आईसीएआई के स्थापना दिवस, पर मोदी ने कही एकदम सही बात



आईसीएआई (चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की संस्था) के स्थापना दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो भी कहा है, उससे यही स्पष्ट हो रहा है कि देश में कालेधन का कारोबार अब भी चल रहा है और वह भारतीय अर्थव्यवस्था के सामने एक सबसे बड़ी समस्या अब भी है। वैसे, उन्होंने यह भी बताया कि नोटबंदी के बाद देशभर में 37 हजार नकली कंपनियों की पहचान की जा चुकी है व सरकार उनके खिलाफ कार्रवाई करने की तैयारी में है। मगर इस आशंका को भी तो खारिज नहीं किया जा सकता कि इन 37 हजार के अलावा और भी नकली कंपनियां चल रही हो सकती हैं। वस्तुत: इस आशंका का आधार भी प्रधानमंत्री के भाषण का वह अंश ही है, जिसमें उन्होंने कहा है कि देश की तीन लाख कंपनियां संदेह के दायरे में हैं। इसका सीधा अर्थ यही है कि 37 हजार दिखावटी कंपनियों के अलावा देश में और भी बहुत सी कंपनियां हो सकती हैं, जो कागजों पर चल रही होंगी, सरकार की नजरों से बचकर। प्रधानमंत्री द्वारा बताया गया यह तथ्य भी गौरतलब है कि जीएसटी लागू होने से मात्र 48 घंटे पहले एक लाख से अधिक कंपनियों ने अपना नाम रजिस्टर्ड कंपनियों की सूची से बाहर कर लिया।
जब इस तरह के कारनामे हो ही रहे हैं, तब क्यों न माना जाए कि बेनामी संपत्तियों पर लगाम और नोटबंदी जैसे कठोर फैसलों के बावजूद कालेधन वालों के हौसले उस तरह से पस्त नहीं पड़े हैं, जिस तरह पड़ने चाहिए थे। उनके और सरकार के बीच तू डाल-डाल, मैं पात-पात का खेल जारी है। दरअसल, जो बीमारी जितनी पुरानी होती है, उसका उपचार भी उतना ही कठिन हो जाता है। अर्थव्यवस्था के समानांतर कालेधन की अर्थव्यवस्था हमारे लिए कोई नई बात नहीं है। 1992 से पहले तक भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार न केवल सीमित था, बल्कि संकुचित भी था, इसलिए तब कालाधन भी कम पैदा होता था। लेकिन हमने वर्ष-1992 में नवउदारवादी आर्थिक नीतियों को अंगीकार कर लिया, जिसके बाद देश में पूरी दुनिया की पूंजी आई। इससे अर्थव्यवस्था का आकार बढ़ गया व उसी के समानांतर कालेधन की अर्थव्यवस्था भी चल पड़ी। मोदी सरकार इसे ही समाप्त करने के प्रयासों में लगी हुई है।
प्रधानमंत्री ने फिर दोहराया कि अर्थव्यवस्था की सफाई का अभियान जारी रहेगा। यह तथ्य सरकार का हौसला बढ़ाने वाला है कि वर्ष -2014 के बाद स्विटजरलैंड जाने वाले भारतीयों के धन में कमी आई है। इसमें पिछले तीन वर्षो में 40 फीसदी से ज्यादा की कमी आई है, जो छोटी-मोटी गिरावट नहीं है, लेकिन प्रधानमंत्री इससे संतुष्ट नहीं हैं। अत: उन्होंने वह सब कह दिया है, जो उन्हें कहना था। नरेंद्र मोदी ने अपनी बात कहने के लिए जो मंच चुना है, वह भी बढ़िया रहा। नकली कंपनियों के मामले में यह सवाल उठाने के लिए आईसीएआई के कार्यक्रम से अच्छा मंच और क्या हो सकता था कि उनके बही-खाते आखिर कौन जांचता है? जाहिर है कि यह काम चार्टर्ड एकाउंटेंट ही करते हैं। अत: उम्मीद की जा सकती है कि उनकी बात का सभी पर असर पड़ेगा।

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