सीरिया को नर्क से मुक्ति की जरूरत


राजएक्सप्रेस,भोपाल। सीरिया में विद्रोहियों के कब्जे वाले दौमा शहर में हुए रासायनिक हमले (Syria Chemical Attack)में 180 लोगों की मौत ने दुनिया का ध्यान खींचा है। सीरिया में इससे पहले भी रासायनिक हमला हो चुका है। अत: हर देश की जिम्मेदारी बनती है कि वह सीरिया के लोगों को नर्क से मुक्ति दिलाए।

करीब एक दशक से गृहयुद्ध की मार झेल रहे सीरिया में हुए रासायनिक हमले (Syria Chemical Attack) ने सीरिया के लोगों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। महाशक्तियों की महत्वाकांक्षाओं के बीच सैंडविच बना सीरिया इस सदी की सबसे बड़ी मानवीय त्रसदी झेल रहा है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, करीब पचास लाख लोग देश छोड़कर जा चुके हैं और साठ लाख बेघर हुए हैं। ऐसे में सीरिया में विद्रोहियों के कब्जे वाले दौमा शहर में संदिग्ध रासायनिक हमले में करीब 180 लोगों की मौत ने पूरी दुनिया का ध्यान खींचा है।

मगर जिस तेजी से इस घटनाक्रम पर अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र से प्रतिक्रिया आई है, उसे देखकर कयास लगाए जा रहे हैं कि अमेरिकी कार्रवाई की भूमिका तैयार हो रही है, जबकि सीरिया सरकार लगातार कहती रही है कि रासायनिक हमले में उसकी कोई भूमिका नहीं रही है। अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि दौमा शहर पर हुए हमले में असद सरकार की भूमिका है या फिर सीरिया में संघर्षरत विद्रोहियों की तरफ से हमला हुआ। सीरिया में इस समय इतने समूह संघर्षरत हैं कि जल्द हमलावर तय करना आसान नहीं है।

वैसे जब मैदानी युद्ध व जेनेवा शांति वार्ता में सीरियाई सरकार मजबूत स्थिति में है तो रासायनिक हमले का औचित्य नहीं बनता। सीरिया के विदेश मंत्री का कहना है कि संयुक्त राष्ट्र को भेजे गए सैकड़ों पत्रों में कहा जा चुका है कि आईएस के पास रासायनिक हथियारों का जखीरा है। किसी भी युद्ध में विमानों के जरिए बम-बारूद या बाकी व्यापक विनाश वाले हथियारों का इस्तेमाल अब कोई हैरानी नहीं पैदा करता। दूसरे हथियारों से बचने के लिए लोग तात्कालिक तौर पर कोई ठिकाना ढूंढते हैं, कभी कामयाब भी होते हैं।

लेकिन रासायनिक गैसों के हमले की जद में आए लोगों के पास बचने का कोई विकल्प नहीं होता, सिवाय इसके कि हवा में घुली जहरीली गैसों की चपेट में आकर वे तड़प-तड़प कर मर जाएं। सीरिया में गौमा शहर पर हुआ हमला ऐसा ही था, जिसमें दर्जनों बच्चों सहित सौ से ज्यादा लोगों की जान चली गई और बड़ी संख्या में लोग जिंदगी और मौत से जूझ रहे हैं। सीरिया में चल रहा गृहयुद्ध एक ऐसे दौर में है, जब सरकार और विद्रोहियों के बीच की लड़ाई में शायद किसी भी पक्ष को इस बात का खयाल रखना जरूरी नहीं लग रहा है कि उनके किस हमले से किसकी मौत होगी! युद्ध अब चरम त्रसद शक्ल अख्तियार कर चुके हैं।

यह कोई पहला मौका नहीं है जब सीरिया के गृहयुद्ध में शत्रुपक्ष को खत्म करने या पीछे धकेलने के लिए रासायनिक हथियारों का इस्तेमाल हुआ हो। अगस्त-2013 में भी घौटा में सैरिन नामक रासायनिक गैस के जरिए हुए हमले में जब दो हजार लोगों की जान चली गई, तब दुनिया भर में इस हथियार का इस्तेमाल करने के लिए विद्रोहियों के साथ सीरियाई सरकार को भी कठघरे में खड़ा किया गया था। इस बार भी यही हो रहा है, मगर कोई समाधान नहीं बता रहा।

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