है, लेकिन यह और भी बड़ी तब हो जाती है जब दो ही दिन पहल

भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का ‘मिशन 350’ कठिन नहीं

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भारतीय जनता पार्टी की विद्यार्थी इकाई है अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद। विद्यार्थियों के बीच काम करने वाला देश का सबसे बड़ा संगठन। किसी भी कार्य की सफलता और लक्ष्य की प्राप्ति के लिए संगठन का एक नीति वाक्य है-पूर्व योजना, पूर्ण योजना। यानी किसी बड़े लक्ष्य को प्राप्त करना है, तो समय रहते उसकी योजना बनाना आवश्यक है। पूर्व योजना के साथ ही पूर्ण योजना भी जरूरी है। यानी लक्ष्य तक पहुंच रहे हर सोपान पर मजबूती से कदम रखने की योजना। अपनी कमजोरी और ताकत का आकलन। यह सही है कि उचित समय पर जब हम पूरी तैयारी के साथ कदम बढ़ाते हैं, तब मंजिल पर जाकर ही रुकते हैं। बीते समय के पन्ने पलट कर देखें तो पाएंगे कि अपने विद्यार्थी संगठन की तरह भाजपा भी ‘पूर्व योजना -पूर्ण योजना’ के सिद्धांत का पालन कर रही है। यही कारण है कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने दो साल पहले ही वर्ष 2019 के चुनाव का बिगुल फूंक दिया है। उन्होंने मध्यप्रदेश के दौरे पर आने से एक दिन पहले दिल्ली में पार्टी के 31 बड़े नेताओं के साथ बैठक कर 2019 के आम चुनाव में 350 सीटें जीतने का लक्ष्य तय किया है। यह लक्ष्य बड़ा जरूर दिख र

PM नरेंद्र मोदी के भाषण में‘भारत जोड़ो’ नारा एक, लक्ष्य अनेक

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लालकिले की प्राचीर से अपने भाषण में कई मुद्दों को छुआ। महंगाई, जीएसटी, सर्जिकल स्ट्राइक व नोटबंदी से लेकर कश्मीर और तीन तलाक पर भी बोले। प्रधानमंत्री के तौर पर अपने चौथे भाषण के दौरान मोदी ने देश की फिजा में एक नया नारा घोल दिया..‘भारत जोड़ो’। दरअसल, इसी नौ अगस्त को भारत छोड़ो आंदोलन के 75 साल पूरे हुए हैं। उस वक्त ‘भारत छोड़ो’ की जमकर चर्चा हुई थी। प्रधानमंत्री मोदी ने उसी तर्ज पर स्वतंत्रता दिवस के मौके पर ‘भारत जोड़ो’ का नारा दिया। प्रधानमंत्री मोदी का यह नारा साफ करता है कि अब देश को एकजुट होना होगा। एक दिव्य और भव्य भारत के सपने को साकार करने के लिए ‘भारत जोड़ो’ नारा भले ही एक है, लेकिन इसके लक्ष्य अनेक है। यानी हम यूं कह सकते हैं कि प्रधानमंत्री एक तीर से कई निशाने लगाने को तत्पर हैं। तभी तो देश के बिगड़े माहौल पर चिंता व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा, यह देश बुद्ध का है, गांधी का है। यहां आस्था के नाम पर हिंसा के रास्ते को बढ़ावा नहीं दिया जा सकता। इसके साथ ही कश्मीरियों को गले लगाने की बात की, तो आतंकियों के खिलाफ स

गर्भपात कानून में बदलाव जरूरी,क्या हम इस दिशा में सोचेंगे?

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कहते हैं कि मां बनना किसी भी महिला के लिए गर्व की बात होती है। कम से कम हमारे बुजुर्गो ने तो यही सिखाया है हमें। गर्भवती महिलाओं के लिए तमाम तरीके और कायदे-कानून होते हैं। यह भी बताया जाता है कि बच्चे को कैसे संभालना है, लेकिन एक बात बताइए अगर किसी बच्चे को ही यह जिम्मेदारी दे दी जाए तो क्या होगा? बहरहाल, अपने मामा की हवस का शिकार हुई 10 साल की बच्ची ने एक बच्चे को जन्म दिया है। यह जन्म सिजेरियन से हुआ। बच्चे का वजन कम है और उसे आईसीयू में रखा गया है। मां बनने वाली यह वही बच्ची है, जिसे पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने कानून का हवाला देते हुए गर्भपात की मंजूरी देने से इंकार कर दिया था। मगर सवाल यह है कि क्या वह बच्चे को संभाल पाएगी? रेप की वजह से जन्मे बच्चे को समाज में खड़ा कर पाएगी? हम सिर्फ कानून का हवाला देकर कब तक बच्चियों को मां बनने का अधिकार देते रहेंगे? यह ऐसे ज्वलंत सवाल हैं, जिनका हल अब हमें ढूंढना ही होगा, वह भी जल्द से जल्द। इस मामले ने पूरे देश को हिला दिया था। रिश्ते के मामा ने बच्ची का रेप कर दिया था, जिससे वह गर्भवती हो गई थी। इस बात का खुलासा पीड़िता की हालत बिगड

सामाजिक बंधनों एवं परंपराओं के बारे में सोच के हों टीवी सीरियल

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दृश्य साधन मानसिकता पर गहरा प्रभाव डालते हैं, इसी कारण सामाजिक मनोविज्ञान के तार भी इससे गहरे जुड़े हुए दिखाई देते हैं। सामाजिक मनोविज्ञान में संस्कार और पुरातन जकड़न इतनी गहरी बैठी है कि वर्चस्ववादी ताकतों और मानसिकता को हवा देने वाली स्थितियों को समाज सहज ही अपने में आत्मसात कर लेता है। टेलीविजन और उसमें आने वाले ऐसे धारावाहिक इसी मानसिकता को हवा देते हैं। यह मंच कई प्रसंगों में घर-घर की कहानी और परंपराओं की दुहाई के नाम पर ही सामाजिक जड़ मान्यताओं को बढ़ावा देता रहा है। कुछ नया करने की आड़ में ये शो कभी अतिमानवीय कथानकों को पकड़ते हैं, तो कभी जड़ मान्यताओं को हवा देते हैं। कभी ये इतिहास के झरोखों से केवल ऐसे ही प्रसंगों को चुनते हैं, जो महज भूलों से स्मृति में जमे रहते हैं तो कभी किसी कुप्रथा को ही आभिजात्य और सामंती रंग देकर विलासिता को बढ़ावा देते प्रतीत होते हैं। वर्तमान में ऐसे कथानक टीवी सीरियल्स में बढ़ गए हैं, जो घर की भीतरी संस्कृति में चुपचाप दखल देते हैं। हाल ही में बाल विवाह को एक विलास व सामंती कलेवर में प्रस्तुत करने वाले सीरियल को प्रतिबंधित करने की मांग पूरे दे

राष्ट्र से प्रेम करने की मनाही किसी भी धर्म में नहीं

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उत्तरप्रदेश की योगी सरकार द्वारा स्वतंत्रता दिवस पर मदरसों में तिरंगा फहराने और राष्ट्रगान गाने को लेकर बरेलवी और देवबंदी आमने-सामने आ गए हैं। बरेली की दरगाह आला हजरत ने जन-गण-मन और राष्ट्रगीत वंदे मातरम गाने से इंकार किया है। आला हजरत दरगाह में राष्ट्रगान की जगह सारे जहां से अच्छा हिंदुस्ता हमारा का तराना गूंजेगा। देवबंद के दारुल उलूम ने आला हजरत के बयान को नकार दिया है। देवबंद का कहना है कि पहले राष्ट्रगान को समझें और फिर बयानबाजी करें। बरेलवी का कहना है कि राष्ट्रगान में भारत को भाग्य विधाता बताया गया है, जबकि इस्लाम में अल्लाह को भाग्य विधाता माना जाता है। इसी प्रकार जय हो-जय हो कहने की भी इजाजत इस्लाम नहीं देता। जबकि देवबंद का मानना है कि राष्ट्रगान में जनगण यानी आम आदमी को भारत का रहनुमा कहा गया है, न कि भारत को जन गण का विधाता या भगवान। राष्ट्र के प्रति प्रेम और समर्पण दिखाने का जरिया बने राष्ट्रगान को लेकर इस समय जिस तरह से विवाद व बहस का आलम है, वह ठीक नहीं है। योगी सरकार के फैसले का सार किसी पर जबरदस्ती राष्ट्रप्रेम थोपना नहीं है, बल्कि देश के सभी नागरिकों को राष्ट्ररू

बच्चों में समझ नहीं होती, जानलेवा वीडियो गेम से बचाएं

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जाने-माने मनोविश्लेषक सिगमंड फ्रायड ने कहा था कि मनुष्य का मूल स्वभाव यह है कि वह चुनौतियों को स्वीकार करता है। जब उनसे पूछा गया कि जो आप कह रहे हैं, वैसा समाज में दिखता तो नहीं है, अधिकांश लोग तो चुनौती को देखकर भाग खड़े होते हैं, तो इसका कारण भी बताइए? यह सुनकर फ्रायड बोले कि मनुष्य जब समझदार हो जाता है, तो वह यह भी समझने लगता है कि उसे कौन सी चुनौती स्वीकार करनी चाहिए और कौन सी नहीं। लेकिन बच्चों में यह समझ नहीं होती है। अत: वे कोई भी चुनौती स्वीकार कर लेते हैं। फ्रायड का यह विचार मुझे उस समय याद आया, जब सुना कि मुंबई में एक 14 वर्षीय बच्चे ने वीडियो गेम ब्लू ह्वेल का अंतिम टास्क पूरा करने के लिए एक इमारत की पांचवीं मंजिल से कूदकर आत्महत्या कर ली। यह बच्चा, जिसका नाम मनप्रीत था, नौवीं कक्षा का छात्र था और वह बहुत प्रतिभाशाली था। खबरों के मुताबिक, वह पायलट बनने का सपना देख रहा था। लेकिन उसने ब्लू ह्वेल की चुनौती को स्वीकार कर लिया और अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली। हालांकि, मुंबई पुलिस ने इन पंक्तियों के लिखे जाने तक स्वीकार नहीं किया था कि छात्र ने ब्लू ह्वेल के कारण आत्महत्या क

चीन जिद पर अब भी कायम, दोनों देशों को पारस्परिक विश्वास की जरूरत

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राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की चीन यात्रा संपन्न हुई। इस यात्रा के दौरान उन्होंने अपने चीनी समकक्ष येंग जेइची और राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात की। भारत-भूटान एवं चीन ट्राई जंक्शन पर जून के मध्य में शुरू हुए विवाद के बाद भारत और चीन के शीर्ष सुरक्षा अधिकारियों के बीच यह पहली बैठक थी। यद्यपि इस सुरक्षा बैठक को लेकर पहले से ही कुछ खास होने की आशा नहीं थी, जो हुआ भी नहीं। दोनों तरफ से आधिकारिक वक्तव्य या संयुक्त वक्तव्य इस संदर्भ में नहीं आया। हां, चीनी न्यूज एजेंसी शिन्हुआ ने कॉमेंट्री की और ज्ञान बांटा। सवाल यह उठता है कि इस यात्रा के महत्व को, खासकर भारत-चीन के टकराव के संदर्भ में किस नजरिए से देखा जाए? हालांकि, अजीत डोभाल और येंग जेइची की इस मुलाकात पर शिन्हुआ ने कॉमेंट्री करते हुए कहा है कि दोनों देशों को दुश्मनी की जगह साझा हित के साथ आगे बढ़ने की कोशिश करनी चाहिए। उसने द्विपक्षीय बैठक के प्रभाव को महत्वपूर्ण बताया और मित्रता की तरफ बढ़ने के संकेत दिए हैं। उसने कहा है कि दोनों देश ‘जन्म से दुश्मन’ नहीं हैं, सो दोनों देशों को पारस्परिक विश्वास बढ़ाने की जरूरत है।