लंदन में धमाका चिंता का विषय, दुनिया की सबसे श्रेष्ठ पुलिस नाकाम क्यों


हाल के दिनों में ब्रिटेन आतंकियों के निशाने पर रहा है। एक नियमित अंतराल पर ब्रिटेन में आतंकी हमले हो रहे हैं। इस्लामिक चरमपंथियों से लेकर आतंकी हमले झेल रहे लंदन में एक बार फिर पारसन्स ग्रीन अंडरग्राउंड स्टेशन पर धमाका हुआ। धमाके में कई लोगों के झुलसने और घायल होने की खबर है। इस धमाके में हताहतों की संख्या कम भले ही हो, मगर इसे छोटा हमला या लापरवाही मान लेना सबसे बड़ी भूल होगी। लंदन में इसी साल तीन और आतंकी हमले हो चुके हैं। 22 मार्च, 23 मई और चार जून को हुए आतंकवादी हमलों के बाद अब ट्रेन में धमाका उस चरमपंथ की अगली कड़ी है, जो पूरे यूरोप को अपनी गिरफ्त में लेता जा रहा है। वैसे आतंकियों ने 2005 से लंदन को निशाना बनाना शुरू किया था। उसी साल जुलाई में तीन बड़े हमले हुए थे। आतंकियों ने तीन ट्यूब रूट्स (भूमिगत मेट्रो) को तो निशाना बनाया ही था। डबल डेकर बस और दूसरी जगहों पर भी धमाके किए थे।
इस हमले के बाद सवाल उठने लाजिमी हैं। इंग्लिश पुलिस और दूसरी सुरक्षा व खुफिया एजेंसियों को पुलिस और एजेंसियों में माना जाता है। फिर वह इस तरह की वारदातों को रोक पाने में सफल क्यों नहीं हो पा रही है? इस सवाल का जवाब ढूंढेंगे तो पता चलेगा कि आतंक विरोधी युद्ध की मानसिकता 9/11 के बाद से अमेरिका में भी बनी हुई है, लेकिन यूरोप और अमेरिका के हालात एक मायने में बुनियादी तौर पर अलग हैं कि अमेरिकी समाज इस लड़ाई में दोफाड़ नहीं नजर आता है। मुस्लिम आबादी वहां इतनी कम है कि उसे आधार बनाकर सामाजिक विभाजन जैसी स्थिति नहीं बनाई जा सकती। इस मामले में यूरोप की स्थिति भारत जैसी ही है। वहां के अल्पसंख्यक मुस्लिम समाज में आतंकी तत्वों की मौजूदगी भले चावल में कंकड़ मात्र जैसी ही हो, पर ये इक्का-दुक्का लोग अपने समुदाय को बाकी आबादी और सरकारी तंत्र की नजर में संदिग्ध जरूर बना देते हैं। इस तनावग्रस्त माहौल में आतंकवाद को अपनी उम्र लंबी करने के बहाने जरूर मिल जाते हैं। यूरोप में लगातार जारी शरणार्थी समस्या को भी इसी संदर्भ में देखना होगा।
वैसे, हमलों की अहम वजह कहीं न कहीं यूरोप खुद ही बना है। अलकायदा हो या फिर आईएसआईएस सभी को खड़ा करने के पीछे कहीं न कहीं अमेरिका का हित था। लेकिन अब अमेरिका अपने साथियों के साथ मिलकर इनको खत्म करने पर तुला है। इन आतंकी संगठनों ने पहले ही इस बात को कहा है कि जो कोई भी अमेरिका का साथ देगा वह उसको नहीं छोड़ने वाले हैं। यूरोप को अपनी इमिग्रेशन पॉलिसी पर दोबारा विचार करने की जरूरत है। यूरोप में मजदूरी करने वाला एक खास वर्ग इस तरह की आतंकी घटनाओं को अंजाम दे रहा है। इसके पीछे उनकी अपनी नाराजगी ही है जिसका फायदा आतंकी संगठन उठा रहे हैं। ब्रिटेन की दिक्कत यह रही है कि वह किसी भी देश में होने वाले हमलों को कानून-व्यवस्था से जोड़कर देखता रहा है, लेकिन अब चीजें बदल गई हैं। लिहाजा, आतंक के खिलाफ जारी जंग में उसे भी आगे आना होगा।

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