कब मिलेगा साफ पानी, सरकारी स्तर पर किए जाने वाले प्रयासों से तब तक कुछ नहीं होगा, जब तक हम जागरूक नहीं होंगे




देश में दस करोड़ से अधिक लोग फ्लोराइड की अधिक मात्रा वाले पानी का सेवन कर रहे हैं। लोकसभा में पेयजल और स्वच्छता मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने बताया कि समस्या से निपटने के लिए केंद्र सरकार ने 800 करोड़ रुपए जारी किए हैं, ताकि सामुदायिक जल शुद्धिकरण संयंत्र स्थापित किए जा सकें। उन्होंने कहा कि विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित क्षेत्रों में 12 हजार 577 बस्तियों में रह रहे करीब दस करोड़ छह हजार लोगों को पेयजल में फ्लोराइड की अधिक मात्र मिल रही है। आर्सेनिक और फ्लोराइड के दूषण से निपटने के लिए नीति आयोग की अनुशंसा के मुताबिक, सरकार ने मार्च 2016 में 800 करोड़ रुपए जारी किए थे, ताकि 1327 आर्सेनिक प्रभावित और 12 हजार 14 फ्लोराइड प्रभावित बस्तियों में पानी का शुद्धिकरण किया जा सके। कहते हैं कि जल ही जीवन है। जल के बिना धरती पर मानव जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। मनुष्य चांद से लेकर मंगल तक की सतह पर पानी तलाशने की कवायद में लगा है, ताकि वहां जीवन की संभावनाएं तलाशी जा सकंे। पानी की महत्ता को हमारे पूर्वज भी अच्छी तरह जानते थे। जीवन के लिए इसकी आवश्यकता और उपयोगिता का हमारी प्राचीन पुस्तकों व धार्मिक कृतियों में व्यापक उल्लेख मिलता है। पानी के महत्व का वर्णन वेदों और दूसरी रचनाओं में भी है।
जल न हो तो हमारे जीवन का आधार ही समाप्त हो जाए। दैनिक जीवन के कई कार्य बिना जल के संभव नहीं हैं। लेकिन धीरे-धीरे धरती पर जल की कमी होती जा रही है। जो जल उपलब्ध है, वह भी काफी हद तक प्रदूषित है। जिसका प्रयोग खाने-पीने एवं फसलों में होने से लोग बीमार हो रहे हैं। धरती पर जीवन बचाए रखने के लिए हमें इसके बचाव की ओर ध्यान देना पड़ेगा। पीने का पानी कैसा हो इस विषय पर वैज्ञानिकों ने काफी प्रयोग किए हैं और पानी की गुणवत्ता को तय करने के मापदंड बनाए हैं। पीने के पानी का रंग, गंध, स्वाद सब अच्छा होना चाहिए। ज्यादा कैल्शियम या फिर मैग्नेशियम वाला पानी कठोर जल होता है और पीने योग्य नहीं होता है। पानी में उपस्थित रहने वाले हानिकारक रसायनों की मात्रा पर भी अंकुश जरूरी है। आर्सेनिक, लेड, सेलेनियम, मरकरी तथा फ्लोराइड, नाइट्रेट आदि स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालते हैं। पानी में कुल कठोरता 300 मिली ग्राम प्रति लीटर से ज्यादा होने पर शरीर के लिए नुकसान दायक हो जाती है। धरती की सतह के लगभग 70 फीसदी हिस्से में उपलब्ध होने के बावजूद अधिकांश पानी खारा है। स्वच्छ पानी धरती के सभी आबादी वाले क्षेत्रों में है। भारत में पेयजल की समस्या काफी विकट है। भारत में 10 करोड़ की आबादी को स्वच्छ जल उपलब्ध नहीं है, जो पूरी दुनिया के देशों में स्वच्छ जल से वंचित रहने वाले लोगों की सर्वाधिक आबादी है। विशेषज्ञों ने इस आपदा के और गंभीर होने की आशंका जताई है, क्योंकि भारत में 73 फीसदी भूमिगत जल का दोहन किया जा चुका है। जिसका मतलब यह है कि हमने भरण क्षमता से अधिक जल का उपयोग कर लिया है।
स्वच्छ जल के सबसे बड़े स्रोत छोटी नदियां और जलधाराएं सूख चुकी हैं, जबकि बड़ी नदियां प्रदूषण से जूझ रही हैं। इसके बावजूद हम कुल बारिश का सिर्फ 12 फीसदी जल ही संरक्षित कर पाते हैं। बीते वर्ष आई वाटरएड की रिपोर्ट के अनुसार, भारत की कुल आबादी का छह प्रतिशत हिस्सा स्वच्छ जल से वंचित है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भूमिगत जल कुल पेयजल का 85 फीसदी आपूर्ति करता है, लेकिन देश के 56 फीसदी हिस्से में भूमिगत जल के स्तर में गिरावट आई है। सरकार ने मार्च 2021 तक देश की 28,000 बस्तियों को स्वच्छ जल की आपूर्ति के लिए 25 हजार करोड़ रुपए खर्च करने की घोषणा की है। सरकार का कहना है कि 2030 तक देश के हर घर को पेयजल की आपूर्ति करने वाले नल से जोड़ दिया जाएगा। देश में इस समय प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष करीब एक हजार 745 घन मीटर जल की उपलब्धता है। केंद्रीय जल आयोग के मुताबिक बीते पांच वर्षो के दौरान स्वच्छ जल की उपलब्धता तीन हजार घन मीटर से घटकर एक हजार 123 घन मीटर रह गई है। देश में इस समय एक हजार 123 अरब घन मीटर स्वच्छ जल उपलब्ध है, जिसका 84 फीसदी कृषि में इस्तेमाल होता है। सरकार दावा भले ही कुछ भी करे, लेकिन हालात यह है कि देश के लोगों को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध करा पाना आज भी एक बड़ी चुनौती है।
आबादी के तेजी से बढ़ते दबाव व जमीन के नीचे के पानी के अंधाधुंध दोहन के साथ ही जल संरक्षण की कोई कारगर नीति नहीं होने की वजह से पीने के पानी की समस्या साल-दर-साल गंभीर होती जा रही है। पानी की गंभीर होती समस्या की वजह आबादी का बढ़ता दबाव है। इससे प्रति व्यक्ति साफ पानी की उपलब्धता घट रही है। फिलहाल देश में प्रति व्यक्ति 1000 घनमीटर पानी उपलब्ध है, जो वर्ष 1951 में चार हजार घनमीटर था। जबकि प्रति व्यक्ति 1700 घनमीटर से कम पानी की उपलब्धता को संकट माना जाता है। अमेरिका में यह आंकड़ा प्रति व्यक्ति 8 हजार घनमीटर है। इसके अलावा जो पानी उपलब्ध है, उसकी गुणवत्ता भी बेहद खराब है। अब समय आ गया है हम पानी के दुरुपयोग के प्रति संकल्पित हों। अन्यथा एक दिन सिर्फ पानी की बातें ही करते रह जाएंगे।

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